भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

(c) २०००-२०२२ सर्वाधिकार सुरक्षित। विदेहमे प्रकाशित सभटा रचना आ आर्काइवक सर्वाधिकार रचनाकार आ संग्रहकर्त्ताक लगमे छन्हि।  भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल http://www.geocities.com/.../bhalsarik_gachh.html , http://www.geocities.com/ggajendra   आदि लिंकपर  आ अखनो ५ जुलाइ २००४ क पोस्ट http://gajendrathakur.blogspot.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html   (किछु दिन लेल http://videha.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html   लिंकपर, स्रोत wayback machine of https://web.archive.org/web/*/videha   258 capture(s) from 2004 to 2016- http://videha.com/  भालसरिक गाछ-प्रथम मैथिली ब्लॉग / मैथिली ब्लॉगक एग्रीगेटर) केर रूपमे इन्टरनेटपर  मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितक रूपमे विद्यमान अछि। ई मैथिलीक पहिल इंटरनेट पत्रिका थिक जकर नाम बादमे १ जनवरी २००८ सँ "विदेह" पड़लै। इंटरनेटपर मैथिलीक पहिल उपस्थितिक यात्रा विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि, जे http://www.videha.co.in/   पर ई प्रकाशित होइत अछि। आब “भालसरिक गाछ” जालवृत्त 'विदेह' ई-पत्रिकाक प्रवक्ताक संग मैथिली भाषाक जालवृत्तक एग्रीगेटरक रूपमे प्रयुक्त भऽ रहल अछि। विदेह ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA

 

(c)२०००-२०२२. सर्वाधिकार लेखकाधीन आ जतऽ लेखकक नाम नै अछि ततऽ संपादकाधीन। विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA सम्पादक: गजेन्द्र ठाकुर। सह-सम्पादक: डॉ उमेश मंडल। सहायक सम्पादक: राम वि‍लास साहु, नन्द विलास राय, सन्दीप कुमार साफी आ मुन्नाजी (मनोज कुमार कर्ण)। सम्पादक- नाटक-रंगमंच-चलचित्र- बेचन ठाकुर। सम्पादक- सूचना-सम्पर्क-समाद- पूनम मंडल। सम्पादक -स्त्री कोना- इरा मल्लिक।

रचनाकार अपन मौलिक आ अप्रकाशित रचना (जकर मौलिकताक संपूर्ण उत्तरदायित्व लेखक गणक मध्य छन्हि) editorial.staff.videha@gmail.com केँ मेल अटैचमेण्टक रूपमेँ .doc, .docx, .rtf वा .txt फॉर्मेटमे पठा सकै छथि। एतऽ प्रकाशित रचना सभक कॉपीराइट लेखक/संग्रहकर्त्ता लोकनिक लगमे रहतन्हि,'विदेह' प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका मात्र एकर प्रथम प्रकाशनक/ प्रिंट-वेब आर्काइवक/ आर्काइवक अनुवादक आ आर्काइवक ई-प्रकाशन/ प्रिंट-प्रकाशनक अधिकार ऐ ई-पत्रिकाकेँ छै, आ से हानि-लाभ रहित आधारपर छै आ तैँ ऐ लेल कोनो रॊयल्टीक/ पारिश्रमिकक प्रावधान नै छै। तेँ रॉयल्टीक/ पारिश्रमिकक इच्छुक विदेहसँ नै जुड़थि, से आग्रह। रचनाक संग रचनाकार अपन संक्षिप्त परिचय आ अपन स्कैन कएल गेल फोटो पठेताह, से आशा करैत छी। रचनाक अंतमे टाइप रहय, जे ई रचना मौलिक अछि, आ पहिल प्रकाशनक हेतु विदेह (पाक्षिक) ई पत्रिकाकेँ देल जा रहल अछि। मेल प्राप्त होयबाक बाद यथासंभव शीघ्र ( सात दिनक भीतर) एकर प्रकाशनक अंकक सूचना देल जायत।  एहि ई पत्रिकाकेँ श्रीमति लक्ष्मी ठाकुर द्वारा मासक ०१ आ १५ तिथिकेँ ई प्रकाशित कएल जाइत अछि।

स्थायी स्तम्भ जेना मिथिला-रत्न, मिथिलाक खोज, विदेह पेटार आ सूचना-संपर्क-अन्वेषण सभ अंकमे समान अछि, ताहि हेतु ई सभ स्तम्भ सभ अंकमे नइ देल जाइत अछि, ई सभ स्तम्भ देखबा लेल क्लिक करू नीचाँ देल विदेहक 346म आ 347 म अंक, ऐ दुनू अंकमे सम्मिलित रूपेँ ई सभ स्तम्भ देल गेल अछि।

“विदेह” ई-पत्रिका: देवनागरी वर्सन

“विदेह” ई-पत्रिका: मिथिलाक्षर वर्सन

“विदेह” ई-पत्रिका: मैथिली-IPA वर्सन

“विदेह” ई-पत्रिका: मैथिली-ब्रेल वर्सन

 VIDEHA_346

 VIDEHA_346_Tirhuta

 VIDEHA_346_IPA

 VIDEHA_346_Braille

 VIDEHA_347

 VIDEHA_347_Tirhuta

 VIDEHA_347_IPA

 VIDEHA_347_Braille

 

विदेह: वर्ष:2::मास:17::अंक:33- part I I I

३. पद्य

३.१. अन्हारक विरुद्ध- भ्रमर

३.२. कामिनी कामायनी: लिखत

के प्रेम गीत

३.३. विवेकानंद झा-कविता आ की सुजाता/ चान आ चान्नी

३.४. सतीश चन्द्र झा- मध्य वर्गक सपना

३.५ मनक तरंग- सुबोध ठाकुर

३.६. ज्योति-महावतक हाथी

रामभरोस कापडि भ्रमर

अन्हारक विरुद्ध

उपर अन्हार
निचां अन्हार
वाम अन्हार
दहिन अन्हार
विगत अन्हार
आगत अन्हार
चारुभर अन्हार
अन्हारेअन्हारक विचमे
बन्न भेल जकां
कोनो कृष्णक प्रतिक्षामे
संक्रमणक नामपर
एहि आन्हर वर्तमानकें
सहि रहलहुं अछि !
ई सहब हमर नामर्दी
किन्नहु नहि अछि,
एहि अन्हारक विरुद्ध
विगतक कएकटा आन्दोलन
हमर पुरुषार्थकें
दुनियांक आगां स्थापित
चुकल अछि ।
हम अपन ताही पुरुषार्थकें
रक्षार्थ एहि अन्हारक
संतापकें सहेजबाक उपक्रम
रहल छी,
संक्रमण वितबाक प्रतिक्षा
रहल छी,
रैतीसं शासक बनबाक
सुखद अनुभूति
किछु कालक हेतु
चकबन्न कोनो कोठरीमे
पडबासं वेजाय नहि हयत,
तएं गणतन्त्र आ नयां नेपाल
नयां गणतन्त्र आ नयां नेपाल
नयां सम्विधान आ जनताक सत्ता
चकबन्न कोठरीक कोनो
खिडकीक दोग द इजोत बनि
अवस्से आओत
नहि हएतै विफल संघर्षक प्रतिफल
एहि कारी गुजगुज कोठरीमे
हाथपैर मारिमारि क
तेहने नव इजोतक हेतु
हमरा सभक ई संघर्ष
कहियो उफांटि नहि हयत
विराट कारी रातिकें
चिरबा लेल दिऔरीक
लुकझुक टेमीक प्रकाश
हमर आदर्श रहल अछि,
अन्हारक विरुद्ध हमर ई संघर्ष
नव क्षितिजक अन्वेषण करत
जत्त सरिपहुं
इजोतक टा साम्राज्य हयतै !!

1

Manoj Sada said...

bhramar ji sada anharak virudh rahait chhathi aa te manniya chhathi.

Reply05/05/2009 at 11:58 AM

कामिनी कामायनी: मैथिली अंग्रेजी आ हिन्दीक फ्रीलांस जर्नलिस्ट छथि।

लिखत के प्रेम गीत

कदंबक गाछ तऽ कटि

चुकल छऽल आब

कृशकाय

एकसरि ठाढ राधा

हेरए छलीह एखनाे कृष्णक बाट

सखी सब पहिने संग छाेङलन्हि

आब मुरारी सेहाे लापता

केहेन घाेर कलिकाल

प्रेमक शाश्वत कलि

काेना मुरझा गेलय

नहिं बाचल हृदयक उद्वेग

नहि रहल आब आे राग अनुराग

पाेखरी क घाट ़़ गाछी इर्नार

सब जेना विरान भ गेलए

चिङै चुनमुन चुप्

चारहु कात जेना अन्हार घुप्

प्रेम कत्तय उङि गेल कपूर सन

कत्त ताकू ़़ काेन बाध काेन बाेन

साेचैत छथि राधा भरल आखि स

कि जखन प्रेमी नहि त लिखत के प्रेम गीत

के लिखत जाैवन के मधुर मधुर प्रीत

ताकै छथि व्याकुल भ धरती आकास के

गाछ बिरीछ ़़ लता कु ़़दूर पास के

लिखत के प्रेम गीत लिखत के प्रेम गीत

विद्यापति जबाब दाैथ

कामिनी कामायनी

2449

1

Jitendra Nagabansi said...

