संदेश
१. श्री प्रो. उदय नारायण सिंह "नचिकेता"- जे काज अहाँ कए रहल छी तकर चरचा एक दिन मैथिली भाषाक इतिहासमे होएत। आनन्द भए रहल अछि, ई जानि कए जे एतेक गोट मैथिल "विदेह" ई जर्नलकेँ पढ़ि रहल छथि।
२. श्री डा. गंगेश गुंजन- एहि विदेह-कर्ममे लागि रहल अहाँक सम्वेदनशील मन, मैथिलीक प्रति समर्पित मेहनतिक अमृत रंग, इतिहास मे एक टा विशिष्ट फराक अध्याय आरंभ करत, हमरा विश्वास अछि। अशेष शुभकामना आ बधाइक सङ्ग, सस्नेह|
३. श्री रामाश्रय झा "रामरंग"(आब स्वर्गीय)- "अपना" मिथिलासँ संबंधित...विषय वस्तुसँ अवगत भेलहुँ।...शेष सभ कुशल अछि।
४. श्री ब्रजेन्द्र त्रिपाठी, साहित्य अकादमी- इंटरनेट पर प्रथम मैथिली पाक्षिक पत्रिका "विदेह" केर लेल बधाई आ शुभकामना स्वीकार करू।
५. श्री प्रफुल्लकुमार सिंह "मौन"- प्रथम मैथिली पाक्षिक पत्रिका "विदेह" क प्रकाशनक समाचार जानि कनेक चकित मुदा बेसी आह्लादित भेलहुँ। कालचक्रकेँ पकडि जाहि दूरदृष्टिक परिचय देलहुँ, ओहि लेल हमर मंगलकामना।
६. श्री डा. शिवप्रसाद यादव- ई जानि अपार हर्ष भए रहल अछि, जे नव सूचना-क्रान्तिक क्षेत्रमे मैथिली पत्रकारिताकेँ प्रवेश दिअएबाक साहसिक कदम उठाओल अछि। पत्रकारितामे एहि प्रकारक नव प्रयोगक हम स्वागत करैत छी, संगहि "विदेह"क सफलताक शुभकामना।
७. श्री आद्याचरण झा- कोनो पत्र-पत्रिकाक प्रकाशन- ताहूमे मैथिली पत्रिकाक प्रकाशनमे के कतेक सहयोग करताह- ई तऽ भविष्य कहत। ई हमर ८८ वर्षमे ७५ वर्षक अनुभव रहल। एतेक पैघ महान यज्ञमे हमर श्रद्धापूर्ण आहूति प्राप्त होयत- यावत ठीक-ठाक छी/ रहब।
८. श्री विजय ठाकुर, मिशिगन विश्वविद्यालय- "विदेह" पत्रिकाक अंक देखलहुँ, सम्पूर्ण टीम बधाईक पात्र अछि। पत्रिकाक मंगल भविष्य हेतु हमर शुभकामना स्वीकार कएल जाओ।
९. श्री सुभाषचन्द्र यादव- ई-पत्रिका ’विदेह’ क विषयमे जानि प्रसन्नता भेल। ’विदेह’ निरन्तर पल्लवित-पुष्पित हो आ चतुर्दिक अपन सुगंध पसारए से कामना अछि।
१०. श्री मैथिलीपुत्र प्रदीप- ई-पत्रिका ’विदेह’ केर सफलताक भगवतीसँ कामना। हमर पूर्ण सहयोग रहत।
११. डा. श्री भीमनाथ झा- ’विदेह’ इन्टरनेट पर अछि तेँ ’विदेह’ नाम उचित आर कतेक रूपेँ एकर विवरण भए सकैत अछि। आइ-काल्हि मोनमे उद्वेग रहैत अछि, मुदा शीघ्र पूर्ण सहयोग देब।
१२. श्री रामभरोस कापडि भ्रमर, जनकपुरधाम- "विदेह" ऑनलाइन देखि रहल छी। मैथिलीकेँ अन्तर्राष्ट्रीय जगतमे पहुँचेलहुँ तकरा लेल हार्दिक बधाई। मिथिला रत्न सभक संकलन अपूर्व। नेपालोक सहयोग भेटत से विश्वास करी।
१३. श्री राजनन्दन लालदास- ’विदेह’ ई-पत्रिकाक माध्यमसँ बड नीक काज कए रहल छी, नातिक एहिठाम देखलहुँ। एकर वार्षिक अंक जखन प्रिट निकालब तँ हमरा पठाएब। कलकत्तामे बहुत गोटेकेँ हम साइटक पता लिखाए देने छियन्हि। मोन तँ होइत अछि जे दिल्ली आबि कए आशीर्वाद दितहुँ, मुदा उमर आब बेशी भए गेल। शुभकामना देश-विदेशक मैथिलकेँ जोडबाक लेल।
१४. डा. श्री प्रेमशंकर सिंह- अहाँ मैथिलीमे इंटरनेटपर पहिल पत्रिका "विदेह" प्रकाशित कए अपन अद्भुत मातृभाषानुरागक परिचय देल अछि, अहाँक निःस्वार्थ मातृभाषानुरागसँ प्रेरित छी, एकर निमित्त जे हमर सेवाक प्रयोजन हो, तँ सूचित करी। इंटरनेटपर आद्योपांत पत्रिका देखल, मन प्रफुल्लित भ' गेल।
(c)२००८-२००९. सर्वाधिकार लेखकाधीन आ जतय लेखकक नाम नहि अछि ततय संपादकाधीन।
विदेह (पाक्षिक) संपादक- गजेन्द्र ठाकुर। एतय प्रकाशित रचना सभक कापीराइट लेखक लोकनिक लगमे रहतन्हि, मात्र एकर प्रथम प्रकाशनक/ आर्काइवक/ अंग्रेजी-संस्कृत अनुवादक ई-प्रकाशन/ आर्काइवक अधिकार एहि ई पत्रिकाकेँ छैक। रचनाकार अपन मौलिक आ अप्रकाशित रचना (जकर मौलिकताक संपूर्ण उत्तरदायित्व लेखक गणक मध्य छन्हि) ggajendra@yahoo.co.in आकि ggajendra@videha.com केँ मेल अटैचमेण्टक रूपमेँ .doc, .docx, .rtf वा .txt फॉर्मेटमे पठा सकैत छथि। रचनाक संग रचनाकार अपन संक्षिप्त परिचय आ अपन स्कैन कएल गेल फोटो पठेताह, से आशा करैत छी। रचनाक अंतमे टाइप रहय, जे ई रचना मौलिक अछि, आ पहिल प्रकाशनक हेतु विदेह (पाक्षिक) ई पत्रिकाकेँ देल जा रहल अछि। मेल प्राप्त होयबाक बाद यथासंभव शीघ्र (सात दिनक भीतर) एकर प्रकाशनक अंकक सूचना देल जायत। एहि ई पत्रिकाकेँ श्रीमति लक्ष्मी ठाकुर द्वारा मासक 1 आ’ 15 तिथिकेँ ई- प्रकाशित कएल जाइत अछि। साइटक डिजाइन प्रीति ठाकुर रश्मि प्रिया आ मधूलिका चौधरी द्वारा।
(c) विदेह:संदेह:1, संस्करण-श्रुित प्रकाशन
'विदेह' द्वारा धारावाहिक रूपे ई-प्रकाशित कएल जा' रहल गजेन्द्र ठाकुरक उपन्यास, गल्प-कथा संग्रह,पद्य संग्रह, बालानां कृते, एकाङ्की-नाटक, महाकाव्य, शोध लेख आ यात्रा वृत्तांत विदेहमे संपूर्ण ई-प्रकाशनक बाद प्रिंट फॉर्ममे “कुरुक्षेत्रम् : अन्तर्मनक” नामसँ श्रुति प्रकाशन, द्वारा छापल जा रहल अछि। विदेह डाटाबेसक आधारपर नचिकेताजीक नाटक, पंकज पराशर आ विनीत उत्पलक पद्य संग्रह, मौन आ प्रेमशंकर सिंह जीक निबन्ध संग्रह आ 'विदेह' द्वारा कएल गेल शोधक आधार पर १. मैथिली-अंग्रेजी शब्द कोश २. अंग्रेजी-मैथिली शब्द कोश आ ३. मिथिलाक्षरसँ देवनागरी पाण्डुलिपि लिप्यान्तरण-पञ्जी-प्रबन्ध डाटाबेश श्रुति पब्लिकेशन द्वारा प्रिन्ट फॉर्ममे छापल जा रहल अछि- शोध, संकलन, डिजिटल इमेजिंग आ लिप्यांतरण- विद्यानन्द झा “पञ्जीकार”, नागेन्द्र कुमार झा आ गजेन्द्र ठाकुर द्वारा भेल।श्रुति प्रकाशनक e-mail: shruti.publication@shruti-publication.comआ website: http://www.shruti-publication.com अछि।रमानन्द झा “रमणक”जीक “सगर राति दीप जरए” केर इतिहास जाहिमे एक-एकटा कथाक पाठक वर्णन अछि सेहो विदेहमे ई-प्रकाशित भेल। संगहि 20,000 विभिन्न आइ.एस.पी. सँ पाठक द्वारा डेढ लाखसँ बेशीबेर “विदेहकेँ अंतर्जालपर पढल गेल आ आब एकर सदेह अंक तिरहुता आ देवनागरीमे संगहि आबि रहल अछि। एकर ब्रेल वर्सन सेहो डाउनलोड आ प्रिंट लेल उपलब्ध अछि। कवर-पृष्ठक डिजाइन लेल श्रीमति ज्योति झा चौधरी आ प्रूफ देखबाक लेल डा.पालन झाक विशेष रूपमे आभारी छी। 25 अंकक 2500 पृष्ठक दस प्रतिशत एहि सदेह संस्करणमे आबि रहल अछि शेष अंतर्जालपर डाउनलोड आ प्रिंट लेल उपलब्ध अछि। --सम्पादक।
साक्षात्कार
रामाश्रय झा "रामरंग" प्रसिद्ध अभिनव भातखण्डे जीक १ जनवरी २००९ केँ निधन भऽ गेलन्हि। डॊ. गगेश गुजन मृत्यु पूर्व हुनकासं साक्षात्कार लेने छलाह। प्रस्तुत अछि ओ अमूल्य साक्षात्कार- पहिल बेर विदेहमे।

पं0 रामाश्रय झाक इन्टरव्यू।
प्रश्ननः 1. अपनेक दृष्टि सं विद्यापति गीत-संगीत परंपरा कें कोन रूप मे देखल-बूझल जयवाक चाही? विद्यापति-संगीत परिभाषित कोना कएल जयवाक चाही? एतत्संबंधी कोनो स्वर-लिपि उपलब्ध अछि?
