प्रकाश झा
सुपरिचित रंगकर्मी। राष्ट्रीय स्तरक सांस्कृतिक संस्था सभक संग कार्यक अनुभव। शोध आलेख (लोकनाट्य एवं रंगमंच) आ कथा लेखन। राष्ट्रीय जूनियर फेलोशिप, भारत सरकार प्राप्त। राजधानी दिल्लीमे मैथिली लोक रंग महोत्सवक शुरुआत। मैथिली लोककला आ संस्कृतिक प्रलेखन आ विश्व फलकपर विस्तारक लेल प्रतिबद्ध। अपन कर्मठ संगीक संग मैलोरंगक संस्थापक, निदेशक। मैलोरंग पत्रिकाक सम्पादन। संप्रति राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय, नई दिल्लीक रंगमंचीय शोध पत्रिका रंग-प्रसंगक सहयोगी संपादकक रूपमे कार्यरत।—सम्पादक
बाल-बुदरुकक लेल कविता
(मिथिलामे सभसँ उपेक्षित अछि मिथिलाक भविष्य; यानी मिथिलाक बच्चा। मैथिली भाषामे बाल-बुदरुक लेल किछु गीतमय रचना अखन तक नहि भेल अछि जकरा बच्चा रटिक’ हरदम गाबए-गुनगुणावए होअए जाहिसँ बच्चा मस्तीमे रहै आ ओकर मानसिक विकास दृढ होअए। एहि ठाम प्रस्तुत अछि बौआ-बच्चाक लेल किछु बाल कविता। ) चित्र: प्रीति ठाकुर बिलाडि
बाघक मौसी तूँ बिलाडि
म्याऊँ म्याऊँ बजै बिचारि,
मुसबा के हपसि क’ खाई
कुतबा देख भागि जाई।
बाघ
मौसी तूँ बिलाडि के
बाघ छौ तोहर नाम,
जंगल के तूँ राजा छेँ
बा’’’ बा’’’ केनाइ तोहर काम।
गैया
बाबा यौ! अबै यै गैया
हरियर घास चड़ै यै गैया,
मिठगर दूध दै यै गैया
हमर सभहक मैया गैया।
कुतबा
दिन मे सुतै, राति मे जगै,
चोर भगाबै कुतबा।
रोटी देखिक’ दौडल अबै,
नाड़डि डोलाबै कुतबा।
अनठिया के देखिते देरी,
भौं’’’ भौं’’’ भुकै कुतबा।
हाथी
झूमै-झामैत अबै हाथी,
लम्बा सूढ हिलाबै हाथी,
सूप सनक कान, हाथी,
कारी खटखट पैघ हाथी।
चिड़ै/जानवर
सुग्गा, मेना, कौआ, बगरा,
चिड़ै-चुनमुन के नाम छै।
गैया, बरद, बिलाडि, कुतबा
सभके दादी पोसै छै
कौवा
चार पर बैसलौ कार कौआ,
कारी खटखट देह कौआ।
काव-काव कुचरौ कौआ,
रोटी ल’ क’ उडतौ बौआ॥
सुग्गा
हरियर सुग्गा पिजड़ामे
राम राम रटै छै।
कुतरि-कुतरि क’ ठोर स’
मिरचाई लोंगिया खाई छै ॥
मेघ
कारी-कारी मेघ लगै छै,
झर-झर झिस्सी झहरै छै।
लक-लक लौका लौकै छै,
झमझम-झमझम बरसै छै।
फह-फह फूँही पड़ै छै,
टपटप-टपटप टपकै छै।
दीयाबाती
सुक-सुकराती दीयाबाती, दादी सूप पिटतै।
छुडछुडी, अनार, मिरचैया, खूब फटक्का फोडबै।
जगमग जगमग दीप जराक’ हुक्का लोली भँजबै।
नानी
माँ के माँ हमरे नानी,
मामा के माँ हमरे नानी।
मौसी के माँ हमरे नानी,
खिस्सा सुनाबै हमरा नानी।
छैठ परमेसरी
आइ छै खडना खीर रातिमे, दादी सबके देतै
ढाकी, केरा,कूड़ा ल’ क’, घाट पर हमहू जेबै
भोरे – भोर सूरज के ,अरघ हमहू देखेबै
ठकुआ, मधूर, केरा, भुसवा हाउप हाउप खेबै
No comments:
Post a Comment