कदंबक गाछ तऽ कटि

चुकल छऽल आब

बड्ड नीक कविता कामिनी कामायिनी जीक।

Reply05/05/2009 at 11:59 AM


विवेकानंद झा
,वरिष्ठ उप-संपादक छथि नई दुनिया मीडिया प्राइवेट लिमिटेडमे।

1.कविता आ की सुजाता/ 2.चान आ चान्नी

कविता आ की सुजाता

बूझल नहि
कखन कत्त आ कना
हमरा आंखि मे बहऽ लागल
कविता
नदी बनि कऽ

भऽ गेल ठाढ
पहाड
करेज मे
जनक बनि कऽ

देखलिए
चिडै चुनमुन
नहि डेराइत अछि
आब

खेलाइत अछि
हमरा संग
गाछीक बसात
अल्हड अछि
मज्जर विहीन
भूखले पेट
नचैत अछि
झूमैत अछि
कारी मेघ माथ पर
अकस्मात कानि उठैछ
सुजाता सुन्नरि
र संऽ चटचट गाल
चान पर कारी जेना

चान आ चान्नी

अहां कें नहि लगैछ
जे चान आ चानक
शुभ्र धवल इज
आ ओहू सऽ नीक हेतै
इ कहब
जे चान आ ओकर चाननी आकी इजरिया
दू टा नितांत भिन्न आ फराक चीज थिकै

ईश्वर जखन बनौलकै चान
तऽ सुरुज संऽ मंगलकै
कनेक टा इज
आ ओहि इजत कें चान
जादूगर जेकां
इजरिया बना देलकै
जेना प्रेम जाधरि रहैत छै
करेज में
ा कें
लैला मजनू बना दैत छै
चंद्रमहन के चांद
आ अनुराधा कें फिजां
बना दैत छै
आ फेर तऽ वएह अन्हरिया व्यापि जाइत छैक चहुंदिश

मुदा हम तऽ कहैत रही
जे जहिया
सुरुज संऽ पैंच लेल इजत के चान
कविराज जेकां
अपन सिलबट्टा पर खूब जतन संऽ
पीस पीस कऽ
चंदनक शीतल लेप सऽन इजरिया बना देलकै
तहिया संऽ रखने छै
अपना करेज मे साटि कऽ
मुदा बेर बेखत बांटित छै
तें खतम हइत हइत एकदिन
अमावश्याक नौबति सेह आबिए जाइत छैक
आ फेर सुरुज संऽ ओकरा मांगऽ पडैत छैक
स्वयंसेवी संगठन जेकां पैंचक इज

क कें सीधे सरकार रायबहादुर सुरुज लग
जयबाक सेहंता तऽ छै
मुदा साहस कतऽ संऽ अनतै ओ
एतेक अमला फैला छै सुरुजक चहुंदिश
जे करेजा मुंह में अबैत छै
हुनका लग कना जाऊ सर्व साधारण
ओ तऽ धधकै छथिह्न आधिक्यक ताप संऽ

खैर हम जहि चानक गप्प कऽ रहल छी
ओकरा संऽ डाह करैत छै मेघ
सदिखन संऽ ओ ईर्षाक आगि मे जरैत आयल अछि
भगवान मङने रहथिह्न वृष्टि मेघ संऽ चान लेल
मुदा ओ नहि देने छल
एक्कहु बुन्न पानि
झांपि देने छल चान कें
हमरा बूझल अछि ओ
बनऔने हयत धर्मनिरपेक्षता आ सांप्रदायिकताक बहाना
क हित में काज नहि अबैत ह्वैतेक ओकरा
मुद्दा ओकर ह्वैतेक किछु आउर

मुदा हऽम तऽ एम्हर
मात्र एतबे
कहऽ चाहैत रही
जे हमरा केओ चान
आ अहांके चान्नी
जुनि कहय

की जखन मेघ
झांपैत छै चान कें
तऽ पहिने मरैत छै
इज
आ बाद में मरैत छै चान
आ हम नहि चाहैत छी
जे हमर इज
हमरा संऽ पहिने खतम ह
हमरा संऽ पहिने मरय
कखनहुं नहि किन्नहुं नहि
सत्ते

1

মধূলিকা চৌধবী said...

1.कविता आ की सुजाता/ 2.चान आ चान्नी
dunu kavita mon ke praphullit karae bala,
ee kavi bes badhi dahar, bunni achhar dekhne chhathi, anubhavak prachurtak bina ehan uchcha kotik kavita likhab sambhav nahi

Reply05/07/2009 at 02:09 PM

2

বশ্মি প্রিযা said...

विचारक प्रस्फुटन अछि ई दुनू कविता, आ तेँ विशिष्ट बनबैत अछि एकरा।

Reply05/07/2009 at 02:04 PM

3

कृष्ण यादव said...

देखलिए
चिडै चुनमुन
नहि डेराइत अछि
आब

bad nik vivekanand ji

Reply05/06/2009 at 11:30 PM

4

Keshab Mahto said...

Vivekanand ji dhanyavad etek nik kavitak lel.

Reply05/05/2009 at 12:02 PM

5

विद्यानन्द् झा said...

विवेकानन्द जी नव कवि लोकनि मे विशिष्ट स्थान बनओताह से एहि दुनू कवितासँ पता चलि रहल अछि।
शुभकामना।

Reply05/05/2009 at 12:01 PM


सतीश चन्द्र झा,राम जानकी नगर,मधुबनी,एम0 0 दर्शन शास्त्र
समप्रति मिथिला जनता इन्टर कालेन मे व्याख्याता पद पर 10 वर्ष सँ कार्यरत, संगे 15 साल सं अप्पन एकटा एन0जी00 क सेहो संचालन।

मध्य वर्गक सपना
भीजि क आयल छलहुँ हम
आँखि मे किछु स्वप्न धेने।
मोन के पौती मे भरि क
स्नेह के संदेश रखने।

किछु कहब हम बात अप्पन
किछु अहाँ सँ आइ पूछब।
फेर हम निष्प्राण भ
बाँहि मे विश्राम खोजब।

पी लितहुँ हम नोर आँखिक
ठोर पर उतरल अहाँ के।
नेह सँ परितृप्त करितहुँ
साटि छाती मे अहाँ के।

लितहुँ चुम्बन हृदय सँ
गाढ रक्तिम ठोर पर हम।
की करै छी ? लोक देखत,
अहाँ कहितहुँ , हँसि दितहुँ हम।

भागि चलितहँु फेर सँ हम
संग ल सुन्दर विगत मे।
कल्पना के पाँखि ल
उडि जयतहुँ उन्मुक्त नभ मे।



होइत जौं ई सत्य सपना
देवता के जल चढबितहुँ।
हे प्रिये ! होइतै केहन जौं
किछु समय के रोकि सकितहुँ।

भेंट होइते सभ बिसरलहुँ
हम केना क बात मोनक।
छै कहाँ रहि गेल वश मे
स्वप्न देखब मध्यवर्गक।

अछि जतेक सामथ्र्य अप्पन
रहल छी कर्म सभटा।
मोन मे अछि सोच कहुना
किछु रहय बाँचल प्रतिष्ठा।

अर्थ दुर्लभ वस्तु जग केँ
अछि एकर भरि मास खगता।
खर्च बढिते जा रहल अछि
बढि रहल दानव बेगरता।

कात मे मुनियाँ कनै अछि
किछु नया परिधान कीनत।
नीक ब्राँडक जींस, जैकेट
पुत्रा बडका आइ आनत।

माँग छल पायल अहूँ के
मोन मे अछि दू बरख सँ।
नीक कुर्ता लेब हमहूँ
जीब की हम आब सुख सँ।

साग - सब्जीक दाम पुछि क
होइत अछि परिपूर्ण इच्छा।
जा रहल छी पाँव पैदल,
भाग्य अछि रेलक प्रतिक्षा।

देत के सहयोग अपनो
रहल अछि लोक शोषण।
चीज शौखक अछि सेहन्ता
रहल छी मात्रा भोजन।

नाम सँ के आब चिन्हत
अर्थ केँ सम्मान होइ छै।
झूठ के सम्बन्ध सगरो
के कतय किछु प्राण दै छै।

कामना भगवान सँ अछि
जन्म दोसरो, संग भेटय।
उच्च नहि त दीन .. निर्धन
वंश कुल मे जन्म भेटय।

माँटि पर बैसल अहाँ संग
खेल करितहुँ, स्नेह सदिखन।
काल्हि के नहि आइ चिन्ता
छुच्छ जीवन, तुष्ट जीवन।

1

VIDEHA GAJENDRA THAKUR said...