उत्तरः हमरा विचार सँ विद्यापतिक अधिकांश गीत पद; भजनबद्धगायन शैली एवं किछु गीत ग्रामीण गीत शैलीक अंतर्गत् बूझल जयवाक चाही। उदाहरण स्वरूप पद-गायन शैली मे-
1. नन्दक नन्दन कदम्बक तरुतर
धिरे धिरे मुरली बजाव।
2. जय जय भैरवि असुर भयाउनि।
एवं अन्य श्रृंगार रस सँ सम्बन्धित पद। जेना-
क. कामिनी करय असनाने
ख. सुतलि छलौं हम घरवा रे
ग. अम्बर बदन झपाबह गोरी
घ. ससन परस खसु अम्बर रे, इत्यादि।
टइ तरहक पद व गीत मिथिला प्रदेश मे लगभग 60 व 70 वर्ष सं जे गाओल जाइत अछि एकर धुन अर्धांशस्त्रीय संगीतक अंतर्गत् एवाक चाही। परन्तु अइ पदक जे मिथिला मे गायन शैली छैक ओकर एक अलग स्वरूप छैक। जेकरा प्रादेशिक संगीत कहवाक चाही। जहांतक लोक संगीत तथा ग्रामीण संगीत सं संबंधित विद्यापतिक गीत अछि, जेना-
क. आगे माइ हम नहि आजु रहब एहि आंगन जो। बुढ होयता जमाय,
ख. हे भोलानाथ कखन हरब दुख मोर,
ग. उगना रे मोर कतय गेलाह,
घ. आज नाथ एक व्रत मोहि सुख लागत हे, इत्यादि।
ई गीत सब लोक संगीतक धुनक अंतर्गत गाओल जाइत अछि। यद्यपि अहू लोकधुन मे रागक दर्शन छैक मगर राग शास्त्र केर अभाव छैक। तें हेतु ई सब गीत लोक संगीत शैली मे अयवाक चाही।
उत्तर-1-ए. विद्यापति संगीतक कोनो भिन्न स्वरूप नहि अछि, केवल विद्यापति गीत मिथिला प्रादेशिक संगीत शैलीक अंतर्गत गाओल जाइत अछि। राग आओर ई अर्धांशस्त्रीय एवं धुन प्रधान लोक संगीत राग गारा,राग पीलू, राग काफी, राग देस, राग तिलक कामोद इत्यादि राग सं सम्बन्धित अछि। अभिप्राय ई जे जेना सूर, तुलसी, कबीर इत्यादि संत कविक पद भिन्न-भिन्न तरह सं गाओल जाइत अछि अइसंत कवि सबहक कोनो खास अपन संगीत नहि छैन्हि जे कहल जाय जे ई सूर व तुलसी तथा कबीरक संगीत थीक, एही रूप सं विद्यापति संगीतक रूप मे बुझवाक चाही।
प्रश्नन-2. विद्यापति संगीत-परंपराक विषय मे आइध्रिक स्थिति पर अपनेक की विचार-विश्लेषण अछि ?
उत्तर-2. विद्यापति पदक सम्बन्ध मे हमर ई विचार अछि जे विद्यापतिक पद मैथिली भाषा मे अछि तें हेतु केवल मिथिला प्रदेश मे अइ पदक गायन प्रादेशिक संगीतक माध्यम सं होइत अछि। हॅं, यदा कदा बंगाल प्रदेश मे बंगला कीर्तन मे अवश्य प्रयोग हाइत अछि। कहवाक अभिप्राय ई जे कोनो प्रादेशिक भाषा मे लिखल काव्य केर गुणवत्ताक आकलन ओइ काव्यक श्रृंब्द व साहित्य तथा भाव पर निर्भर करैत छैक। संगीत आकइ काव्य के रसमय एवं सौंदर्यवर्धन करइक हेतु परम आवश्यक तत्व अवश्य थिक परन्तु प्राथमिकता पदक थिकइ। मैथिली भाषा अत्यन्त सुकोमल भाषा अछि एवं अइ मे लालित्य अछि।आर संगीत सुकोमल भाषा मे अधिक आनन्द दायक होइत छैक।अही हेतु विद्यापति पद संगीतक माध्यम सं मिथिलाक संस्कृति मे विद्वान जन सं ल’ क’ जनसाधारण तकक मानस के प्रभावित क’ क’ अपन एक सुदृढ परम्परा बनौने अछि एवं मिथिलावासीक हेतु परिचय पत्र समान अछि। तें हेतु समस्त मैथिल समाजक ई परम कर्तव्य थीक जे अइ अमूल्य धन कें धरोहर जकां जोगा क’ राखी।
प्रश्न-3. विद्यापति-संगीत आओर विद्यापति-गीत कें एकहि संग बूझल जयवाक चाही बा फराक क’? यदि हं तं किएक आ कोना ?
उत्तर : एहि प्रश्नक उत्तर उपरोक्त पहिल तथा दोसर क्रमांक मे लिखल गेल अछि। कृपया देखल जाय।
प्रश्नन-4. विद्यापति-संगीतक प्रतिनिधि गायक रूप मे अपने कें कोन-कोन कलाकार स्मरण छथि आ किएक ?
उत्तर : विद्यापति पदक गायक आइ सं किछु वर्ष पूर्व बहुत नीक नीक छलाह, जेना पंचोभक पं0 रामचन्द्र झा,पंचगछियाक श्री मांगन, तीरथनाथ झा, बलियाक पं0गणेश झा, लगमाक पं0 अवध पाठक, श्री दरबारी ; नटुआ द्ध श्री अनुठिया ; नटुआद्ध पं0 गंगा झा बलवा, श्री बटुक जी, आर पं0 चन्द्रशेखर खांॅ, अमताक पं0 रामचतुर मलिक, पं0 विदुर मलिक, लहटाक पं0 रामस्वरूप झा, खजुराक पं0 मधुसूदन झा एवं नागेश्वर चैधरी, बड़ा गांवक पं0 बालगोविन्द झा, लखनौरक पं0बैद्यनाथ झा इत्यादि। वर्तमान मे जे गायक छथि हुनका सबहक नाम अइ प्रकार छनि-पं0 दिनेश झा पंचोभ, श्री उपेन्द्र यादव, अमताक पं0 अभयनारायण मलिक, पं0 प्रेमकुमार मलिक इत्यादि। उपरोक्त जतेक गायकक हम नाम लिखल अछि ई सब गायक अधिकारपूर्वक विद्यापतिक पद कें गबै वला छलाह एवं वर्तमान मे छथि। कियेक तं ई सब मिथिलावासी छथि। विद्यापति पदक अर्थ भाव पूर्ण रूप सं बूझि क’ तहन प्रश्नकरैत छलाह व वर्तमान मे करैत छथि। तें हेतु ई सब गायक स्मरण करवा योग छथि।
प्रश्नन-5. पं0 रामचतुर मल्लिक, प्रो0 आनन्द मिश्र प्रभृत्ति तं इतिहास उल्लेखनीय छथिहे। किछु अन्यो गायकक नाम अपने कह’ चाहब ?ओना मल्लिकजी तथा आनन्द बाबूक विद्यापति-गीत गायकी मे की किछु विशेष लगैत अछि जे अन्य गायक मे नहि ?
उत्तर ः हम जतेक गायक क नाम लिखल अछि सब अपना-अपना स्तर सं नीक छलाह एवं नीक छथि। विद्यापतिक पद गायन मे राग गायकीक जेना बडका बडका आलाप व तान तें गाओल नहि जाइत छैक। विद्यापति पद गायन मे पदक अर्थ भाव ध्यान मे राखि सरसतापूर्वक गाओल जाइत छैक। अइ सम्इन्ध मे एक सं दोसर गायकक तुलना करइक आवश्यकता नहि। तथापि पं0 रामचन्द्र झा व श्री मांगनजी तथा पं0 रामचतुर मलिकजी,श्री बटुक जी,पं0 रामस्वरूप् झा,श्री दरबारी इत्यादि गायक बहुत प्रसिद्ध छलाह।
चूंकि प्रोफेसर आनन्द मिश्रजीकें हम कहियो गायन नहि सुनल तथा मिथिलाक गायक पंक्ति मे हुनक नाम हम नहि सुनल तें हेतु हुनका संबंध मे किछु लिखइ सं असमर्थ छी।
प्रश्न-6. विद्यापति-गीत मैथिली लोकगीत ध्रि कोना पहुंचल हेतैक ?एहि विषय मे अपनेक विश्लेषण की अछि?
