पिता-स्वर्गीय रामचन्द्र झा, जन्म-२४ - ०७ - १९५४ (ग्राम-भरवाड़ा, जिला-दरभंगा), शिक्षा-स्नातकोत्तर (अर्थशास्त्र),पेशा- शिक्षक। मैथिली, हिन्दी तथा अंग्रेजी भाषा मे लगभग २०० गीत कऽ रचना। गोनू झा पर आधारित नाटक ''हास्यशिरोमणि गोनू झा तथा अन्य कहानी कऽ लेखन। अहि के अलावा हिन्दी मे लगभग १५ उपन्यास तथा कहानी के लेखन। सम्पादक
नो एंट्री: मा प्रविश
दुनियाँ तँ ई धोखा अछि
उत्तर दक्षिण पूरब पश्चिम
ऊगि रहल पनिसोखा अछि। दुनियाँ...
कौआ कर्र-कर्र करकराय रहल,
आँगनमे धान सुखाय रहल।
पेपर रेडियो टी.वी.पर
नेतहुँ तँ शोर मचाय रहल।
हो जिन्दा मुर्दा गाय-महीश
वृद्धा-पेंशन हो या खरात-
हर ठाम कमीशन खाय रहल,
हँसि-हँसि कय गाल बजाय रहल।
आजुक युग के ई शोभा अछि,
ई मान बराईक नोभा अछि। दुनियाँ..
दुनियाँमे अछि सब चोर-चोर,
जकरा हिस्सा नईं भेंटि रहल-
मचबै सगरो तऽ वैह शोर।
काटय केउ सेन्ह अन्हरियामे,
लूटय तऽ केउ इजोरियामे
केउ ठूसय हीरा वोरियामे
बन्दूक बनैत अछि गोहियामे
अछि सबहक सरदार सिपाही
ऊठय निश्चिन्त ओढढियामे
ईमान जतय घर टाटक अछि
ई महल अटारी पापक अछि
दुनियाँ तँ ई धोखा अछि
पूरब पश्चिम उत्तर दक्षिण
ऊगि रहल पनिसोखा।
(१६.०९.९१)
लिखलौं कतेक पत्र कर
जोरि जोरि कऽ
बूझब ओ छल नोरक जगहकेँ छोडि-छोडि कऽ
लिखलौं...
झहरै तऽ बूँद सावनमे, खुब झूमि-झूमि कऽ
बरसै तऽ नोर नित, कपोल चूमि-चूमि कऽ
लिखलौं...
मुरझाय बन तराग बाग तऽ ओ गृष्ममे,
पावस उमंग घोरि रहल, आईपवनमे,
लिखईत छी पाँति हम, ई कलम बोरि-बोरि कऽ।
लिखलौं कतेक...
भेटत नम बूँद फेर, जखन हिम जे पिघलि जैत,
आओत कोना ओ बाढि औ! सरिता सेहो सुखैत
ई लिखि रहल छी आई, आँखि फोडि-फोडि कऽ।
लिखलौं कतेक...
तोरि-गेरि-तोरि कऽ
मुहब्बतमे तऽ तरपब भाग्यमे लिखला प्रभुसबके
रही जौं दूर प्रियतमसँ सजाये मौत त ओ थिक। रही...२
यक्षक विरह छल वर्षकेँ जनलक जगत सगरो-
जहाँ वर्षो विरह के बात छै-
वनवास त ओ थिक। जहाँ...२
ई उपवन ओ शिखा पर्वत आ कल-कल बहि रहल सरिता
अगर अली अछि नज उपवनमे त सुन्दरता कतय ओ थिक। मुहब्बत...
चितवन हो यदि चंचल आ तन
यौवनसँ हो भारी
मगर पावसमे पहु परदेश हो
यौवन कहाँ ओ थिक।
मुहब्बत...
परदेश
रुन-झुन बाजय पायल हमर फूजल बान्हल केश
औ मोर पाहुन धेलहुँ योगिन वेश।
डाढि-डाढिपर फुद-फुद्दी सभ फुदकि रहल,
खढ-खढकेँ समटि बनौने केहन महल
करै परिश्रम मिल कय दुनू नईं छन्हि कोनो क्लेश।औ..
बिजुलीसँ चमकै घर, मुदा अन्हरिया यौ।
टिम-टिम दीप करै छै ओतय अन्हरिया औ
दिन गनैत छी बीति रहल अछि राति कहाँ अछि शेष औ...
सीता शक्ति राम सौम्य जग-प्राण बनल।
पौलनि जगमे नाम घूमि जंगल-जंगल॥
महल त्यागि वनवाश गेलन्हि बना तपस्विन वेश!
औ मोर...
जतबय दुःख हम कहब अहाँ ततबै बुझबै
नहिं पहुँचत जौं पत्र अहाँ नहिंये जनबै
जडतै तेल कोना नईं घरमे पहु जकर परदेश।
औ मोर...
(२०.१०.९१)
रहि-रहि आँचर उडि जाय किया
अहाँ आँचर समटि लजई किया। रहि-रहि..
देखि बागमे सुमन व्यवहार करू,
उठा निज नयनकेँ चारि करू,
अली हर कलीसँ फुस-फुसाय किया। रहि रहि..
चमन छी अहाँ खिलि रहल अय सुमन।
लटसँ लिपटि घूमि चूमन पवन
पडय जतय नजरि लिपटि जाय किया! रहि रहि...
भार सहय कोना करि केहरि अहाँक
राग माधुरी सुनाबय पायल के झनक
देखि अहाँ के हिरदय जुराय किया।
रहि रहि आँचर..
परदेश गेलहुँ
हमरो छोडलहुँ, छोडलहुँ माय के छोडि देलहुँ घरद्वार
परदेश गेलहुँ…
सोनू-मोनू झगड़ा कय-कय हमरो माथ भुकाय रहल
बहिकिरनी तऽ नईं अछि घरमे, कहू करत के हमर टहल?
बौआ सब बौआय रहल अछि, पढतै कथी कपार!
परदेश गेलहुँ..
जन-वन किल्लौल करै छै, कोना जेबै हम दरबज्जा
बौआ दौडल छल सडकपर, गेलहुँ रोटी भेल भुज्जा
माय छथि बूढ, छी एसगर घरमे कोना उठत ई भार!
परदेश गेलउँ। हमरो...
अहाँ जनै छी लोक केहन अछि, के कऽ देतै हाट-बजार,
साल-साल त बाढि अबै छै,उजरै छै सबके संसार,
हेतै समुद्र आँगन-घर सगरो,के कउ देतै पार!
परदेश गेलउँ। हमरो छोडलौ...
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