सतीश जी । मध्य वर्गक सपनाकेँ नीक जेकाँ रेखांकित केलहुँ।

Reply05/09/2009 at 10:28 AM

2

कृष्ण यादव said...

खर्च बढिते जा रहल अछि
बढि रहल दानव बेगरता।
satish ji bad nik santulit aa prerak,
muda hilkor utha delahu

Reply05/06/2009 at 11:32 PM

3

Arvinda kummar said...

Manak ego nirakar bhawna ke pradarshit karai vala ati vilakshan

Reply05/06/2009 at 05:35 PM

4

Subodh thakur said...

Apnek rachna Madhyam vargak jingi k parkram kay rahal achi a sarpahaun madhyam varg apan pur jeevan sapna pura karaike lel ashavan rahait jingi kati lait chati

Reply05/06/2009 at 05:13 PM

5

Anshumala Singh said...

Satish Jik Kavita bad nik lagal, hridaysparshi.

Reply05/05/2009 at 12:03 PM

सुबोध ठाकुर, गाम-हैंठी बाली, जिला-मधुबनीक मूल निवासी छथि आ चार्टर्ड एकाउन्टेन्ट प्रैक्टिशनर छथि।

मनक तरंग

सनन-सनन सन बहए छल पवन

शब्दक हिल्कोरक संग डोलि रहल छल मन

सोचल किए नहि शब्दकेँ छन्दक रूप देल जाए,

कविता एक अनमोल बनाओल जाए,

लिखए बैसलहुँ हम तखन

सनन-सनन सन बहए छल पवन

विरहक वेदना मोनमे जतेक छल

मानस-पटलपर तखने सभटा उभरल,

शब्दक रूपी बूँद से बुझबए लेल अगन

लिखए बैसलहुँ हम तखन

सनन-सनन सन बहए छल पवन

नहि हम अति विद्वान छी

परञ्च लग-पास परिलक्षित दृश्यसँ अनजान छी,

करए लगलहुँ सभकेँ बुझबए लेल तँए जतन,

सनन-सनन सन बहए छल पवन

हृदयक आह्लादसँ,

विनती कएलहुँ सन्ध्या कालक प्रह्लादसँ

जुनि बनाऊ आर ककरो परदेशी कठोर साजन

सनन-सनन सन बहए छल पवन

नहि जानि की हम लिखलहुँ

लिखए काल हम किछु नहि बुझलहुँ

जुनि बुझब एकरा झूठ वचन

ई अछि शब्द रूपी मनक तरंग

सनन-सनन सन...

1

Arvind said...

Subodh ji ke kavita me manak ek nirakar bhawna achi

Reply05/06/2009 at 05:37 PM

2

Kundan Jha said...

flow chhal kavita me.

Reply05/05/2009 at 12:04 PM

ज्योति

महावतक हाथी

महावत आयल हाथी लऽ कऽ

भीख मांगैत दलान पर ठाढ भऽ

बच्चा सब मे मचल हलचल

लऽग जायमे डेरायताे छल

मुदा सबमे चाह छल सवारी के

भीडमे अपन र् अपन पारी के

कियाे कानल जं जायमे भेल देरी

कियाे कानऽ लागल चढैत देरी

अहि सबमे महावत सम्हारैत

अपन हाथी के रहल पुचकारैत

अतेक भयावह विशालकाय प््रााणी

काेना अनुशासित छल की जानी

जेना आे बुझैत रहै भाषा मनुषक

वा भऽ गेल छल आेकरा हिस्सक

अपन वास्तविक वातावरण स वंचित

पराधीनता स नहिं हाेइत विचलित

जीविका हेतु करैत कतेक प््रायत्

जानवराे भऽ पाैलक मनुषक जीवन

मालिकक अत्याचार के पीबैत विष

एक यात्रा पशुत्व सऽ मानवत्व दिस

1

Suresh Kumar Chaupal said...

Mahavtak hathi padhi bachchak bad kichhu gap mon pari gel.

Reply05/05/2009 at 12:07 PM

४. गद्य-पद्य भारती -सोंगर,मूल कोंकणी कथाः खपच्ची,लेखकः श्री. सेबी फर्नानडीस, हिन्दी अनुवादकः डा. चन्द्रलेखा डिसूजा,मैथिली रूपान्तरण : डा. शंभु कुमार सिंह

सोंगर

मूल कोंकणी कथाः खपच्ची

लेखकः श्री. सेबी फर्नानडीस

हिन्दी अनुवादकः डा. चन्द्रलेखा डिसूजा.


मैथिली अनुवाद :

डा.शंभु कुमार सिंह
जन्म : 18 अप्रील 1965 सहरसा जिलाक महिषी प्रखंडक लहुआर गाममे। आरंभिक शिक्षा, गामहिसँ, आइ.ए., बी.ए. (मैथिली सम्मान) एम.ए. मैथिली (स्वर्णपदक प्राप्त) तिलका माँझी भागलपुर विश्वविद्यालय, भागलपुर, बिहार सँ। BET [बिहार पात्रता परीक्षा (NET क समतुल्य) व्याख्याता हेतु उत्तीर्ण, 1995] मैथिली नाटकक सामाजिक विवर्त्तन विषय पर पी-एच.डी. वर्ष 2008, तिलका माँ. भा.विश्वविद्यालय, भागलपुर, बिहार सँ। मैथिलीक कतोक प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिका सभमे कविता, कथा, निबंध आदि समय-समय पर प्रकाशित। वर्तमानमे शैक्षिक सलाहकार (मैथिली) राष्ट्रीय अनुवाद मिशन, केन्द्रीय भारतीय भाषा संस्थान, मैसूर-6 मे कार्यरत।

सोंगर

13 सितम्बर, दिन मंगल। भोरे-भोर मोबाइल खनकल। हमरा ओछाओनक लगहिमे मोबाइलक प्रकाश एना झिलमिलाइत छल जेना भिनसरे कोनो अस्पतालकवैन रोगी केँ ल निकलल हो। हम अपन आँखि मलैत मोबाइल उठौलहुँ...देखलहुँ तँ नम्बर चिर-परिचित छल। शैली केर। शैली माने हमर मिता, जे हमरे फिस मे काज करैत अछि। बहुत नीक आ जिम्मेवारीक पद पर ओकर नियुक्ति भेल छैक। ओना देखल जाय तँ अपन स्वभाव सँ ओ एकदम सरल आ अपन काजसँ मतलब राखय वाली। नरम-नरम घोंघा-सन। जँ क्यो किछु कहि देलक तँ चुपचाप सुनि लए वाली। साँच पुछू तँ ओ हमरो बड नीक लागैत अछि। हमरा बुझने सभ कन्याकेँ शैलीए-सन हेबाक चाही। हम अपन मोनक बात कैक बेर ओकरा बतएनहुँ छी मुदा ओ ओकरा अनसुना करि दैत अछि। हम सभ एक दोसराकेँ लगधक सात बरखसँ जानैत छी। हमरा सभक दोस्ती विश्वविद्यालयमे पढबाकाल भेल छल। शैलीक हँसबाक अंदाज आ ओकर सरल स्वाभाव दुनू हमरा अतीव पसिन्न अछि। संभवतः यैह कारण रहल हेतैक जे हम ओकरा दिस झुकल चलि गेलहुँ। आइ तँ जेना ओ हमर मिता नहि अपितु हमर छाँह हो तहिना बुझाइत अछि। आइ ओ हमरा लेल हमर सभसँ करीबी बनि गेल अछि।

हेलो..... हम मोबाइल उठबैत कहलहुँ।

शागू हम शैली बाजि रहल छी.... हम एखनहि अहाँसँ भेंट कर चाहै छी।

शैलीक ई जबाब तँ जेना हमरा आँखिक निन्ने उडा देलक।

मुदा बाद की थिक? से तँ साफ-साफ बताउ.......

बताएब, सभ किछु बताएब। मुदा अहाँ भेंट त दिअ।

ठीक छैक भेंट क रहल छी... फिस मे... 9:30 बजे।

नहि, नहि एखनहि मिलबाक अछि। शैली बाजलि।

मुदा एखन...

नहि, नहि हम किछु नहि सुन चाहैत छी। कहितहि ओकर बोली जेना काँपलागलैक।

देखू शैली कानू नहि प्लीज.....