उत्तर ः विद्यापति गीत मैथिलीक दू तरहक भाषा मे रचल गेल अछि। एकटा मैथिलीक परिष्कृत भाषा मे रचल गेल अछि जेना-
1. नन्दक नन्दन कदम्बक तरुतर
2. अम्बर बदन झंपावह गोरी
3. उधसल केस कुसुम छिडिआयल खण्डित अधरे। इत्यादि। अइ तरहक
मैथिलीक परिष्कृत भाषा मे जे गीत छैक से लोकगीत; ग्रामीण अंचलद्धधरि बहुत कम पहुँचलै।
जे गीत ग्रामीण भाषाक माध्यम सं रचल गेल छैक।जेना-
1. आ गे माइ हम नहि आजु रहब एहि आंगन जं बुढ होयता जमाय....
2. हे भोलानाथ कखन हरब दुख मोर
3. जोगिया भंगिया खाइत भेल रंगिया हो भोला बउडहवा.
4. उगना रे मोर मोरा कतय गेलाह.
इत्यादि।
अइ तरहक जे गीत छैक से लोकगीत; ग्रामीण अंचलद्धधरि अधिक सं अधिक पहुँचलए। एक बात आर ई जे लोकभषाक अधिक समकक्ष छैक तकरा जनाना सब अधिक गबैत छथि। हमरा बुझने विद्यापति गीत कें लोकगीत; ग्रामीण अंचलद्धधरि पहुँचइके यैह कारण थीक। दोसर बात ई जे अपन मातृभाषा स्वभावतः बहुत प्रिय होइत छैक आर अपना मातृभाषाक माध्यम सं जे काव्य रचल जाइत छैक आर ओइ मे लालित्य आ आकर्षण छैक तं ओ अपनहि आप विद्वान जन सं ल’ क’जनसाधारण तक प्रचारित भ’ जाइत छैक। आर विद्यापति पद तं लौकिक व पारलौकिक दुनू दृष्टिसं अत्यन्त उच्च कोटिक रचल गेल अछि, तथा सब तरहक गीत रचल गेल अछि जेना-भक्ति, भक्ति श्रृंगार, लौकिक श्रृंगार, श्री राधाकृष्णकें विलासक अत्यन्त मधुर गीत, भगवान श्रृंंकरक विवाह सं सम्बंधित जनसाधारण भाषाकके गीत एवं नचारी, समदाउनि, बटगवनी, तिरहुत इत्यादि तरहक गीतक रचना केने छथि जे लोकरंजनके हेतु उच्चकोटिक एवं गायन के वास्ते बनल छैक। ई तंे बिना प्रयासहिं लोक मानस एवं लोकगीत धरि पहुँचि गेल गेल हेतैक।
प्रश्न-7. विद्यापति पदक मैथिली व्यवहार-गीत मे विलय होयवाक प्रक्रिया अपनेक दृष्टियें कोना आ की रहल हेतैक ?
उत्तर ः हमरा बुझने इहो प्रश्न 6ठमे प्रश्न सं संबंधित अछि। तें ओही पर विचार कएल जाय।
प्रश्न-8. विद्यापतिक पद यदि मिथिलाक सर्वजातीय माने-सभ वर्ग आ समाजक लोक मे स्वीकृत छैक ? तं तकर कारण विद्यापति-पदक साहित्यिक गुण बा ओकर सांगीतिकता छैक आकि एकरा मे निहित कोनो आन तत्व आ विशेषता छैक ?
उत्तर ः विद्यापति पद जे मिथिला समाजक सब वर्ग मे स्वीकृत छैक तकर मुख्य कारण विद्यापति पदक साहित्यिक गुण एवं सांगीतिक गुण दुनू छैक। मिथिला मे कवि विद्यापतिक पहिनहुं तथा बादहु मे बहुत कवि भेलाह मगर जनसाधारण मे तं हुनकर क्यो नाम तक नहि जनैत अछि। परंतु विद्यापति एवं विद्यापति गीत के तं एहेन क्यो अभागल मिथिलावासी हेताह जे नहि जनइत हेताह। विद्यापति पदक प्रचार-प्रसार मे साहित्यिक व संगीतक गुण के अतिरिक्त आन कोनो तत्व व कारणक जे अपने चर्चा कएल अछि, अइ सम्बन्ध मे हम ई कहब जे कवि विद्यापति भगवान के परम भक्त छलाहं हुनका भक्ति सं प्रभावित भ’ क’ भगवान शंकर जिनका घर मे नौकर के काज करैत रहथिन एहेन भक्त कविक कावय मे तं प्रचार-प्रसार हेबाक सब सं महत्वपुर्ण तत्व एवं कारण हुनका आराध्यदेवक कृपा बुझवाक चाही। भगवानक भक्ति सं हुनकर हृदय ओतप्रोत छलन्हि तें ओ अपन काव्य मे लिखैत छथि-
क. बड सुख सार पाओल तुअ तीरे,
ख. हे भोलानाथ; बाबाद्धकखन हरब दुख मोर, इत्यादि।
ग. खास क’ भगवान राधाकृष्णक भक्ति व भक्ति-श्ाृंगार रस जे ओ अपना काव्य मे दरसओ-लन्हि अछि ओ अत्यन्त हृदयस्पशर््ाी तथा संगीतमय अछि।
प्रश्न-9. लोकगीत एवं व्यवहार-गीत मे तत्वतः की-की भेद मानल जयवाक चाही?
उत्तर ः लोकभाषा एवं लोकधुन मे जे गीत गाओल जाइत छैक तकरा लोकगीत कहल जाइत छैक। आर व्यवहार गीत क जे अपने चर्चा कएल अछि इउ सम्बन्ध मे हमर कहब ई जे एकरा अंतर्गत संगीतक सब शैली आबि जाइत छैक। परंतु हमरा बुझना जाइत अछि जे व्यवहा गीत सं अपनेक अभिप्राय संस्कार गीत सं अछि। हमरा विचार सं लोकगीत एवं व्यवहार गीत दुनू
के लोकसंगीत कहल जाइत छैक, अइ मे कोनो विशेष अंतर नइ छैक।
प्रश्न- 10. विद्यापति-संगीतक वर्तमान जे निश्चिते निराश कयनिहार अतः खेदजनक अछि। अपने कें तकर कारण की सब लगैत अछि ?
जखन कि बंगालक रवीन्द्र-संगीत-कला मे विद्यापति संगीत जकां कोनो प्रकारक पतनोन्मु-खता आइ पर्यन्त देखवा मे नहि अबैत अछि। तकरो कारण की आजुक उपभोक्तावाद, ब्जारवाद भू-मण्डलीकरण मात्रकें मानल जयवाक चाही बा आनो आन ऐतिहासिक, समाजा-आर्थिक परिस्थि ति आ सामाजिक कारण आ परिवर्तन कें?
उत्तर ः अइ सम्बन्ध मे हम ई कहब जे संपूर्ण भारत मे अपना संस्कृति के छोड़ै मे जतेक मैथिल अगुआयल छथि तेना अन्य कोनो प्रदेश नहि। जे मैथिल मिथिला सं बाहर अन्य प्रदेश मे आबि गेलाहय सब सं पहिने ओ अपन मातृभाषाक प्रति उदासीन भ’ जाइत छथि आ अत्यंत हर्षपूर्वक ई कहैत छथि जे हमरा बच्चा के तं मैथिली बाजहि नहि अबैत छैक। अपना घर मे मैथिली नहि बजैत छथि। जखन अपना मातृभाषाक प्रति एहेन उदासीन छथि तहन अपना संस्कृति सं अपनहि आप दूर भ’ जेताह। अपना मॉं-बा पके डैडी व
मम्मी अन्य के अन्टी व अंकल कहैक रेवाज भ’ गेलै अछि तं हिनका सब सं की आश कयल जाय जे ई अपना संस्कृतिक रक्षा करताह। बंगाली, मद्रासी, पंजाबी, मराठी इत्यादि प्रदेशक लोक सब अपना संस्कृति के एखनहुं धरि संजोय क’ रखने अछि। मगर पश्चिमी सभ्यताक प्रभाव सब सं अधिक मैथिल पर छन्हि ते हेतु मिथिला संस्कृति मे एहेन हानिकारक परिवर्तन देखाय पड़ैत अछि।
प्रश्न-11. अपनेक स्मृति मे कोनो गायकक गायन बा अन्य कोनो संदर्भ हो जेकर वर्णन अपने कर’ चाही? हुनक विषय मे किछु सुनयवाक इच्छा हो।वर्तमान समेत आगां पीढ़ीक लाभ हेतैक। संगहि अपनेक किछु विशेष अभिमत जे देब’-कह’ चाही।
उत्तर ः हम शास्त्रीय संगीतक उपासक छी आर अत्यंत उदासीन भ‘ कहि रहल छी जे अपन मिथिला वर्तमान समय मे शास्त्रीय संगीत सं शून्य भ’ रहल अछि। वर्तमान समय सं पहिने पं0 रामचतुर मलिक, पं0 बिदुर मलिक, पं0 सियाराम तिवारी, चूंकि पं0 सियाराम तिवारीक शिक्षा अमता गाम मे भेलन्हि तें हेतु हुनका मैथिल मानइ छियनि। पं0 चन्द्र शेखर खां,पं0 रघू झा, ई सब बहुत उच्च स्तरक गायक छलाह। खास क’क’ पं0 रामचतुर मलिक, व पं0 सियाराम तिवारी तं इतिहासिक गायक छलाह ध्रुवपद शैलीक गायन मे।
भावी पीढ़ीक शिक्षार्थी एवं जिज्ञासु के अइ गायक सबके जानइ के प्रयास व हिनका गायन व कार्यक सम्बंघ मे श्रृंोध करवाक चाही ताकि भावी पीढ़ी लाभान्वित एव धु्रुवपद शैली गायनक विशेषता सं परिचित होथि।
जय मिथिला जय मैथिली, जय जय जानकी अम्ब।
जेहि रज मे मन्डन भेला, हरलन्हि शिव के दम्भ।
राजमोहन झा (प्रबोध सम्मान २००९) सँ विनीत उत्पलक साक्षात्कार
खुलल दृष्टिसँ नहि भऽ रहल अछि समीक्षा : राजमोहन झा
साहित्यकार भाइ-साहेब राजमोहन झाक कैक टा कथा संग्रह आ चारि टा समालोचनात्मक पोथी लिखल छन्हि। मैथिली भाषामे हुनकर एहि योगदानकेँ देखैत २००९ सालक प्रबोध सम्मान हुनका देल जाऽ रहल छन्हि। हुनकासँ मैथिलीक भूत, वर्तमान, भविष्य आ समीक्षाक गप, संग-संग पारिवारिक आ सामाजिक जिनगीक ताना-बानाक गप वरिष्ठ पत्रकार विनीत उत्पल बातचीत मे बुनलन्हि।

विनीत उत्पल : अहांक जन्म कतय भेल, दिन-वर्ष की छल?
