श्री डॉ. पंकज पराशर (१९७६-)
मोहनपुर, बलवाहाट चपराँव कोठी, सहरसा। प्रारम्भिक शिक्षासँ स्नातक धरि गाम आ सहरसामे। फेर पटना विश्वविद्यालयसँ एम.ए. हिन्दीमे प्रथम श्रेणीमे प्रथम स्थान। जे.एन.यू.,दिल्लीसँ एम.फिल.। जामिया मिलिया इस्लामियासँ टी.वी. त्रकारितामे स्नातकोत्तर डिप्लोमा। मैथिली आ हिन्दीक प्रतिष्ठित पत्रिका सभमे कविता, समीक्षा आ आलोचनात्मक निबंध प्रकाशित। अंग्रेजीसँ हिन्दीमे क्लॉद लेवी स्ट्रॉस, एबहार्ड फिशर, हकु शाह आ ब्रूस चैटविन आदिक शोध निबन्धक अनुवाद। ’गोवध और अंग्रेज’ नामसँ एकटा स्वतंत्र पोथीक अंग्रेजीसँ अनुवाद। जनसत्तामे ’दुनिया मेरे आगे’ स्तंभमे लेखन। रघुवीर सहायक साहित्यपर जे.एन.यू.सँ पी.एच.डी.।–सम्पादक
रावलपिंडी
1.
रावलपिंडी सँ आइयो बहुत दूर लगैत छैक लाहौर
बहुत दूर...
जतय स्वतंत्रता केर समवेत स्वर
प्रचंड नरमेधक इतिहास मे बदलि गेल छल
दूर-दूर होइत समय मे अनघोल करैत
अनंत स्वर-श्रृंखला...
जेहो सब छल निकट
सेहो दूर भेल जा रहल अछि
दूर-दूर होइत बहुत किछु
आब विलीन भेल जा रहल अछि
चारू दिशा मे टहलैत इंसाफी मरड आ छडीदार लोकनि
इंसाफ करबाक लेल अपस्यांत
वर्तमान सँ भविष्य धरि
अगुताएल छथि इतिहासो मे घुरि कए
इंसाफ करबाक लेल
2.
जखन हम फोन पर होइत छी खांटी मातृभाषी
बजैत मायक लेल चिंताहरण बोल
आ कि टैक्सी रोकैत हमर ड्राइवर करीम खान
अविश्वास आ आश्चर्य भरल स्वर मे पुछैत अछि-
-भाय तोंय हिंदुस्तानी छहो?
हमरा अब्बा सँ तनी मिलभो-
हुनि बोलइ छथिन इएह बोली
जे तोंय अखनी बोलइ रहो
आ शनैः शनैः पसरि जाइत अछि हमरा टैक्सी मे आकुल-व्याकुल अविभाजित देशक भागलपुर
लाहौरक बाट मे
3.
हमरा डाकघरक मोहर मे आइयो कायम अछि मुंगेर
आ एतय कतरनी धानक चूड़ा मोन पाड़ैत करीम खानक वृद्ध पिता
दुनिया सँ जयबा सँ पूर्व एक बेर
जाइ चाहैत छथि अपन देसकोस
एकटा देश भेटबाक बादो ओ तकैत छथि
अप्पन देसकोस!
अपन देस सँ नगर-नगर बौआइत
पहुँचल छी रावलपिंडी
जतय आइयो पछोड धयनेँ अछि हमर
अप्पन देसकोस!
कोस-कोस पर परिवर्तित होइत पानि
एतेक दूर ओहिना लगैत अछि
जेहन अपन गाम केर इनारक
आ दस कोस पर परिवर्तित होइत बोली
साठि-एकसठ बरखक बादो ओहने लगैत अछि
जेहन आजुक भागलपुरक
No comments:
Post a Comment