हम की करी शागू! हमरा समझमे किछु नहि आबि रहल अछि। ओ बाजलि।

हमरा शैली पर दया आबि गेल।

ठीक छैक, हम एखनहि अहाँक ओतए आबि रहल छी। साढे आठ बजे धरि हम आबि जाएब, अहाँ घबराउ जुनि। ओकर साहस बढबैत हम कहलिऐक।

ठीक छैक, हम अहाँक बाट देखि रहल छी। कहैत शैली मोबाइल बन्न कदेलक।

हे भगवान ! की भेल हेतैक ? ई सोचैत-सोचैत हम हाँइ-हाँइ केँ मुँह धोलहुँ, कल्हुके पहिरलाहा अंगा-पेंट पहिर निकलि गेलहुँ। घरसँ निकलतहि हमरा मोनमे कैक प्रकारक शंका-कुशंका केर चक्र चल लागल। आखिर की भेल हेतैक शैलीकेँ? की ओकर मोन खराब भ गेलैक? वा अचानक टकाक कोनो बेगरता पडि गेलैक? हम आर झटकि कए चल लागलहुँ। पौने आठहिं बजे हम शैलीक घर पहुँच गेलहुँ।

पछिला बेर जे शैली अपन घर गेल छलीह तँ ओ वाल (एक प्रकारक तरकारी) क लत्ती आनने छलीह। आब ओ लत्ती नरम-मोलायम पातक संग सोंगरक सहारे उपर दिस बढि रहल छल, संगहि ओ अपन जडि जमएबाक जतन क रहल छल।

दरबज्जा खटखटएलासँ पूर्वहिं शैली दरबज्जा खोललक। ओ शायत हमर पयरक आहटि सुनि नेने छल। जहिना हम घरमे प्रवेश कएलहुँ, शैली दरबज्जा बन्न कहमरासँ लिपटि गेल। शैलीक ई व्यवहार हमरा लेल एकदम अप्रत्याशित छल। शैलीक व्यवहार एहन किएक भ गेलैक? हम मोने-मोन सोचलहुँ। जरूर किछु विशेष भेल छैक, तखनहि तँ ओ हमरा अपन हितचिंतक बुझि एना क रहल अछि? हम नहुँए-नहुँए ओकर पीठ सहलाबैत रहिलऐक।

की भेल शैली? ऐना बताहि जकाँ किएक क रहल छी? किछु बाजबो तँ करू?

ओ शनैः-शनैः अपनाकेँ हमरासँ अलग कएलक आ हमरा मुँह दिस निहारलागलीह।

हमरा बुझा रहल छल जे जरूर शैलीक संगे किछु अनिष्ट भेल छैक? ओकरा आँखिसँ नोर तेना बहैत रहैक जेना भदवारिक इनारसँ पानि बहराबैत छैक। हमरा मोन पडल अपन गामक सेजांव उत्सव जाहिमे लोक इनारमे कूदि जाइत छैक आ छपाक होइतहि पानिक छींटा एमहर-ओमहर पसरि जाइत छैक। शैलीक आँखिक पानि फेर उफन लागलैक। ओ फेर हमरासँ लिपटि गेल। एहिबेर ततेक नोर बहलैक जे हमर अँगा भीज गेल। ओकर शीतलता मानू हमरा हृदयकेँ सेहो भीजा देलक। हमहूँ बरफ जकाँ पिघल लागलहुँ। हमरा जीवनमे सदैव एकटा दृढ गाछक सदृश ठाढ रहएवाली शैली आइ सिगरेटक पुत्ती जकाँ ढहि रहल छलीह।

शैली आखिर किछु बताउ त! आब तँ हम अहाँक समक्ष छी।

ई सुनतहि शैली आर फफकि-फफकि कए कानए लागलीह।

देखू शैली, एना कानने कलपने सँ काज नहि चलत, जाधरि अहाँ किछु बताएब नहि हम कोना बुझू?

हम लूटि गेलहुँ शागू.... हम तबाह भ गेलहुँ.....फँसि गेलहुँ....हमर इज्जति पानि भ गेल.... हमरा लूटि लेल गेल.....।

अरे.....अरे.....शैली, ई अहाँ की बाजि रहल छी? बाज सँ पहिने अपन शब्दकेँ नापि-जोखि लेल करू।

हमरा लेल ओकर ई बात बहुत दुखदायी छल। आइ शैली एना बताहि जकाँ किएक क रहल छलीह? एहिसँ पहिने तँ ओ हमरा संगे शब्दक एहन खेल नहि खेलने छलीह?

बाजू शैली, की भेल...

हमर कपारे मे आगि लागि गेल अछि....। हमर महीनवारीक दिन बीत गेल अछि, आ....। काल्हि हम डाक्टरसँ चेकअप करौलहुँ त...।

ओ ई बात! तँ शैलीक परेशानीक ई कारण छैक। हम मोने-मोन सोचलहुँ।

पछिला महीनवारीक कोन तारीख छल? हम पुछलिऐक।

दुइ अगस्त। ओ बाजलि।

हम मोनहि-मोन गिनती लगएलहुँ....कैक दिन निकलि चुकल छलैक। हमरा किछु बाज सँ पूर्वहि शैली बाजलसात दिन धरि हम बाट देखैत रहलहुँ काल्हिए डाक्टरसँ देखएलहुँ, रिपोर्ट + + आएल छैक।

+ + केर माने भेलैक जे शैलीक कोखिमे नव जीव अस्तित्वमे आबि गेल छैक। हमरा मिताकेँ बियाहसँ पहिनहि कल्याणक योग भ गेलैक। हम ई की सुनि रहल छी? कोना भ गेलैक ई सभ? हमरा माथ घूम लागल... कैक प्रकारक सवालसँ हमर माथ फाटल जा रहल छल। ओमहर शैली अनवरत रूपेँ कानि रहल छलीह। हे भगवान! शैलीक घरक लोककेँ जखन एहि बातक आभास हेतैक तखन की हेतैक?

एखन शायत शैलीकेँ सान्त्वनाक आवश्यकता छलैक। शैलीक कपार पर विपतिक पहाड टूटल रहैक आ हम पत्ता जकाँ काँपि रहल छलहुँ। जेना जाडक दिनमे शीशीक तेल जमि जाइत छैक तहिना हमहुँ जडवत भेल जा रहल छलहुँ। के छी जे शैलीकेँ एहि दशामे आनि देलक? ई जानब हमरा लेल आवश्यक भ गेल छल मुदा ताहिसँ पहिने ई जानब जे, जे किछु शैली कहि रहल छलीह से साँचे थिक वा...।

शैली भ सकैछ अहाँक अंदाज गलत भ गेल हो..। भ सकैछ डाक्टरक रिपोर्ट गलत हो....। अहाँ घबराउ जुनि। हम हरदम अहाँक संग छी, दुखमे, सुखमे सभमे।हमरा बातसँ शैलीक मोन कने हल्लुक भेलैक। आइ धरि जे बात हम शैलीकेँ नहि कहबाक साहस केने रही से आइ एतेक आसानी सँ कहा गेल। शैली एकर माने की निकालने हेतैक से भगवाने जानथि। ओना शैली एखन जाहि मानसिक स्थितिसँ गुजरि रहल छलीह एहनमे हुनकासँ एहन सभ बात पर उमेदो करब उचित नहि छलैक।

शैली अहाँ जे कहि रहल छी से गलतो तँ भ सकैछ? पहिने डाक्टरसँ नीक जकाँ पूछि त लिअ।

आ जँ डाक्टर फेर वैह बात कहलक तखन? शैली बाजलि।

ओ बादमे देखल जेतैक। हम कहलिऐक।

हम अपन जान द देब। मरि जाएब। हम आब जीब नहि चाहैत छी।कानैत-कानैत ओ बाजलि।

हमसभ आइए डाक्टर लग जाएब। हम कहलिऐक।

कखन? शैली तपाकसँ बाजलि।

फिसक बाद, छओ बजेक लगधक। आइ हमहुँ अपन फिसक काज जल्दीए जल्दी निपटा लेब। ई कहैत हम ओकरा सांत्वना देबाक प्रयास कएलहुँ। शैली हमरा मुँह दिस देखैत रहलीह। हम फिससँ जल्दी निकल वला नहि छी से शैली नीक जकाँ जानैत छलीह। ओ सोचि रहल हेतीह जे शायत हम हुनका समय द कए मुकरि जाएब।

अरे हम अहाँसँ प्रमिस क रहल छी हम अवश्य आएब। चाहे कतेको काज किएक नहि हो।

शैली किछु पल केर लेल अपन आँखि बन्न क लेलक। जेना ओ सोचि रहल हो जे जँ हम नहि आएब तखन की हैत?