राजमोहन झा : हमर जन्म गाम मे भेल, कुमार बाजितपुर (वैशाली)। साल छल १९३४, अगस्त माहक २७ तारीख।
विनीत उत्पल : आ प्रारंभिक लालन-पोषण ?
राजमोहन झा : प्रारंभिक लालन-पोषण गाम मे भेल। किछु दिनक बाद पटना आबि गेलहुं, आगू पटनेमे भेल।
विनीत उत्पल : शिक्षा-दीक्षा कतय भेल?
राजमोहन झा : प्रारंभिक शिक्षा तँ गाममे भेल। पटना अएलाक बाद टी.के. घोष एकेडमी मे आठवां मे नाम लिखेने रहि, जतय सs मैट्रिक पास केलहुं। एकर बादक पढाई पटना कालेज, पटनासँ भेल। हमर विषय मनोविज्ञानक संग-संग लाजिक, हिन्दी आ अर्थशास्त्र छल।
विनीत उत्पल : पितामह कतेक मोन छथि ?
राजमोहन झा : हमर पितामह जनार्दन झा संस्कृतक विद्वान छलाह। हुनकर मृत्यु १९५१ मे भेलनि। गाम मे हमर पढाई हुनकर संरक्षण मे भेल छल। मिडिल स्कूल तकक पढाई तँ हम गाम मे केने रहि। ओ मैथिली मे सेहो लिखैत रहथि। ताहि लेल हमहूँ मैथिलीमे लिखबाक लेल प्रेरित भेलहुँ। मैथिली साहित्य मे रूचि जागल। ओ कतेक ठाम घुमि-घुमि कs रचना केलथि। महावीर प्रसाद द्विवेदीक सरस्वतीक संपादन करैक संग ओ मिथिला मिहिरक संपादक सेहो रहथि। करीब एक सौ टा बंगला उपन्यासक हिन्दी मे अनुवाद केलथि, जाहि मे विषवृक्ष, देवी चौधराइन उपन्यास प्रमुख अछि।
विनीत उत्पल : साहित्यक प्रारंभिक प्रेरणा केकरा सँ भेटल ?
राजमोहन झा : प्रारंभिक प्रेरणा तँ पितामह सँ भेटल। पितामहे शिक्षाक आरम्भ करोलथि। गाममे मिडिल तक पढाई काल तक पितामहे गार्जियन रहथि। पटना एलहुं तs बाबूजीक (हरमोहन झा) संग रहलहुं।
विनीत उत्पल : घर मे किनका सँ अहां बेसी नजदीक रही ?
राजमोहन झा : पितामह संग पितामहीक सबसँ नजदीक रहि।
विनीत उत्पल : संस्कृत परंपरा सँ अंगरेजी परंपरा दिस कोना प्रवृत भेलहुँ?
राजमोहन झा : समय बदलैत गेल, पहिने लोक संस्कृत पढैत रहथि। संस्कृत धीरे-धीरे लुप्त होइत गेल। अंगरेजी शिक्षा स्थान लेलक आओर प्रभाव बढ़ैत गेल। तखन अंगरेजी आ हिन्दी दिस लोक झुकए लागल। हमहुं ओही दिस प्रवृत भेलहुँ।
विनीत उत्पल : साहित्य कए अतिरिक्तेक की पेशा छल ?
राजमोहन झा : इम्प्लायमेंट आफिसर रही। आब रिटायर्ड छी।
विनीत उत्पल : कोन-कोन शहर मे रहल छी ?
राजमोहन झा : जमशेदपुर, मुजफ्फरपुर, रांची, बोकारो, पटना, दिल्ली मे नौकरी काल रहलहुं। पॉँच साल दिल्ली मे जनशक्ति भवन मे डिप्युटेशन पर रही।
विनीत उत्पल : कनि भाई-बहिनक संबंध मे बताऊ ?
राजमोहन झा : चार भाई आ एक बहिन छलहुं। दू भाईक मृत्यु भए गेल आ दू भाई छी एखन। सबसे पैघ हम छी। हमारा सs छोट कृष्ण मोहन झा रांची विश्वविद्यालय मे मनोविज्ञानक शिक्षक रहथि। तेसर भाई विश्वमोहन झा गाम मे रहथि। सबसे छोट मनमोहन झा सी.एम. कालेज, दरभंगा मे मनोविज्ञानक शिक्षक छथि। सबसँ जेठ बहिन ऊषा झा छलीह, जे दरभंगा मे छथि। बहनोई शैलेन्द्र मोहन झा १९९४ मे दिवंगत भए गेलाह। ओ ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालयक मैथिली विभागक अध्यक्ष छलाह।
विनीत उत्पल : बाल-बच्चा कए टा आ की करैत अछि ?
राजमोहन झा : तीन टा बेटी अछि। ब्याह केकरो नहि भेल अछि। सबसे छोट मिनी झा टीचर छथि। जेठ बेटी ग्रेजुएशन क संग ब्यूटी-आर्ट एंड क्राफ्टक- ट्रेनिंग लेने छथि।
विनीत उत्पल : अहांक मनपसंद रचनाकार के छथि ?
राजमोहन झा : एकर निर्णय करब मुश्किल अछि। ललित, मायानंद, राजकमल चौधरीक लिखब लोक पसिन कए रहल अछि। आधुनिक मैथिली कए प्रारम्भ ओतहिसँ मानल जाइत छैक ।
विनीत उत्पल : अहांक अपन नीक रचना कोन ?
राजमोहन झा : सेँ तँ आने लोक कहत। एकर निर्णय करब मुश्किल अछि। रचनाकार कोनो रचना करैये तँ अपन तरहे बेस्ट करैत अछि। जेकरा दिलसँ करब कहबै, ओ करैत छैक। सबसँ नीक देबाक कोशिश करैत छैक। कोनो रचना सुपरसीड करैत छैक, कोनो नहि करैत छैक। ई सब बहुत रास फेक्टर पर निर्भर करैत छैक।
विनीत उत्पल : अहांक पहिल रचना कोन छल ?
राजमोहन झा : रचनाक शुरुआत हम कविता सँ कएने रही। तखन हम बी.ए. मे रही, १९५४ क ई गप छी। ओकर बाद कविता लिखब एक तरहेँ बंद भए गेल। कविता लिखब छुटि गेल। हमर लेखकीय जीवनक दोसर फेज १९६५सँ शुरू भेल। एखन कथा हमर मुख्य विधा भए गेल अछि।
विनीत उत्पल : कोनो कविता सुनेबई ?
राजमोहन झा : कविता कए मन पारब नहि चाहब। ओहि ट्रेडिशन मे हम लिखैत रही जे ओहि समय मे लिखल जाइत रहय। हमर लेखनक शुरुआती दौर छल, ओहि समयक जे साहित्य प्रभाव सँ लिखल गेल, से रहए। अपने हमरा बुझाएल जे ई कोनो कर्मक नहि छैक, तकरा बाद हम ई लिखब बंद कए देलहुं।
विनीत उत्पल : कविता कोनो पत्रिका मे छपल ?
राजमोहन झा : कविता 'वैदेही' मे छपल। 'मिथिला मिहिर' आ 'मिथिला दर्शन' मे सेहो छपल.
विनीत उत्पल : आ कहानी ?
राजमोहन झा : मिथिला मिहिर मे मुख्यतः कहानी छपल। मिथिला दर्शन मे सेहो।
विनीत उत्पल : अपनेक रचना लिखब आ छपल मे बाबूजी (हरिमोहन झा) कए कतेक सहयोग रहल?
