सुभाष चन्द्र यादव, कथाकार, समीक्षक एवं अनुवादक, जन्म ०५ मार्च १९४८, मातृक दीवानगंज, सुपौलमे। पैतृक स्थान: बलबा-मेनाही, सुपौल- मधुबनी। आरम्भिक शिक्षा दीवानगंज एवं सुपौलमे। पटना कालेज, पटनासँ बी.ए.। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्लीसँ हिन्दीमे एम.ए. तथा पी.एह.डी.। १९८२ सँ अध्यापन। सम्प्रति: अध्यक्ष, स्नातकोत्तर हिन्दी विभाग, भूपेन्द्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय, पश्चिमी परिसर, सहरसा, बिहार। मैथिली, हिन्दी, बंगला, संस्कृत, उर्दू, अंग्रेजी, स्पेनिश एवं फ्रेंच भाषाक ज्ञान।
प्रकाशन: घरदेखिया (मैथिली कथा-संग्रह), मैथिली अकादमी, पटना, १९८३, हाली (अंग्रेजीसँ मैथिली अनुवाद), साहित्य अकादमी, नई दिल्ली, १९८८, बीछल कथा (हरिमोहन झाक कथाक चयन एवं भूमिका), साहित्य अकादमी, नई दिल्ली, १९९९, बिहाडि आउ (बंगला सँ मैथिली अनुवाद), किसुन संकल्प लोक, सुपौल, १९९५, भारत-विभाजन और हिन्दी उपन्यास (हिन्दी आलोचना), बिहार राष्ट्रभाषा परिषद्, पटना, २००१, राजकमल चौधरी का सफर (हिन्दी जीवनी) सारांश प्रकाशन, नई दिल्ली, २००१, मैथिलीमे करीब सत्तरि टा कथा, तीस टा समीक्षा आ हिन्दी, बंगला तथा अंग्रेजी मे अनेक अनुवाद प्रकाशित।
भूतपूर्व सदस्य: साहित्य अकादमी परामर्श मंडल, मैथिली अकादमी कार्य-समिति, बिहार सरकारक सांस्कृतिक नीति-निर्धारण समिति।–सम्पादक
कनियाँ-पुतरा
जेना टांग छानै छै, तहिना ऊ लड़की हमर पएर पाँज मे धऽ लेलक आ बादुर जकाँ लटैक गेल। ओकर हालत देख ममता लागल। ट्रेनक ओइ डिब्बा मे ठाढ़ भेल-भेल लड़की थाइक कय चूर भऽ गेल रहै। कनियें काल पहिने नीचे मे कहुना बैठल आ बैठलो नै गेलै तऽ लटैक गेल ।
डिब्बा मे पएर रोपै के जगह नै छै। लोग रेड़ कय चढ़ै-ए, रेड़ कय उतरै-ए । धीया-पूता हवा लय औनाइ छै, पाइन लय कानै छै। सबहक जी व्याकुल छै। लोग छटपटा रहल-अय।
हम अपने घंटो दू घंटा सऽ ठाढ़ रही । ठाढ़ भेल-भेल पएर मे दरद हुअय लागल। मन करय लुद सिन बैठ जाइ । तखैनिये दूटा सीट खाली भेलै, जइ पर तीन गोटय बैठल । तेसर हम रही जे बैठब की, बस कनेटा पोन रोपलौं। ऊ लड़की ससैर कय हमरा लग चैल आयल । पहिने ठाढ़ रहल, फेर बैठ गेल । फेर बैठले-बैठल हमर टांगमे लटैक गेल । जखैन ऊ ठाढ़ रहय तऽ बापक बाँहि मे लटकल रहय । ओकरा हम बड़ी काल लटकल देखने रहिऐ । ओकर बाप अखैनियों ठाढ़े छै। छोट बहीन आ भाय ओकरे बगल मे नीचे मे बैठल औंघा रहल छै ।
ऊ जे टांग छानने ऐछ, से हमरा बिदागरी जकाँ लाइग रहल-अय । जाइ काल बेटी जेना बापक टांग छाइन लै छै, तेहने सन । ने ऊ कानै-अय, ने हम कानै छी । लेकिन ओकर कष्ट, ओकर असहाय अवस्था उदास कऽ रहल-अय । हम निश्चल-निस्पंद बैठल छी । होइए हमर सुगबुगी सऽ ओकर बिसबास, ओकर असरा कतौ छिना नै जाय । हाथ ससैर जाइ छै तऽ ऊ फेर ठीक सँ टांग पकैड़ लै अय ।
लड़की दुबर-पातर आ पोरगर छै । हाथ मे घड़ी । प्लास्टिकक झोरा मे राखल मोबाइल । लागै छै नौ-दस सालक रहय । मगर कहलक जे बारह साल के ऐछ । सतमा मे पढ़ै-अय आ ममिऔत भाइक बियाह मे जा रहल-अय ।
बेर-बेर जे हाथ ससैर जाइत रहै से आब ऊ हमर ठेंगहुन पर मूड़ी राइख देलक-अय। जेना हम ओकर माय होइ अइ । ओकर माय संग मे नै छै । कतय छै ओकर माय? जकर कनहा पर, पीठ पर, जाँघ पर कतौ ऊ मूड़ी राइख सकैत रहय । हम ओकर माथ पर हाथ देलिऐ । ऊ और निचेन भऽ गेल जेना ।
एक बेर गाड़ीक धक्का सऽ ऊ ससैर गेल; सोझ भेल आ ऑंइख खोललक। एक गोटय कहलकै- दादा कय कसि कय पकड़ने रह ।
अंतिम टीशन आइब रहल छै । सब उतरै लय सुरफुरा लागल-अय। अपन-अपन जुत्ता-चप्पल, कच्चा-बच्चा आ सामान कय लोग ओरियाबय लागल-अय । राइत बहुत भऽ गेल छै। सब कय अपन-अपन जगह पर जायके चिन्ता छै। बहुत गोटय ठाढ़ भऽ गेल ऐछ । ऊ लड़कियो। हमहूँ ठाढ़ भऽ कऽ अपन झोरा उतारै छी । तखनियें नेबो सन कोनो कड़गर चीज बाँहि सऽ टकरायल। बुझा गेल ई लड़कीक छाती छिऐ । हमर बाँहि कने काल ओइ लड़कीक छाती सऽ सटल रहल। ओइ स्पर्श सऽ लड़की निर्विकार छल; जेना ऊ ककरो आन संगे नै, बाप-दादा या भाय-बहीन सऽ सटल हो ।
ओकर जोबन फूइट रहल छै । ओकरा दिस ताकैत हम कल्पना कऽ रहल छी। अइ लड़कीक अनमोल जोबनक की हेतै ? सीता बनत की दरोपदी ? ओकरा के बचेतै ? हमरा राबन आ दुरजोधनक आशंका घेरने जा रहल ऐछ ।
टीशन आइब गेलै। गाड़ी ठमैक रहल छै । लड़की हमरा देख बिहुँसै—अय; जेना रुखसत माइंग रहल हो । ई केहन रोकसदी ऐछ! ने ऊ कानै छै, ने हम कानै छी । ऊ हँसै-अय, हमहँ हँसै छी।लेकिन हमर हॅसी मे उदासी अय।
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