शैली अहाँ जल्दी-जल्दी तैयार भ जाउ। हम बाहर अहाँक बाट जोहि रहल छी। कहैत हम ओकरा गाल पर हाथ फेरलहुँ आ ओकर आँखिक नोर पोछलहुँ।

अहाँ डरब नहि चलू देखैत छी जे आइ साँझ केँ डाक्टर की कहैत छथि”—कहैत हम ओकर देहरी पार कएलहुँ। शैली शीघ्रहि अपन कपडा बदललक आ हम दुनू बाहर निकलि गेलहुँ।

अहाँ नाश्ता कएलहुँ की नहि? ई पूछब हम उचित नहि बुझलहुँ, तथापि पुछलहुँ---

फिसेक कैंटीन मे क लेब ओ बाजलि।

ओहि दिन भरि रस्ता शैलीक पयर नहुँए-नहुँए आगू बढैत रहल। ओकर मोन जे टूटि गेल रहैक! हम ओकर ओहि मोनक टुटलका तागकेँ जोडबाक प्रयास क रहल छलहुँ। हमरा मोनमे एक पल केर लेल भेल जे हम शैलीक हाथ अपन हाथमे थामि ली, मुदा बाट चलति एहि तरहक व्यवहार हमरा शोभा नहि देत, ई जानि हम अपन विचार दमित क देलहुँ।

गुमसुम शैली अपनहि विषयमे किछु सोचि रहल छलीह ई जानि हम ओकरा टोकलिऐक----

हाँ.....25। शैली उत्तर छल।

की भेल? हम पुछलिऐक।

शैली मौन रहलीह।

हम फेर पुछलहुँ।

शैली मौन।

हमरा मोनमे भेल जे शायत शैली सीढी चढैत काल अपन उमिरक संबंधमे सोचि रहल छलीह। हम पाछू मूडि कए सीढीक गिनती कएलहुँ ओ ठीक पच्चीसे छल। पच्चीस सीढी आ पच्चीस साल, मेल बड नीक छलैक। पच्चीस सीढी चढलाक पश्चात् फिसमे प्रवेश आ पच्चीस सालक पश्चात् माय बनब......कुमारि माय? शायत एहि लेल ई क्षण ओकरा लेल सुखदायी नहि छलैक। कैंटीनमे हमरा दुनूक नास्ता-पानि भेल आ साँझमे मिलबाक बात क हम दुनू अपन-अपन फिस चलि गेलहुँ।

पूरा दिन काज करैत हम शैलीएक संबधमे सोचैत रहलहुँ। बीचहिमे हम एकबेर ओकरा इंटरकाम नम्बर सँ फोन केलिऐक।

शैली, केनह छी अहाँ? देखू धैर्य राखब, हम अवश्य आएब....कहैत हम फोन राखि देलहुँ।

दूपहरमे एकबेर फेर हमसभ लंचक समय मे मिललहुँ। ओ भोजन करबासँ मना करैत छलीह। हमहुँ उपासे करब। ऐहने नाजुक समयमे तँ मितकेँ मितक आवश्यकता होइत छैक। हम ओकरा सहारा द रहल छलिऐक ई सोचि हमरा खुशी भ रहल छल।

एखन घडीमे पाँच बजैत रहैक। ठीक ओहि काल शैली हमरा मोबाइल परमिसकाल समयक संबंधमे आगाह कएलक। साढे पाँच बज सँ पूर्वहि हम फिससँ बाहर आबि गेलहुँ। शैलीओ केँ झटकि कए आबैत देखलिऐक।

चली?

हमर प्रश्न सुन सँ पहिनहि शैलीक पयर बढि चुकल छलैक। हमसभ अस्पताल पहुँचलहुँ। हमरा आभासो नहि भ सकल जे कखन शैली हमर हाथ कसि कए पकडि नेने छलीह। ओ डरि रहल छलीह। ओकर हाथ काँपैत छलैक।

डाक्टर छथि? हम स्वागत कक्षमे पुछलिऐक।

हँ, हँ छथि कहैत ओ स्वागत अधिकारी हमरा बगल कुर्सी पर बैसबाक इशारा कएलथि।

हम दुनू जा कए कुर्सी पर बैसि गेलहुँ। हम डाक्टरक कक्षमे हुलकी मारलहुँ, आ सामने नामपट्ट पर सेहो, लिखल रहैकडा. गीता। हम बुझि गेलहुँ जे यैह डा. थिकीह। देख मे एकदम सुन्नरि, सौम्य। हम मोने मोन सोचलहुँ जे शायत डा. गीता कहतीह—“शैली अहाँ एकदम नार्मल छी आ हुनक ई वाक्य शायद हमरा सभक मोनक भ्रम तोडि देत। एतबहिमे नर्स आवाज देलक—“अहाँ सभ अन्दर जाउ।

डा. गीता एकदम मधुर आवाजमे पुछलथि—“कहू की तकलीफ अछि। डाक्टरक पश्न सुनि हमर रोइयाँ ठाढ गेल। डा. केर प्रश्न एखन चलिए रहल छलैक। हम हुनका दिस देखलिएनि की ओ हमरा कहलथि—“कनेक कालक लेल अहाँ बाहर जाउहम ओतए सँ उठि बाहर ओहि कुर्सी पर जा बैसलहुँ जतय पहिने बैसल रही। नर्स दरबज्जा बन्न क दैलकैक। हमरा मोनमे तखन कतेको प्रकारक प्रश्न सभ उठि रहल छल। थोडबे कालक बाद डा. दरबज्जा खोललक। हमरा फेर बजाओल गेल। हमरा ओतपहुँच सँ पहिने शैली डा. केँ किछु बता रहल छलीह। डा. हमर नाम पुछलथि---

शागू गांवकर। हम जवाब देलियनि। डा. हमर नाम पुरजा पर लिख लेलथि। हम देखतहि रहि गेलहुँ। हमरा अपनहि आँखि पर विश्वास नहि भ रहल छल। हम अपन आँखि आर कने बिदोडि कए देखलहुँहँ! ई शालीए रहैक। शैली, शाली कहिया भ गेलैक?

हँ तँ अहाँ सभकेँ बच्चा एखन नहि चाही, यैह ने? डा. हमरा दुनूसँ पूछलक।

जी नहि। हमरा सभक आर्थिक परिस्थिति एखन बच्चा जन्म देबाक इजाजत नहि द रहल अछि। शैली उर्फ शाली चोट्टहि बाजलि। हम ओकरा दिस साश्चर्य देखतहि रहि गेलहुँ।

तँ ई निर्णय अहाँ दुनूक छी ने?

जी हँ, डाक्टर! हमरा दुनूक यैह सम्मति अछि। शैली बाजलि।

शैलीक जवाब मानू हमरा अंतर्मनकेँ झकझोरि कए राखि देलक। बच्चा ककरहुँ हो मुदा ओकरा प्रति कने ममता तँ हेबाक चाही?

डा. ओहि पुरजा पर आर किछु लिखलक आ हमरा दुनूसँ हस्ताक्षर करबा लेलक। शैली, शाली गांवकर नामसँ हस्ताक्षर केने छल जे पूर्ण रूपसँ जाली छलैक। अपन हस्ताक्षर केलाक पश्चात् ओ कलम हमरा हाथमे थमा देलक। हम की करी, की नहि एहि अंदर्द्वन्द्वमे रही। शैली एकबेर हमरा दिस देखलक---हम बात बुझि गेलिऐक, हमहुँ हस्ताक्षर क देलिऐक। डा. अपन अलमारीसँ किछु दबाइक गोली आ एकटा करिया-सन शीशीमे दबाइ शैलीकेँ थमा देलकैक। शैली अपना पर्ससँ आठ सय टका निकाललक आ तीन सय हमरासँ माँगलक। हम ततेक ने नर्वस भ गेल रही जे शैलीए हमरा जेबीसँ ओ टका निकालि डा. केँ देलकैक।

शैलीक ई व्यवहार देख डा. केँ हँसी लागि गेलैक। साँचे अहाँ दुनूक प्रेम बेजोड अछि।

हमरा दुनूक बीच पति-पत्नीक संबंध अछि, ई विश्वास डा. केँ दिएबाक लेल शैलीक ई नाटक एकदम परफेक्ट साबित भेलैक।

मि. शागू! अपन पत्नीक ध्यान राखब, हिनका एहि समय अहाँक सख्त आवश्यकता छैक। ई कहैत डा. गीता हमरा सभकेँ बिदा कएलथि। हम आ शैली बाहर एलहुँ। पेशेंट सभकेँ स्ट्रेचर पर ल जएबाक जे पथ होइत अछि ओहि बाटे हम सभ अबैत रही हमरा बुझाएल जे जेना हमर अपन संतुलन बिगडि रहल अछि। हम शायत अपनहि सँ उलझि गेल छलहुँ। किछु आगू चललाक पश्चात् शैली दबाइक दोकान पर पुरजा दैत किछु आर दबाइ किनलक। हमरा मोनमे एकटा जबरदस्त जद्दोजहद भरहल छल। हम पापी छी, हत्यारा छी, हमरहि कारणेँ आइ एकटा ओहन शिशुक हत्या भ रहल छैक जे एखन धरि दुनियाँ मे आएलो नहि छैक कोनहुँ बच्चाक लेल संसारक सभसँ सुरक्षित स्थान होइत अछि ओकर माइक कोखि, हम ओहि कोखिक लेल मृत्युक सौदागर बनि गेल रही। दबाइ सभ गर्भनाडीकेँ बन्न क नेना भ्रूणकेँ समाप्त करबाक प्रक्रिया भ रहल छलैक। हमरा लागल आइ हम एहन अपराध केने छी जकरा लेल भगवान हमरा कहियो माफ नहि करताह। मुदा जँ हम एहन नहि करितहुँ तँ शैलीओ तँ आत्महत्या क लेतिऐक? यैह सभ सोचैत हम बहुत कालक लेल एकदम गुम्म भगेल रही।