राजमोहन झा : बाबूजीक सहयोग किछु नहि रहल, प्रभाव रहल। बाबूजीक संग रचनाक गप करबाक प्रश्न नहि उठैत छल। हमर लेखन हुनकर प्रभावक अंतर्गत नहि छनि। हुनकर लेखन सँ इतर हमर लिखब शुरू भेल। एकरा मे दूनू गप अछि। हुनकर प्रभाव रहल आ नहियो रहल। हुनकर क्षेत्र सँ हम अपना कए अलग कए लेलहुं। ओना प्रभाव सँ अलग कोना कए सकैत छी।
विनीत उत्पल : 'आई-काल्हि-परसू' पर अकादमीक पुरस्कार ठीक समय पर भेटल वा नहि?
राजमोहन झा : ठीके समय पर भेटल। ई महत्वपूर्ण नहि छल की पहिने भेटबाक चाही छल या बाद मे भेटबाक चाही छल। मन मे एहन कोनो गप नहि छल।
विनीत उत्पल : साहित्यक अभियान मे पत्नीक कतेक सहयोग रहल ?
राजमोहन झा : साहित्य सँ ओतेक संप्रक्ति नहि छन्हि। सहयोग-असहयोग कए ताहि द्वारे प्रश्न नहि छैक।
विनीत उत्पल : हुनकर नहियर कतए भेलन्हि ?
राजमोहन झा : हमर सासुर तँ दिल्ली भेल। ससुरक पिता अलवर महाराजक चीफ जस्टिस रहथि। विवाह हमर दिल्ली मे भेल।
विनीत उत्पल : अहां कोन-कोन भाषा मे रचना केलहुं आ कतेक पोथी लिखलहुं?
राजमोहन झा : हिन्दी आ मैथिली मे हमर लेखन भेल। दस टा पोथी कथा संग्रह आ चारि टा समालोचनात्मक पोथी छैक.
विनीत उत्पल : भविष्यक की योजना अछि ?
राजमोहन झा : संस्मरण लिखबाक अछि। सुमनजी आ किरणजी पर लिखबाक बाकी अछि।
विनीत उत्पल : साहित्यक दावं-पेंच कए कतय तक बुझलियइ ?
राजमोहन झा : दांव-पेंच मैथिली मे नहि सभ भाषा मे चलैत रहैत छैक। ई कोनो नब गप नहि छी। एहि अर्थ मे प्रभावित भेलहुँ। ई तँ स्वाभाविक प्रक्रियाक रूप अछि। ओहिनो ई गप बेसी मेटर नहि करैत छैक।
विनीत उत्पल : कोन रचना एहन अछि जेकरा मे अहां केँ अपन आत्मकथ्य हुअए ?
राजमोहन झा : सभ रचना मे जीवनक अंश आबिए जाइत छैक। किया कि अनुभवक आधार पर लोक लिखय यै। अनुभवक अंश तँ रहबे करत। आत्मकथात्मकता तँ आबिये जाइत छैक।
विनीत उत्पल : 'निष्कासन' कथा तँ नहि छी आत्मकथात्मक ?
राजमोहन झा : स्पेशिफिक नहि करए चाहब। सभटा कथा मे कोनो-ने-कोनो रूपेण आत्मकथा भेटत।
विनीत उत्पल : समीक्षा लेल की कहब अछि ?
राजमोहन झा : समीक्षा खुलल दृष्टि सँ नहि भऽ रहल अछि। लोक अपन ईर्ष्या-द्वेष सँ रचना कए समीक्षा कए रहल अछि। निष्पक्ष व निर्भय भए कए समीक्षा नहि भए रहल अछि। आई-काल्हि जे समीक्षा भए रहल अछि ओहि मे धैर्यक अभाव अछि। ऑब्जेक्टिव नहि रहैत छैक लोक। जकरासँ रूष्ट रहए छथि तकर ठीक सँ समीक्षा नहि करैत छथि आ जकरा सँ नीक संबंध छैक ओकर प्रसंग खूब उठाबैत छथि। समीक्षा लेल दृष्टि काज करैत छैक।
विनीत उत्पल : की समीक्षा करबा मे व्यक्तिगत आक्षेप आवश्यक अछि ?
राजमोहन झा : समीक्षक बुझैत छथि, जे हम समीक्षा कए रहल छी, तँ लेखक पर उपकार कए रहल छी, हुनका हम उपकृत कए रहल छी। एकांगी दृष्टिकोण बड़का फेक्टर अछि। समीक्षा मे रचनाक समीक्षा होएबाक चाही नहि कि व्यक्तिगत आक्षेप।
विनीत उत्पल : ई गप कहिया सँ छैक?
राजमोहन झा : पहिनो रहए, आबो छैक। संकीर्णता बेसी भए गेल अछि। हमर विचारे पहिने एतेक नहि छल जे एखन भए रहल छैक। अपन लोक कए घुसाबैक लेल मारामारी भए रहल छैक। हालत जेहन भए रहल छैक तकर विरोध होएबाक चाहि।
विनीत उत्पल : नवतुरुआक लेखनकेँ कोन दृष्टि सँ देखैत छी ?
राजमोहन झा : नबका लोक भाषाक दिस उदासीन छथि। बेसी लोककेँ भाषाक प्रति मोह नहि छनि, अपनत्व नहि छनि। जहिना-जहिना जेनरेशन आगू भेल, भाषाक उदासीनता बढ़ल गेल। बेसी लोक मैथिली बाजब छोडि देने छथि।
विनीत उत्पल : मैथिली मे दलित साहित्य लेल अहांक मंतव्य की ाछि ?
राजमोहन झा : साहित्य मे वर्गीकरण प्रवृति जे भए रहल अछि, ओ विखण्डित कए रहल अछि। साहित्य सृजनात्मकता सँ ध्यान हटा कए विशेष वर्ग पर ध्यान देबासँ साहित्य विखण्डित होएत। दलित कए लेखन मे अएबाक चाही।
विनीत उत्पल : स्त्री लेखक लेल की कहब अछि ?
राजमोहन झा : स्त्रीगण कए साहित्य लेखन मे जरूर अएबाक चाही। कोनो वर्गक लेल समग्र साहित्य कए विखण्डित नहि करबाक चाहि। खंडित दृष्टि नहि हेबाक चाहि। एकरा लेल चाही समग्र दृष्टि।
विनीत उत्पल : मैथिली भाषा मे स्त्री लेखकक संख्या किएक कम अछि ?
राजमोहन झा : सबहक मूल मे शिक्षा अछि। मिथिला मे स्त्री शिक्षाक प्रचार-प्रसार नहि भेल। सहभागिता आ सहृदयताक कमी रहल।
विनीत उत्पल : मैथिली केँ संविधानक आठम अनुसूचीमे शामिल हेबासँ विकासक लेल की कहब अछि ?
राजमोहन झा : जतय तक भाषाक प्रश्न छैक, संविधान संगे यूपीएससी परीक्षा मे शामिल होयबाक गप छैक, एकरा सँ किछु खास बल भेटहि बला नहि छैक। भाषाक समृद्धिक लेल समर्पण चाही। तकर ह्रास भए रहल अछि।
विनीत उत्पल : तखन की कएल जाए?
राजमोहन झा : मूल गप भाषामे प्रवृत बच्चा सभ हुअए। स्कूल सँ पहिने परिवार छैक। परिवार मे भाषाक समुचित स्थान देल जाए, तखने बच्चा सबहक विकासक संग भाषाक विकास होएत। ई गप धीरे-धीरे कम भए रहल अछि।
विनीत उत्पल : नवलोकक लेल कि कहब अछि ?
राजमोहन झा : हुनका सभ कए साहित्य सँ ओ लगाव नहि छनि जे पहिलुका लोक कए छल। जखन धरि नवलोक कए साहित्य सँ लगाव नहि होएत तखन धरि किछु नहि होइत। एकर बादे मैथिली कए उज्ज्वल भविष्य छैक।
विनीत उत्पल : एखुनका समीक्षा लेल की कहब अछि ?
राजमोहन झा : मूल वस्तु लोक छैक। समीक्षाक लेल यैह छैक। जाऽ तक लोक नहि बदलत, दृष्टिकोण नहि बदलत, ऑब्जेक्टिव नहि होएत, तखन धरि किछु नहि होएत। समीक्षाक लेल तटस्थता चाही, निरपेक्षता चाही।
विनीत उत्पल : मैथिली भाषाक प्रचार-प्रसार लेल की करबाक चाही ?
राजमोहन झा : ई निर्भर करत सरकार पर, ई काज बेसी नीक जकाँ कए सकैत अछि। सामूहिक प्रयास लोकक होएत, संस्था आगू आएत, तखन होएत। मैथिलीक नाम पर जे तमाशा होइत अछि, ओकरा बंद कई पडत। लोक रुचि जगाबक लेल काज करए पडत।
विनीत उत्पल : प्रचार-प्रसार लेल नवलोककेँ कोन दृष्टि सँ देखैत छी ?
राजमोहन झा : समय-समय पर सभ किछु बदलल। नव जनरेशन आयल। समय मे परिवर्तन भेल। अपन संस्कृति लेल, भाषाक लेल पहिलुक लोक मे समर्पण बेसी छल। जेना-जेना जनरेशन बदलल, समर्पण कम भए गेल। एक तरहे कहि सकैत छी जे वैश्विक सम्पूर्णता दिस बेसी बढ़ल गेल अछि, स्थानीयक विशिष्टता पाछु छुटि रहल अछि। ग्लोबल बेसी हुअए लागल लोक, लोकल गौण भए गेल। एकरा मे सामंजस्य रखबाक चाही। एकरा बूझए पडत। विशिष्टता आ सारभौमता स्थानीयता मे छैक। सभ संग हेबाक चाही। अपन जे विशिष्टता छैक तकरा बिसरि जाइ सेहो उचित नहि छैक। सबहक संग-संग चलैत अपन विशिष्टता नहि छोडबाक चाही।
विनीत उत्पल : लेखन में जीवनानुभवक की स्थान छैक ?
राजमोहन झा : जीवनानुभव लेखनक समस्त आधार छैक। अनुभव पक्ष शून्य रहत तँ अहां की लिखब। अहांक लिखब साहित्य नहि रहत।
विनीत उत्पल : आजुक युगक बाजारवादी दुनिया आ साहित्यक लेल की कहब अछि ?
राजमोहन झा : जावत अहां बेसिक नीड्स मे अपना कए सीमित राखब तखन की होएत। साहित्य आगूक चीज छैक। भौतिक साधना मे अपनाकेँ सीमित राखब तँ साहित्य दिस विमुखता उत्पन्न हेबे करत। ई मूल जरूरत छैक, ई आवश्यक छैक, तकरा संग-संग नैतिक मूल्य साहित्यक लेल आवश्यक छैक। नैतिक मूल्यों उपेक्षित नहि रहए, ई पक्ष सबल हुअए। मूल जरूरत दिस लोकक बेसी ध्यान छैक, ई ट्रेंड चलि रहल छैक आ आगुओ ई रहत। जहिना-जहिना भौतिक सुख-सुविधा बढ़ल उच्च मूल्य मे ह्रास होइत गेल। ओहि दिस सँ देखब तँ राजनीति प्रमुख होइत गेल। दोसर पक्ष ई जे अध्यात्म पक्षक ह्रास होइत गेल, जखन विकास बढ़ल। भाषा मे तकनीकक विकास तँ भेल, मुदा जे मूल्य बेसी रहनि ओहि्मे ह्रास भए रहल अछि। बाहरी विकास बढ़ला सँ जे विशिष्टता, जे स्मिता छैक ओ कम भेल। बहुत लोक कहि रहल छथि जे भाषा मरि रहल अछि, से ठीक कहैत छथि। घर सँ निष्कासित भए रहल छैक ई भाषा। पारिवारिक भाषा नहि रहल ई, मरबाक लक्षण छैक।
विनीत उत्पल : एकर उपाय की ?
राजमोहन झा : समयक धार कए कोनो प्रयास सँ बंद नहि कए सकैत छी। शिक्षाक विकास भेल अछि। पढए बलाक संख्या बढ़ल। स्कूलक संख्या बढ़ल। जाहि अनुपात मे ई बढ़ल ओहि अनुपात मे आंतरिक मूल्य घटल। जानकारी तँ बेसी बढ़ि गेल अछि, सूचनात्मक ज्ञान बच्चामे जतेक बेसी छैक, ओहि उम्र मे ओहि जमाना मे नहि रहै। मुदा, ज्ञान धरले रहि गेल। शिक्षा मे जे विकास भेल अछि, ई वृद्धि संख्यात्मक अछि, गुणात्मक विकास नहि भेल अछि। ई बात सही छैक, जतेक स्कूलक संख्या बढ़ल, ज्ञान ओतबेक कम भए गेल।
विनीत उत्पल : तखन विकास ख़राब गप अछि ?
राजमोहन झा : स्त्री शिक्षा पहिने नहि रहए, काफी वृद्धि भेलए। मुदा, बहुत रास साइड इफेक्ट भेल। दवाई बढ़ल, साइड इफेक्ट मे वृद्धि भेल। ओकरा रोकबाक कोनो उपाय नहि भेल अछि।
विनीत उत्पल : अहां श्रेष्ट रचना ककरा कहब ?
राजमोहन झा : सर्वश्रेष्ट रचना ओ होयत अछि, जे ओहि युग बीत गेलाक बादो श्रेष्ट रहत अछि। कालजयी छैक। कायम रहैक छैक पोथी आ रचनाकार। सुमनजी, किरणजी, आरसी बाबू श्रेष्ट रचनाकार रहथि। हुनकर रचना एखनो श्रेष्ट मानल जाइत अछि।
विनीत उत्पल : एहन कोन रचना छैक जकरा फुर्सत भेटला पर अहां बारंबार पढैत छी ? जखन मानसिक परेशानी रहैत अछि तखनो ?
राजमोहन झा : एहन कोनो पोथी नहि अछि। जखन जे भेट जाइत छैक, तकरे पढैत छी। मानसिक सुधाक शांति लेल जे पोथी उपलब्ध रहैत अछि सैह भऽ जाइत अछि।
विनीत उत्पल : मानसिक शांति लेल की करैत छी ?
राजमोहन झा : एहन कोनो काज नहि छैक। उपलब्धता पर हम कोनो काज करैत छी। लिखबाक मन होइत अछि तँ लिखियो लैत छी। मनक अनुरूप काज ताकि लैत छी।
विनीत उत्पल : साहित्यक रचनाक लेल की योजना अछि ?
राजमोहन झा : बाबूजीक रचनावली निकालबाक लेल सोचने छी। तीन खंड निकालि चुकल छी आ तीन खंड बाकी अछि। अपन तीन टा पोथी दिमाग मे अछि। पहिल-संस्मरण संग्रह आ दोसर आलोचनात्मक/समीक्षात्मक लेख संग्रहित करबाक अछि। तेसर ई जे कथा सभ छूटल छैक, लेख सभ सेहो छूटल छैक, ओकरा निकलबाक अछि।
विनीत उत्पल : जीवनक लेल की योजना अछि ?
राजमोहन झा : प्लानिंग क हिसाब सँ जीवन नहि चलैत छैक। पानि जहिना बाट ताकि लैत छैक, तहिना जीवन चलैत छैक। प्लानिंग सँ बहुत काजो नहि होइत अछि। एकर आवश्यकता सेहो नहि होइत अछि। प्लानिंगक अनुसार सभ काज भए जाइत, एहनो नहि होइत अछि। Men proposes God disposes. हम तँ सोचैत छी जे propose नहि कएल जाएत। एहिना जीवन छैक।
विनीत उत्पल : जीवन आ सहित्यक दृष्टि सँ अपनेक कोन समय सभसँ बेसी नीक छल?
राजमोहन झा : 1965 सँ 1975 धरि समय सबसँ नीक रहल, साहित्य दृष्टि सँ सेहो आ सामान्य दृष्टि सँ सेहो। ओकरा बाद खराबे कहि सकैत छी. कहिया धरि चलत नहि जनैत छी।
विनीत उत्पल : रचना करैत काल की ध्यान रखबाक चाही ?
राजमोहन झा : कालजयी रचना लेल कोनो सिद्धांत वा प्रशिक्षण नहि होइत अछि। साहित्य रचनाक लेल कोनो पाठ नहि होइत अछि। एकर कोनो उपयोगिता नहि होइत अछि। आन कलाक लेल स्कूल छैक। साहित्य लेल नहि छैक। कोनो एहन ट्रेनिंग स्कूल नहि छैक जे साहित्यकार बनायत। कोनो विज्ञापन नहि छैक जे छह मास मे ई चीज सिखा देत।
विनीत उत्पल : मैथिली सहित्य मे नव लेखक केँ की सुझाव देब ?
राजमोहन झा : मार्गदर्शन आ सुझावक पक्ष मे हम नहि छी। जिनका मे ओ प्रतिभा/योग्यता होएत, ओ अपन बाट ताकि लेताह। सिखओने सँ कियो सीखबो नहि करत। मूल वस्तु अनुभव छैक. अनुभव संपन्न छी, अनुभवक संवेदनाक पकडबाक हुनर अछि। से लेखक मे अंतर्निहित रहैत छैक । रचनाक लेल अनुभव करबाक तागति जरूरी छैक। तकरा बिना लेखन नहि होएत। अभिव्यक्तिक देबाक लेल कौशल आ भाषा हेबाक चाही। जतय ई विकास होएत, सफ़ल होएत। प्रशिक्षण वा मार्गदर्शनक जरूरत नहि छैक।
*विनीत उत्पल : प्रबोध सम्मान 2009 प्राप्त करबाक लेल बधाई।

आभाष लाभ
अन्तर्वाता
(२०२८ सालमें डा.राजेन्द्र विमल आ श्रीमति विणा विमलक सन्तानक रुपमें जनकपुरक देवीचौकक निवासमें जन्म लऽ २२ वर्ष पहिने सँ निरन्तर मैथिली गीत सँगितक आकाशमें ध्रुवतारा जकाँ चमकैत रहऽबला एकटा मिथिलाक बेटा छथि, गायक आभाष लाभ। बाल्येवस्था सँ विभिन्न मँच सबपर अपन आवाज सँ दर्शक श्रोता सबके हृदयमें वास कयनिहार आभाष लाभ, मैथिली आ मिथिला सँ सम्बन्ध रखनिहारकलेल चीरपरिचीत नाम अछि। प्रस्तुत अछि, गायक आभाष लाभ सँगक भेल बातचीतक प्रमुख आश)
१. आभाष जी गीत सँगीतमें कहिया सँ लगलहुँ?