जखन हम कालेजमे पढैत रही आ परीक्षामे कम अंक आबए तखन मैडम पापा केँ बजा कए आनए कहैत छलीह। तखन हम गलीक नुक्कुड पर जा कए साइकिल पायलटकेँ दस-बीस टका द कए किछु कालक लेल भाडाक पप्पा बना कए ल जाइत छलहुँ। परीक्षाक अपन गलती छुपएबाक लेल भाडाक पप्पासँ नाटक करबैत छलहुँ....। आइ हम अपनहि नाटक करैत रही। शैली केँ बचएबाक नाटक। बातो तँ साँचे रहैक, घौर बला केलाक गाछमे जेना संतुलन बनएबाक लेल सोंगर लगाओल जाइत अछि, तहिना आइ हम शैलीक संतुलन ठीक रखबाक लेल सोंगरक काज क रहल छलहुँ।

चलू चलैत छी। दबाइ ल कए घूरि आएल शैली बाजलि आ हम अपन विचारसँ बाहर निकलबाक प्रयास कएलहुँ। ओहि दबाइमे ओहि छोटका जीबक लेलजहर छलैक।

हम शैलीकेँ ओकरा घर धरि पहुँचा देलिऐक। शैली हमरा बैसबाक लेल कहलक। शायत ओ बुझैत छलीह जे आइ जे किछु भेल छैक तकर परिणामस्वरूप हमरा मोनमे की भ रहल हैत। आइ भोरसँ जे किछु भ रहल छैक तकर जडि केर संबंधमे हम ओकरासँ पुछबैक। मुदा काल्हि भेंट करब, ई कहि हम ओकर मोन हल्लुक क देलिऐक। गुड नाइट कहि हम चलि देलहुँ। राति शनैः-शनैः भीजल जाइत छलैक आ ओकरा संगहि हमर चिंतन सेहो गंभीर भेल जा रहल छल। हमर एकटा मोन हमरा लांछित करैत छल आ दोसर मोन मजगूत क रहल छल।

एहि अनजान शहरमे हमरा सिवाय शैलीक क्यो नहि छलैक। जँ हम आइ ओकरा सहारा नहि देतिऐक तँ ओ अपन इहलीला समाप्त क लेतिहैक। हे भगवान!हमरा माफ करब! जाहि भ्रूणकेँ अहाँ जनम देब चाहैत छलहुँ हम ओकरहि विनाश करबाक लेल शैलीक संग देलहुँ। कतेक पैघ गद्दार छी हम!

दोसर दिन शैली फिस नहि अएलीह। हमहुँ ओकरा सँ मिलबाक साहस नहि जुटा पएलहुँ। एहिना कैक दिन बीति गेल। एक दिन अकस्मातहि हमरा शैली सँ फिस मे भेंट भ गेल।

शागू हम घर जा रहल छी। शैलीक बात सुनि हम छगुन्तामे पडि गेलहुँ।

मुदा एना अचानक?

काल्हि भेंट करब ई कहैत ओ फिस चलि गेलीह।

काल्हि शनि रहैक, से हम शैलीक घर जयबाक सोचलहुँ। आइ शुक्र दिन देर धरि फिसक काज करैत रहलहुँ।

दोसर दिन हम शैलीक घर पहुँचलहुँ तँ देखैत छी जे ओकरा घरमे ताला लागल छल। तालाक भूरमे एकटा पर्ची खोंसल रहैक। ओ संभवतः हमरे लेल हैत से जानि हम ओकरा खोललहुँ। हमरे चिट्ठी छल।

प्रिय शागू,

हम घर जा रहल छी। घरक लोक सभ हमर बियाह तय क देने छथि। अहाँक कएल गेल उपकारकेँ हम जिनगी भरि नहि बिसरब। हमरा जीवनक लेल अहाँ बहुत महत्वपूर्ण छी। हम बुझैत छी जे हमरा बिसरि जाएब अहाँक लेल एकदम असंभव हैत। मुदा हम आइसँ अहाँकेँ बिसरैत छी, संभव भ सकय तँ अहूँ हमरा बिसरि जाउ।

शैली

चिट्ठी पढि हमरा लागल जेना एकटा जोरगर समुद्रक लहरि आएल आ हमरा पयरक निचलका सभटा बालु बहा कए ल गेल। हमरा आँखिसँ नोरक दूइटा बुन्न कखन ओहि चिट्ठी पर पडि पसरि गेल के हम नहि बुझि सकलहुँ। काल्हि भेंट करबकहएवाली शैलीकेँ काल्हि आ आजुक बीचक अंतर किएक नहि बुझि मे एलैक? शैली हमरा एहि तरहेँ किएक फँसौलक? शायत ओ सोचने हेतीह जे हम ओकरा बियाह करबा सँ मना क देबैक। जखन हम ओकरा गर्भपात करबैत काल नहि रोकलिऐक तँ एखन किएक रोकि देतिऐक?

शैली आब पहिनुक शैली नहि रहल। ओ आब बहुत समझदार भ गेल छलीह। आब समाजक सामना करबाक साहस ओकरामे भ गेल छलैक।

शैली शुक्र दिनक रातिएमे रेल सँ चलि गेलीह आ छोडि गेलीह हमरा लेल कैकटा अनुत्तरित प्रश्न सभ।

ओहि दरबज्जाक आगू हमर ध्यान गेल जतय शैली कहियो वाल केर लत्ती लगौने छलीह। ओ लत्ती आब खूब पैघ भ गेल रहैक। ओकर जडि चतरि गेल छलैक आ ओहि लत्ती पर आब कैकटा फूल-फल लागि गेल छलैक। एहि आल केर फूल-फल आ ओकर पातक तरकारी खएबाक लेल शैली एतए नहि छलीह। शैली बियाहक लग्न मंडपमे छलीह। ई सभ सोचैत हम देबालक कोनसँ सटि गेलहुँ एकदम सोंगर जकाँ।

1

KUNDAN JHA said...

konkani kathak prastuti lel shabd nahi achhi shambhu ji, sebi fernandez aa chitralekha d'souza ke hamra taraph se dhanyavad ahank madhyam se day rahal chhyanhi

Reply05/05/2009 at 06:15 PM

2

Dr Palan Jha said...

Sebi Fernandes ker katha aadyopant padhlahu, bhavnatmak katha. Shambhu ji aa chandralekha jik aabhar je konknik ee katha maithili me padhi saklahu.

Reply05/05/2009 at 12:12 PM

3

प्रीति said...

नव तूरक लेखकक नूतन रचना, अनुवाद सेहो ओहने उत्तम।

Reply05/04/2009 at 09:47 PM

बालानां कृते-

1.देवांशु वत्सक मैथिली चित्र-श्रृंखला (कामिक्स); 2. मध्य-प्रदेश यात्रा देवीजी- ज्योति झा चौधरी

1.देवांशु वत्सक मैथिली चित्र-श्रृंखला (कामिक्स)

देवांशु वत्स, जन्म- तुलापट्टी, सुपौल। मास कम्युनिकेशनमे एम.ए., हिन्दी, अंग्रेजी आ मैथिलीक विभिन्न पत्र-पत्र्रिकामे कथा, लघुकथा, विज्ञान-कथा, चित्र-कथा, कार्टून, चित्र-प्रहेलिका इत्यादिक प्रकाशन।

विशेष: गुजरात राज्य शाला पाठ्य-पुस्तक मंडल द्वारा आठम कक्षाक लेल विज्ञान कथा जंग प्रकाशित (2004 ई.)

नताशा: मैथिलीक पहिल-चित्र-श्रृंखला (कामिक्स)

नीचाँक दुनू कार्टूनकेँ क्लिक करू आ पू)

नताशा तीन

नताशा चारि

1

Jyoti said...

Sabsa neek achi Natasha ke cartoon chitrakaari. Bad neek shuruaat achhi

Reply05/07/2009 at 02:11 PM

2

মধূলিকা চৌধবী said...

nataasha apan sthan banaot maithilik nena bhutka sahitya me

Reply05/07/2009 at 02:06 PM

3

AUM said...

natasha ati sundar

Reply05/05/2009 at 06:03 PM

4

Umesh Mahto said...

natasha mon mohi lelak, jyotijik devijik katha aa chitra dunu nik,
madhdyapradesh yatra seho uttam

Reply05/05/2009 at 02:12 PM

5

Umesh said...

online dictionary bad nik, bahut ras science computer ker navin shabd.

Reply05/05/2009 at 02:09 PM

6

Preeti said...

Devanshu Vats Ker cartoon aa Jyotijik Madhyapradesh Yatra aa Deviji Dunu bad nik lagal.

Reply05/05/2009 at 12:14 PM

7

Krishna Yadav said...

Devanshu Vatsa Ker cartoon bad nik lagal.

Reply05/05/2009 at 12:13 PM

2.