कहिया सँ लगलहुँ से त नईं बुझल अछि, मूदा बच्चे सँ जनकपुर आ लऽग परोसक गाँव सबहक एकौटा मञ्च हमरासँ नई छुटैत छल।
२. पहिलबेर आहाँक रेकर्डेड गीत कोन अछि
पहिलबेर हम नेपाल सँ बहराएल अशोक चौधरीक मैथिली कैसेट पानस में गीत गएने छलहुँ।
३. मैथिली गीत सँगीतक अवस्था केहन बुझा रहल अछि?
जतेक होयबाक चाही ओतेक सँतोष जनक नहि अछि। नव नव प्रतिभा जाहि तरहेँ एबाक चाही, नई आबि रहल छैक। दोसर बात अखन प्रविधि एतेक परफेक्ट भऽगेल छैक जे पाइ सेहो वड खर्च होइत छैक ।
४. की बुझाइया, मैथिली गीत सँगीतमें लागिकऽ अखनुक युगमें बाँचल जा सकैत अछि
एकदम नीक जकाँ बाँचल जा सकैया एही क्षेत्रमें लागिकऽ। मैथिलीक क्षेत्र बहुत पैघ छियै। जौं मेहनतिसँ नीक काज कएल जाए त मैथिलीयो सँगीतक क्षेत्रमें बहुत पाई छै। उदाहरण लऽ सकैत छी, हमरे सबहक कैसेट “रे छौंडा तोरा बज्जर खसतौ”के जे १५ लाख प्रति बिकाएल छल। तहिना “गीत घरघर के” जे जहिया सँ बहरायल तहिया सँ आइयोधरि बिकाइते अछि। हँ, काज नीक होयबाक चाही।
५. प्यारोडीके प्रभाव केहन पडि रहल छैक मैथिली गीत सँगीत पर?
प्यारोडी मौलिकके साफ साफ खतम कऽ दैत छैक। गीत सँगीतक क्षेत्रमें लागल श्रष्टा सबके मनोवलके तोडिकऽ राखिदेने छैक प्यारोडी गीतसब।
६. प्यारोडी गीत सँगीत सँ पिण्ड छुटबाक उपाय की
देखियौ, जखन अपन सँगीत या गीत नई हुए तखन प्यारोडीके किछु हद धरि पचाओल जाऽ सकैया, मूदा मैथिलीमे अपन मौलिक सँगीतक आभाव त कहियो नई रहलै। जहाँतक प्यारोडी गीत सँगीत सँ पिण्ड छुटेवाक बात छई त अइमे आम जे श्रोता सब छथि, जे वास्तविक रुपमें चाहैत छथि की अप्पन मौलिक सँगीतक विकास होइ, हूनका सबके प्यारोडी गीतके निरुत्साहित करबाकलेल ताहि प्रकारक क्यासेट किनऽसँ परहेज करऽ पडतन्हि आ सँचार माध्यम सबके सेहो ओहन गीत बजेवा सँ बचऽ पडतन्हि, तखने ई सँभव अछि।
७. नेपालीय आ भारतीय मिथिलाञ्चलमें मैथिलीक बहुत रास काज भऽ रहल छैक, की अन्तर बुझाऽ रहल अछि दूनु देशक मैथिलीक काजमे
हम त मात्र एतबा बुझैत छियै जे एकटा हमर सहोदरा विदेशमे कमाऽरहल अछि आ हम नेपालमे। दूनु ठाम अपना अपना तरहें काज भऽरहल अछि एतबे बुझु।
८. अखन सऽभ भाषाक गीतमे रिमिक्सके बाढि आएल बुझाति छई, एकरा कोन रुप सँ आहाँ देखैत छियै?
बहुत नीकबात छई रिमिक्स गीत औनाई। समय अनुसार आधुनिकीकरण होयबाके चाही। समाजकलेल आ बजारकलेल गीत गौनाई दूनु दूटा बात छियै, ताहिमें गीत सँगीतक व्यावसायीकरणमे रिमिक्स बहुत नीक सँकेत छई। रिमिक्स गीत बहरेवाक चाही बशर्ते अपन सँस्कार नई लुप्त भऽ जाई ताइके ध्यानमें रखैत।
९. अखनधरि कतेक गीत गएलहुँ जे रेकर्डेड अछि?
अखनधरि लगभग साढे तीनसय गीत हम गाबि चुकल छी जे रेकर्डेड अछि।
१०. क्यासेटके अलावा कोन फिल्ममें अपन स्वर देने छी आहाँ ?
मैथिलीमे दहेज,ममता,प्रितम,आशिर्वाद फिल्ममे, तहिना भोजपुरी फिल्मसब सजना के आगना, ममता, तहार गलिया आदिमे ।
११. स्टेज शो के सीलसीलामे कतऽ कतऽ गेलहुँ?
अपन देश नेपालक लगभग सबठामके अलावा, कतार (४बेर), दूवई (२बेर), मलेशिया, पाकिस्तान, बंगलादेश, भारतक विभिन्न शहरमें अखन धरि जाऽचुकल छी।
१२. नव की आबि रहल अछि मैथिल श्रोता सबहक लेल?
बहुत जल्दिए निखिल राजेन्द्रक सँगीतमे भेनस क्यासेट सँ रिलिज भऽ रहल अछि....
(सौजन्य: मनोज मुक्ति)

डा. राम दयाल राकेश
अन्तर्वार्ता
सरकारके ध्यान छठि पावनिपर देवाक चाही.....डा. राम दयाल राकेश (सँस्कृति विद)
छठि पावनि मधेसक संस्कृति किएक मानल जाईत अछि ?
–छठि पावनिक अपने मौलिक विशेषता छइ,, ई पावनि शुरु होबऽ सँ एकमहिना पहिने सँ पावनि कयनिहार सब तैयारी मे लाईग जाईत छथि । एकर तैयारी आ पूजाके जौं देखल जाय त अईमे विशुद्ध मधेसी संस्कृति पाओल जाईत अछि। पावनि केनिहार सँ लएकए ओहि तैयारीमे लागल हरेक व्यक्ति ओ संस्कृतिमे भीजल रहल पाओल जाइत अछि। ओकर प्रसाद सँ लऽक हरेक सामगी्रमे मधेसक संस्कृति देखल जाईत छक, ओ पावनिके अवसरमे गावै वाला विभिन्न धुन तथा गीत सब मैथिल संस्कृतिमे गाओल जाईत अछि।
ई पावनि कियाक मनाओल जाईत अछि ?
–एकर अपने पहिचान आ विशेषता छैक। सब पावनि सँ अई पावनिके अपने इतिहास छैक किया त कोनो पावनि एसगरे अपना घर परिवार मे रहिकऽ मनाओल जाइत अछि मुदा ई एकटा एहन पावनि अछि जे खुला जगहमे सामूहिक रुप सँ मनाओल जाइत अछि। अई पावन के मात्रे लोकतान्त्रीक पावनि कहल जा सकैय कियाक त अई पावनि मे कोनो भेदभाव उच्च नीच, जात भात नई देखल जाइत अछि। अई पावनिमे सूर्यके पुजा भेलाके कारण आओर एकर गरीमा के उच्च देखल जा सकैय। सूर्य जहिना ककरो पर भेदभाव नई क कऽ सम्पूर्ण जगतके रोशनी प्रदान करैत अछि, तहिना छठि पावनि सब के एक समान रुप सँ देखैत आईव रहल छैक।
ई पावनि अपना परीवार के सुख समृद्धिके लेल तथा कोनेा रोग व्यधा नई लागै से मनोकामना सँ मनाओल जाइत अछि। भोर आ साँझक सूर्यके किरणमे एक प्रकारके गरीमा होईत अछि जकरा रोशनी सँ शरीरमे रहल विभिन्न विमारी फैलाब वाला किटाणु सबके नष्ट सेहो करैत चर्मरोग सँ बचाबैत अछि। चर्म रोगके अचुक दवाई मानल जाईत अछि छठि पावनि।
छठि पर्व मे महिला सब अपना आचरा पर नटुवा कियाक नचवैत छैथ ?
–एकरा एकटा श्रद्धाके रुपमे लेल जा सकैय, छठि माताके ध्यानमे राखि क कोनो किसीमके मनोकमना केला सँ जौं ओ पुरा भ जाईछै त ओई देवता पर आरो श्रद्धा बैढ जाईछै आ ओहि किसीमके कौबुला क क अपना आँचर पर नटुवा नचवैत छैथ।
छठिक घाट पर चमार जाईत सब ढोल( डुगडुगीया) बजावैत छथि, ओकर कि विशेषता अछि ?
–ओकरो जातिय तथा संस्कृति परिचयके रुपमे लेल जा सकैय, ओ जाईत सब अपन संस्कृति आ संस्कारके बचएबाक लेल ओ काज क रहल अछि। ओ ढोल बजला सँ घाट पर कतेक मधुरता आ रौनक महशुस होईत रहैत अछि, ओना त कते लोक सब अग्रेजी वाजा बाजा क पावैन मानावैत छैथ मुदा जतेक ढोल पीपही के आवाजमे संस्कृति के झलक भेटैत अछि ओते कोनो बाजामे नई।
अई पावनि मे सूर्यके पुजा होईतो पर छठि माता या छईठ परमेश्वरीके नाम सँ कियाक जानल जाईत अछि ?