मध्य प्रदेश यात्रा- ज्योति

नवम दिन ः

31 दिसम्बर 1991 मंगलदिन ः

ंपकपाइत जाडमे काेनाे हिलस्टेशन दिस भाेरक यात्रा बहुत कष्टप्रद हाेएत छै।परन्तु समयाभावमे हमरा सबके 530 बजे भाेरे बस सऽ पचमढी दिस विदा हुअ पडल।धीरे धीरे राइतक सन्नाटा पक्षी सबहक चुहचुही सऽ टूटल।पर्वतक बीच सुयाेर्दय देखक इ पहिल अवसर छल।अपन लक्ष्य दिस पहुंचैमे करीब दू घण्टा लागल।पिपरिया सऽ 53 किलाेमीटरक सफर तय करैत हमसब745 बजे पचमढी पहुंचलहुं।

समुद्र तलसऽ करीब 3555 फीट अर्थात् 1067 मीटरक ऊंचाइ पर स्थित पचमढी मध्यप्रदेशक ग्रीष्मकालीन राजधानी छै।अहिठामक मन्दिर गुफा झरना घाटी सब बड रमणीय छै।पर्वतश्रेणी सबहक बीच बसल इ पर्वतीय स्थल अपन अद्भुत दृश्यावलीके कारण मध्यप्रदेशक स्वर्गके उपाधि पाैने अछि।अंग्रेज शिकारी कर्नल हांडी अकरा तकने छल।सन् 1869मे अंग्रेज अकरा बसेने छल।

अतक पाण्डव गुफा अपन एतिहासिक महत्व के लेल प्रसिद्ध अछि।एहेन मान्यता छै जे अहि गुफा सबहक निर्माण पाण्डव अपन बनवासक समयमे केने रहैथ।अकर शिखर सऽ पूरा मध्यप्रदेश अवलाेकित हाेइत छै।पुरातत्ववेत्ताक अनुसारे इ बाैद्धकालीन छै आर अकर निर्माण 9म आर 10म शताब्दीक बीच भेल छै।

अतऽ के विभिन्न खाइ सबमे एकटाक हांडी खाेह सेहाे छल जे करीब 300 फीट गहींर छल।अतऽ अंग्रेज मेजर हांडी खसिकऽ मरि गेल रहैथ तकरा बाद सऽ हुन्के नामसऽ सब अकरा हाण्डी खाेह कहऽ लागल। प्रियदर्शिनी एक छाेट पहाडी छै जतय सऽ पचमढीक साैन्दर्य सुषमाक दर्शन अत्यन्त मनाेहारी लागैत छै।इ स्थल पहिने फाेरसीयक नाम पर छल जे अहि शहरके बसेनाइ प्रारम्भ केने रहथि।हमर सबहक टाेली विभिन्न जीपमे सवार भऽ टेढ मेढ पथरीला भूमि पर विचरण कऽ रहल छल।आब हमसब बडा महादेव मन्दिर पहुंचलहुं। इ मन्दिर एक पहाडक खाेहमे छै आ बड छाेट नहिं छै।अहिमे एक जलकुण्ड छै। अहि गुफामे वर्ष भरि बूंद बूंद वर्षा हाेइत रहै छै।अकर कारण गुफाक छतवला चट्टानक बीच जमल पानि छै।हमरा सबके ड्राइवर बतेलक जे अहिके आस पास रघुवीर यादव द्वारा अभिनय कैल फिल्म मैसी साहब के शूटिंग भेल छै।

अकर बाद हमसब पुनः एक धार्मिक स्थल पहुंचलहुं।आस्तिक सब लेल इ जन्म सिद्ध करैवला स्थल छै।मुदा अपन अनभिज्ञता कहू या किछु आर हमरा सबके अकर धार्मिक महत्व अकर भाैगाेलिक बनावट के सामने धूमिल लागल।एक पाथरक लम्बा सुरंगक अन्दरए क पण्डित एक जीवित नाग व आरतीक थारी लऽकऽ बैसल अन्दरके शिवलिंगक रक्षा करैत बैसल छलैथ।कहलगेल छै जे शिवजी भष्मासुर सऽ बचैलेल आेतय नुकायल रहैथ।अहि सुरंगमे एक बेरमे एक व्यक्ति सेहाे तिरछा भऽ कऽ पैस सकैत छल।हमसब एक के बाद एक क्रमसऽ पांच टा छात्र छात्रा घुसलहुं तऽ कनिये दूर बाद दम घुंटऽ लागल।अन्दर आरती लेने बिना घुरनाइ ठीक नहिं लागि रहल छल।खैर हमसब तऽ बाहर आबि गेलहुं मुदा एक टा शिक्षक अपन बढल पेटक कारण अन्दर नहिं जा सकला।आेतय सऽ हमसब अपन हाेटल एलहुं जे मचान कम्पलेक्स सऽ मिलैत जुलैत छल आ अकर सामने बहुत सुन्दर लान आ फूलक क्यारी छलै।आेतय स समान पाती लऽ हमसब पिपरिया स्टेशन पहुंचलहुं।

देवीजी : ज्योति

देवीजी ः चित्रपट्ट

देवीजी आहि किछु भिन्न छलैथ। बच्चा सब सऽ पुछलखिन जे अहां सब फिल्म देखै छी।बच्चा सब आश्चर्य चकित छलैथ कारण हुन्कर सबके फिल्म देखनाइर् नहिं नीक बतायल गेल छलैन । हुन्का सबके तऽ फिल्म देखके विचाराे राखला पर घर मे डपट परै छलैन।एहेन मे विद्यालयमे फिल्म देखबाक बात बहुत विस्मयकारी छल।मुदा देवीजी कहलखिन जे सब तरहक फिल्म खराब नहिं हाेयत छै। बल्कि मनाेरंजन बहुत आवश्यक छै।देवीजी कहलखिन जे 1 मइर् कऽ जे लेबर डे मनायल जाइत छै तकर शुरूआत अहि सिद्धान्त सऽ भेल छै जे 8 घण्टा काज करू 8 घण्टा आराम करू आऽ 8 घण्टा मनाेरंजन व्यायाम तथा अन्य काज करू।फिल्म देखनाइर् सबसऽ प्रसिद्ध मनाेरंजन के साधन अछि।

देवीजी कहलखिन जे आगामी सप्ताहमे देश के दू टा विश्वप्रसिद्ध दिग्गज सबहक जन्मदिन अछि। महान् फिल्म निर्माता एवम् आस्कर विजेता स्वर्गीय सत्यजीत रायके जन्मदिन 2 मइर् कऽ छैन।देशके प्रथम नाेबेल पुरस्कार विजेता स्वर्गीय रविन्द्रनाथ ठाकुरके जन्म दिवस 7 मइर् क छैन। रविन्द्रनाथ ठाकुरक उपन्यास पर आधारित फिल्म आऽ दूरदर्शन धारावाहिक सेहाे बनि चुकल अछि।इर् दुनु बहुमुखी प्रतिभाक स्वामी छलैथ। अहि दृष्टिकाेण सऽ बंगाल के भूमि मे देशके सम्मान बढाबै वला अनेकाे शिराेमणि सबहक जन्म भेल अछि।तकर बाद फिल्म के द्वारा भारतमे बहुत विदेशी मुद्र सेहाे आबैत अछि। तैं फिल्म इंडस्ट्री भारत सरकार के लेल आय के महत्वपूर्ण स्राेत छै।

देवीजी अनुसार फिल्म इंडस्ट्रीमे बहुत फिल्म बच्चा सबलेल बनै छै। जाहि सऽ बच्चा के मनाेरंजन सहित शिक्षा सेहाे भेटैत छै।कतेक फिल्म जानवर सबके प्रति दया भावना के प्रेरित करैलेल बनाआेल गेल छै। कतेक फिल्म धार्मिक मान्यताक सम्मान मे बनाआेल गेल छै। ताहि द्वारे बच्चा सब अगर अपन उम्रके लायक फिल्म देखैथ तऽ बहुत फायदा भऽ सकैत छैन।देवीजीके अहि विचार सऽ प्रेरित भऽ आबैवला रवि जहिया भारत सहित अन्य देश मदर्स डे के रूपमे मना रहल छल गाम भरिक लाेक के फिल्म देखाबक कार्यक्रम बनल।

बच्चा लोकनि द्वारा स्मरणीय श्लोक

.प्रातः काल ब्रह्ममुहूर्त्त (सूर्योदयक एक घंटा पहिने) सर्वप्रथम अपन दुनू हाथ देखबाक चाही, ई श्लोक बजबाक चाही।

कराग्रे वसते लक्ष्मीः करमध्ये सरस्वती।

करमूले स्थितो ब्रह्मा प्रभाते करदर्शनम्॥

करक आगाँ लक्ष्मी बसैत छथि, करक मध्यमे सरस्वती, करक मूलमे ब्रह्मा स्थित छथि। भोरमे ताहि द्वारे करक दर्शन करबाक थीक।

२.संध्या काल दीप लेसबाक काल-

दीपमूले स्थितो ब्रह्मा दीपमध्ये जनार्दनः।

दीपाग्रे शङ्करः प्रोक्त्तः सन्ध्याज्योतिर्नमोऽस्तुते॥

दीपक मूल भागमे ब्रह्मा, दीपक मध्यभागमे जनार्दन (विष्णु) आऽ दीपक अग्र भागमे शङ्कर स्थित छथि। हे संध्याज्योति! अहाँकेँ नमस्कार।