–सूर्यके अर्थ उषा होईत अछि, उषा भगवतिके रुपमे पुजलाके कारण एकरा छठी माताके रुपमे सम्बोधन कायल जाइत छैक। ओना त स्पष्ट रुपमे कतौ ने अई विषयमे चर्चा भेल अछि लेकीन किछ शास्त्रमे महाभारत के कुन्ति शुरुमे छठि पावनि केनेे रहैथ ओही दिन सँ छठि पावनि शुरु भेल अछि से कतौ कतौ उल्लेख पाएल जाईत अछि।
दिनकर के आ जलके कि सम्बन्ध अछि ?
–जल के आ दिनानाथके बहुत गहिर सम्बन्ध अछि, बिना जलके दिनकरके पुजे नई भऽ सकैय हुनका खुश करबाक लेल जल चाहबेटा करी। छठिएके उदाहरणके रुपमे लऽ लिय, ओ पावनि बिना जल के नई भऽ सकैय कोनो जलासय नई भेला पर अपना घरमे खधिया खनि क ओइमे जल राईख क पावनि सम्पन्न करैत अछि, कियाक त दिनानाथे सूर्य छथि। एकटा एहो कहि सकै छि कि सूर्य मे बहूत गर्मी भेला के कारण जल के अर्घ देला सँ ओ किछ ठन्ढा होइत छैथ।
लोकतान्त्रिक गणतन्त्रमे छठि पावनिके संस्कृतिके बारे मे अपने कि कहब अछि ?
–हम गणतन्त्र नई कहिक लोकतन्त्रके चर्चा करैत ई कहव कि छठि एकटा विशुद्ध लोकतान्त्रिक पावन अछि, समानुपातिक ढगं सँ एकरा मनाओल जाइत अछि। सामूहिक रुपमे मनबाक सँगहि अई मे कोनो भेद भाव नई होइत अछि। गरीब सँ लक धनीक तक सब एकरा समान ढगं मनावैत अछि।
जनता गणतन्त्रके रस्ता चलनाई शूरु कदेलक मुदा सरकार अखुनोे पाछा परल अछि। अखनोे मधेसी पहाडी बीच , दलित गैर दलित बीच, गरीब धनीकके बीच भेदभाव अछि, कि एकरे गणतन्त्र कहबै ? नवका नेपाल बनाबऽ लागल नेेतागण सबके छठि पावनि सँ किछ सिखवाक चाहि।


साहित्य मनीषी मायानन्द मिश्रसँ

साक्षात्कार
शिव प्रसाद यादव द्वारा। डा. श्री शिवप्रसाद यादव, मारवाड़ी महाविद्यालय भागलपुरमे मैथिली विभागाध्यक्ष छथि।
भागलपुरक नामी-गामी विशाल सरोवर ’भैरवा तालाब’। जे परोपट्टामे रोहु माछक लेल प्रसिद्ध अछि। कारण एहि पोखरिक माँछ बड स्वादिष्ट। किएक ने! चौगामाक गाय-महींसक एक मात्र चारागाह आर स्नानागार भैरबा पोखडिक महाड। दक्षिणबडिया महाड पर मारवाड़ी महाविद्यालय छात्रावास। छात्रावासक प्रांगणमे हमर (अधीक्षक) निवास। आवासक प्रवेश द्वार पर लुक-खुक करैत साँझमे बुलारोक धाप। हॉर्नक ध्वनि सुनि दौडि कए घरसँ बहार भेलहुँ। दर्शन देलनि मिथिलाक त्रिपूर्ति, महान विभूति- दिव्य रूप। सौम्य ललाट। ताहि पर चाननक ठोप, भव्य परिधान। ताहि पर मिथिलाक पाग देखितहि मोन भेल बाग-बाग। नहुँ-नहुँ उतरलनि- साहित्य मनीषी मायानन्द, महेन्द्र ओऽ धीरेन्द्र। गुरुवर लोकनिक शुभागमनसँ घर-आँगन सोहावन भए गेल। हृदय उमंग आ उल्लाससँ भरि गेल। मोन प्रसन्न ओऽ प्रमुदित भए उठल। गुरुवर आसन ग्रहण कएलनि, यथा साध्य स्वागत भेलनि। तदुपरान्त भेंटवार्ताक क्रम आरम्भ भए गेल। प्रस्तुत अछि हुनक समस्त साहित्य-संसारमे समाहित भेंटवार्ताक ई अंश:-
प्र. ’मिथि-मालिनी’ केँ अपने आद्योपान्त पढल। एकर समृद्धिक लेल किछु सुझाव?
उ. ’मिथि मालिनी’ स्वयं सुविचारित रूपें चलि रहल अछि। स्थानीय पत्रिका-प्रसंग हमर सभ दिनसँ विचार रहल अछि जे एहिमे स्थापित लेखकक संगहि स्थानीय लेखक-मंडलकेँ सेहो अधिकाधिक प्रोत्साहन भेटक चाही। एहिमे स्थानीय उपभाषाक रचनाक सेहो प्रकाशन होमक चाही। एहिसँ पारस्परिक संगठनात्मक भावनाक विकास होयत।
प्र. ’मिथिला परिषद’ द्वारा आयोजित विद्यापति स्मृति पर्व समारोहमे अपनेकेँ सम्मानित कएल गेल। प्रतिक्रिया?
उ. हम तँ सभ दिनसँ मैथिलीक सिपाही रहलहुँ अछि। सम्मान तँ सेनापतिक होइत छैक, तथापि हमरा सन सामान्यक प्रति अपने लोकनिक स्नेह-भाव हमरा लेल गौरवक वस्तु भेल आ मिथिला परिषदक महानताक सूचक। हमरा प्रसन्न्ता अछि।
प्र. अपने साहित्य सृजन दिशि कहियासँ उन्मुख भेलहुँ?
उ. तत्कालीन भागलपुर जिलाक सुपौलमे सन् ४४-४५ मे अक्षर पुरुष पं रामकृष्ण झा ’किसुन’ द्वारा मिथिला पुस्तकालयक स्थापना भेल छल तकर हम सातम-आठम वर्गसँ मैट्रिक धरि अर्थात् ४६-४७ ई सँ ४९-५० ई.धरि नियमित पाठक रही। एहि अध्ययनसँ लेखनक प्रेरणा भेटल तथा सन् ४९ ई. सँ मैथिलीमे लेख लिखऽ लगलहुँ जे कालान्तरमे भाङक लोटाक नामे प्रकाशितो भेल सन् ५१ ई. मे। हम तकर बादे मंच सभपर कविता पढऽ लगलहुँ।
प्र. अपने हिन्दी एवं मैथिली दुनू विषयसँ एम.ए. कएल। पहिल एम.ए. कोन विषयमे भेल?
उ. मैट्रिकमे मैथिली छल किन्तु सन् ५० ई. मे सी.एम. कालेज दरभंगामे नाम लिखेबा काल कहल गेल जे मैथिलीक प्रावधान नहि अछि। तैँ हिन्दी रखलहुँ। तैँ रेडियो, पटनामे काज करैत, सन् ६० ई. मे पहिने हिन्दीमे, तखन सन् ६१ ई. मे मैथिलीमे एम. ए. कएलहुँ।
प्र. हिन्दी साहित्यमे प्रथम रचना की थीक आ कहिया प्रकाशित भेल।
उ. हिन्दीक हमर पहिल रचना थिक, ’माटी के लोक: सोने की नया’ जे कोसीक विभीषिका पर आधारित उपन्यास थिक आ जे सन् ६७ ई. मे राजकमल प्रकाशन, दिल्लीसँ प्रकाशित भेल।
प्र.अपनेक हिन्दी साहित्यमे १. प्रथम शैल पुत्री च २. मंत्रपुत्र ३. पुरोहित ४. स्त्रीधन ५. माटी के लोक सोने की नैया, पाँच गोट उपन्यास प्रकाशित अछि। एहिमे सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण उपन्यास कोन अछि आओर किएक?
उ. अपन रचनाक प्रसंग स्वयं लेखक की मंतव्य दऽ सकैत अछि? ई काज तँ थिक पाठक आ समीक्षक लोकनिक। एना, हिन्दी जगतमे हमर सभ ऐतिहासिक उपन्यास चर्चित रहल अछि। अधिक हिन्दी समीक्षक प्रशंसे कएने छथि। गत वर्षसँ हिन्दीक सम्राट प्रो. नामवर सिंह जी हिन्दीक श्रेष्ठ उपन्यास पर एकटा विशिष्ट कार्य कऽ रहल छथि, जाहिमे हमर प्रथम शैल-पुत्री नामक प्रगैतिहासिक कालीन उपन्यास सेहो संकलित भऽ रहल अछि। एहि उपन्यास पर विस्तृत समीक्षा लिखने छथि जयपुर युनिवर्सिटीक डा शंभु गुप्त तथा हम स्वयं लिखने छी एहि उपन्यासक प्रसंग अपन मंतव्य। ई पुस्तक राजकमल प्रकाशनसँ छपि रहल अछि। असलमे प्रथम शैलपुत्री’ मे अछि भारतीय आदिम मानव सभ्यताक विकासक कथाक्रम- जे कालान्तरमे हडप्पा अथवा सैंधव सभ्यताक निर्माण करैत अछि जकर क्रमशः अंत होइत अछि। हम स्वयं एकरा अपन सफल रचना मानैत छी, समीक्षको मानि रहलाह अछि। एना, पुरोहित अपना नीक लगैत अछि। ’स्त्रीधन’ मिथिलाक इतिहास पर अछि।

No comments:
Post a Comment