३.सुतबाक काल-

रामं स्कन्दं हनूमन्तं वैनतेयं वृकोदरम्।

शयने यः स्मरेन्नित्यं दुःस्वप्नस्तस्य नश्यति॥

जे सभ दिन सुतबासँ पहिने राम, कुमारस्वामी, हनूमान्, गरुड आऽ भीमक स्मरण करैत छथि, हुनकर दुःस्वप्न नष्ट भऽ जाइत छन्हि।

४. नहेबाक समय-

गङ्गे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति।

नर्मदे सिन्धु कावेरि जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरू॥

हे गंगा, यमुना, गोदावरी, सरस्वती, नर्मदा, सिन्धु आऽ कावेरी धार। एहि जलमे अपन सान्निध्य दिअ।

५.उत्तरं यत्समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्।

वर्षं तत् भारतं नाम भारती यत्र सन्ततिः॥

समुद्रक उत्तरमे आऽ हिमालयक दक्षिणमे भारत अछि आऽ ओतुका सन्तति भारती कहबैत छथि।

६.अहल्या द्रौपदी सीता तारा मण्डोदरी तथा।

पञ्चकं ना स्मरेन्नित्यं महापातकनाशकम्॥

जे सभ दिन अहल्या, द्रौपदी, सीता, तारा आऽ मण्दोदरी, एहि पाँच साध्वी-स्त्रीक स्मरण करैत छथि, हुनकर सभ पाप नष्ट भऽ जाइत छन्हि।

७.अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनूमांश्च विभीषणः।

कृपः परशुरामश्च सप्तैते चिरञ्जीविनः॥

अश्वत्थामा, बलि, व्यास, हनूमान्, विभीषण, कृपाचार्य आऽ परशुराम- ई सात टा चिरञ्जीवी कहबैत छथि।

८.साते भवतु सुप्रीता देवी शिखर वासिनी

उग्रेन तपसा लब्धो यया पशुपतिः पतिः।

सिद्धिः साध्ये सतामस्तु प्रसादान्तस्य धूर्जटेः

जाह्नवीफेनलेखेव यन्यूधि शशिनः कला॥

९. बालोऽहं जगदानन्द न मे बाला सरस्वती।

अपूर्णे पंचमे वर्षे वर्णयामि जगत्त्रयम् ॥

१०. दूर्वाक्षत मंत्र(शुक्ल यजुर्वेद अध्याय २२, मंत्र २२)

आ ब्रह्मन्नित्यस्य प्रजापतिर्षिः। लिंभोक्त्ता देवताः। स्वराडुत्कृतिश्छन्दः। षड्जः स्वरः॥

आ ब्रह्मन् ब्राह्मणो ब्रह्मवर्चसी जायतामा राष्ट्रे रान्यः शुरेऽइषव्योऽतिव्याधी महारथो जायतां दोग्ध्रीं धेनुर्वोढाड्वानाशुः सप्तिः पुरन्धिर्योवा जिष्णू रथेष्ठाः सभेयो युवास्य यजमानस्य वीरो जायतां निकामे-निकामे नः पर्जन्यों वर्षतु फलवत्यो नऽओषधयः पच्यन्तां योगेक्षमो नः कल्पताम्॥२२॥

मन्त्रार्थाः सिद्धयः सन्तु पूर्णाः सन्तु मनोरथाः। शत्रूणां बुद्धिनाशोऽस्तु मित्राणामुदयस्तव।

ॐ दीर्घायुर्भव। ॐ सौभाग्यवती भव।

हे भगवान्। अपन देशमे सुयोग्य आ सर्वज्ञ विद्यार्थी उत्पन्न होथि, शुत्रुकेँ नाश कएनिहार सैनिक उत्पन्न होथि। अपन देशक गाय खूब दूध दय बाली, बरद भार वहन करएमे सक्षम होथि आ घोा त्वरित रूपेँ दौगय बला होए। स्त्रीगण नगरक नेतृत्व करबामे सक्षम होथि आ युवक सभामे ओजपूर्ण भाषण देबयबला आ नेतृत्व देबामे सक्षम होथि। अपन देशमे जखन आवश्यक होय वर्षा होए आ औषधिक-बूटी सर्वदा परिपक्व होइत रहए। एवं क्रमे सभ तरहेँ हमरा सभक कल्याण होए। शत्रुक बुद्धिक नाश होए आ मित्रक उदय होए॥

मनुष्यकें कोन वस्तुक इच्छा करबाक चाही तकर वर्णन एहि मंत्रमे कएल गेल अछि।

एहिमे वाचकलुप्तोपमाल्कार अछि।

अन्वय-

ब्रह्मन् - विद्या आदि गुणसँ परिपूर्ण ब्रह्म

राष्ट्रे - देशमे

ब्रह्मवर्चसी-ब्रह्म विद्याक तेजसँ युक्त्त

आ जायतां- उत्पन्न होए

रान्यः-राजा

शुरेबिना डर बला

इषव्यो- बाण चलेबामे निपुण

ऽतिव्याधी-शत्रुकेँ तारण दय बला

हारथो-पैघ रथ बला वीर

दोग्ध्रीं-कामना(दूध पूर्ण करए बाली)

धेनुर्वोढाड्वानाशुः धेनु-गौ वा वाणी र्वोढाड्वा- पैघ बरद नाशुः-आशुः-त्वरित

सप्तिः-घो

पुरन्धिर्योवा- पुरन्धि- व्यवहारकेँ धारण करए बाली र्योवा-स्त्री

जिष्णू-शत्रुकेँ जीतए बला

थेष्ठाः-रथ पर स्थिर

भेयो-उत्तम सभामे

युवास्य-युवा जेहन

यजमानस्य-राजाक राज्यमे

वीरो-शत्रुकेँ पराजित करएबला

निकामे-निकामे-निश्चययुक्त्त कार्यमे

नः-हमर सभक

र्जन्यों-मेघ

वर्षतु-वर्षा होए

फलवत्यो-उत्तम फल बला

ओषधयः-औषधिः

पच्यन्तां- पाकए

योगेक्षमो-अलभ्य लभ्य करेबाक हेतु कएल गेल योगक रक्षा

नः-हमरा सभक हेतु

कल्पताम्-समर्थ होए

ग्रिफिथक अनुवाद- हे ब्रह्मण, हमर राज्यमे ब्राह्मण नीक धार्मिक विद्या बला, राजन्य-वीर,तीरंदाज, दूध दए बाली गाय, दौगय बला जन्तु, उद्यमी नारी होथि। पार्जन्य आवश्यकता पडला पर वर्षा देथि, फल देय बला गाछ पाकए, हम सभ संपत्ति अर्जित/संरक्षित करी।

इंग्लिश-मैथिली कोष/ मैथिली-इंग्लिश कोष प्रोजेक्टकेँ आगू बाऊ, अपन सुझाव आ योगदान ई-मेल द्वारा ggajendra@videha.com पर पठाऊ।

Input: (कोष्ठकमे देवनागरी, मिथिलाक्षर किंवा फोनेटिक-रोमनमे टाइप करू। Input in Devanagari, Mithilakshara or Phonetic-Roman.)

Language: (परिणाम देवनागरी, मिथिलाक्षर आ फोनेटिक-रोमन/ रोमनमे। Result in Devanagari, Mithilakshara and Phonetic-Roman/ Roman.)

विदेहक मैथिली-अंग्रेजी आ अंग्रेजी मैथिली कोष (इंटरनेटपर पहिल बेर सर्च-डिक्शनरी) एम.एस. एस.क्यू.एल. सर्वर आधारित -Based on ms-sql server Maithili-English and English-Maithili Dictionary.

1

KUNDAN JHA said...

online dictionary ke shuruaat nik, ee aar aaga aar nik hoyat se aasha achhi

Reply05/05/2009 at 06:13 PM

2

Umesh said...

computer internet ke bahut ras english shabdak maithili roop dekhi aanandit bhelahu

Reply05/05/2009 at 02:10 PM

3

Khattar said...

bad nik prayog.

Reply05/05/2009 at 12:20 PM

4

Jitender Nagabansi said...

Online dictionary lel badhai.

Reply05/05/2009 at 12:20 PM

5

Ajay Karna said...

dictionary sql aadharit bad nik prayog

Reply05/05/2009 at 12:19 PM

6

Rahul Madhesi said...

Maithili to English aa English to Maithili Dictionary online dekhi harshi bhay gel mon.

Reply05/05/2009 at 12:18 PM

7

Anshumala Singh said...

online Dictionary lel dhanyavad.

Reply05/05/2009 at 12:17 PM

8

Neelima Chaudhary said...

डिक्शनरी ओना तँ बड्ड नीक मुदा प्रूफक कनेक आवश्यकता।

Reply05/04/2009 at 11:01 PM

No comments:

Post a Comment