भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

(c) २०००-२०२२ सर्वाधिकार सुरक्षित। विदेहमे प्रकाशित सभटा रचना आ आर्काइवक सर्वाधिकार रचनाकार आ संग्रहकर्त्ताक लगमे छन्हि।  भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल http://www.geocities.com/.../bhalsarik_gachh.html , http://www.geocities.com/ggajendra   आदि लिंकपर  आ अखनो ५ जुलाइ २००४ क पोस्ट http://gajendrathakur.blogspot.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html   (किछु दिन लेल http://videha.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html   लिंकपर, स्रोत wayback machine of https://web.archive.org/web/*/videha   258 capture(s) from 2004 to 2016- http://videha.com/  भालसरिक गाछ-प्रथम मैथिली ब्लॉग / मैथिली ब्लॉगक एग्रीगेटर) केर रूपमे इन्टरनेटपर  मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितक रूपमे विद्यमान अछि। ई मैथिलीक पहिल इंटरनेट पत्रिका थिक जकर नाम बादमे १ जनवरी २००८ सँ "विदेह" पड़लै। इंटरनेटपर मैथिलीक पहिल उपस्थितिक यात्रा विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि, जे http://www.videha.co.in/   पर ई प्रकाशित होइत अछि। आब “भालसरिक गाछ” जालवृत्त 'विदेह' ई-पत्रिकाक प्रवक्ताक संग मैथिली भाषाक जालवृत्तक एग्रीगेटरक रूपमे प्रयुक्त भऽ रहल अछि। विदेह ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA

 

(c)२०००-२०२२. सर्वाधिकार लेखकाधीन आ जतऽ लेखकक नाम नै अछि ततऽ संपादकाधीन। विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA सम्पादक: गजेन्द्र ठाकुर। सह-सम्पादक: डॉ उमेश मंडल। सहायक सम्पादक: राम वि‍लास साहु, नन्द विलास राय, सन्दीप कुमार साफी आ मुन्नाजी (मनोज कुमार कर्ण)। सम्पादक- नाटक-रंगमंच-चलचित्र- बेचन ठाकुर। सम्पादक- सूचना-सम्पर्क-समाद- पूनम मंडल। सम्पादक -स्त्री कोना- इरा मल्लिक।

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स्थायी स्तम्भ जेना मिथिला-रत्न, मिथिलाक खोज, विदेह पेटार आ सूचना-संपर्क-अन्वेषण सभ अंकमे समान अछि, ताहि हेतु ई सभ स्तम्भ सभ अंकमे नइ देल जाइत अछि, ई सभ स्तम्भ देखबा लेल क्लिक करू नीचाँ देल विदेहक 346म आ 347 म अंक, ऐ दुनू अंकमे सम्मिलित रूपेँ ई सभ स्तम्भ देल गेल अछि।

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विदेह: वर्ष:2::मास:17::अंक:33- part I V


डा. प्रेमशंकर सिंह (१९४२- ) ग्राम+पोस्ट- जोगियारा, थाना- जाले, जिला- दरभंगा। 24 ऋचायन, राधारानी सिन्हा रोड, भागलपुर-812001(बिहार)। मैथिलीक वरिष्ठ सृजनशील, मननशील आऽ अध्ययनशील प्रतिभाक धनी साहित्य-चिन्तक, दिशा-बोधक, समालोचक, नाटक ओ रंगमंचक निष्णात गवेषक,मैथिली गद्यकेँ नव-स्वरूप देनिहार, कुशल अनुवादक, प्रवीण सम्पादक, मैथिली, हिन्दी, संस्कृत साहित्यक प्रखर विद्वान् तथा बाङला एवं अंग्रेजी साहित्यक अध्ययन-अन्वेषणमे निरत प्रोफेसर डा. प्रेमशंकर सिंह ( २० जनवरी १९४२ )क विलक्षण लेखनीसँ एकपर एक अक्षय कृति भेल अछि निःसृत। हिनक बहुमूल्य गवेषणात्मक, मौलिक, अनूदित आऽ सम्पादित कृति रहल अछि अविरल चर्चित-अर्चित। ओऽ अदम्य उत्साह, धैर्य, लगन आऽ संघर्ष कऽ तन्मयताक संग मैथिलीक बहुमूल्य धरोरादिक अन्वेषण कऽ देलनि पुस्तकाकार रूप। हिनक अन्वेषण पूर्ण ग्रन्थ आऽ प्रबन्धकार आलेखादि व्यापक, चिन्तन, मनन, मैथिल संस्कृतिक आऽ परम्पराक थिक धरोहर। हिनक सृजनशीलतासँ अनुप्राणित भऽ चेतना समिति, पटना मिथिला विभूति सम्मान (ताम्र-पत्र) एवं मिथिला-दर्पण,मुम्बई वरिष्ठ लेखक सम्मानसँ कयलक अछि अलंकृत। सम्प्रति चारि दशक धरि भागलपुर विश्वविद्यालयक प्रोफेसर एवं मैथिली विभागाध्यक्षक गरिमापूर्ण पदसँ अवकाशोपरान्त अनवरत मैथिली विभागाध्यक्षक गरिमापूर्ण पदसँ अवकाशोपरान्त अनवरत मैथिली साहित्यक भण्डारकेँ अभिवर्द्धित करबाक दिशामे संलग्न छथि,स्वतन्त्र सारस्वत-साधनामे।

कृति-

मौलिक मैथिली: १.मैथिली नाटक ओ रंगमंच,मैथिली अकादमी, पटना, १९७८ २.मैथिली नाटक परिचय, मैथिली अकादमी, पटना, १९८१ ३.पुरुषार्थ ओ विद्यापति, ऋचा प्रकाशन, भागलपुर, १९८६ ४.मिथिलाक विभूति जीवन झा, मैथिली अकादमी, पटना, १९८७५.नाट्यान्वाचय, शेखर प्रकाशन, पटना २००२ ६.आधुनिक मैथिली साहित्यमे हास्य-व्यंग्य, मैथिली अकादमी, पटना, २००४ ७.प्रपाणिका, कर्णगोष्ठी, कोलकाता २००५, ८.ईक्षण, ऋचा प्रकाशन भागलपुर २००८ ९.युगसंधिक प्रतिमान, ऋचा प्रकाशन, भागलपुर २००८ १०.चेतना समिति ओ नाट्यमंच, चेतना समिति, पटना २००८

मौलिक हिन्दी: १.विद्यापति अनुशीलन और मूल्यांकन, प्रथमखण्ड, बिहार हिन्दी ग्रन्थ अकादमी, पटना १९७१ २.विद्यापति अनुशीलन और मूल्यांकन, द्वितीय खण्ड, बिहार हिन्दी ग्रन्थ अकादमी, पटना १९७२, ३.हिन्दी नाटक कोश, नेशनल पब्लिकेशन हाउस, दिल्ली १९७६.

अनुवाद: हिन्दी एवं मैथिली- १.श्रीपादकृष्ण कोल्हटकर, साहित्य अकादमी, नई दिल्ली १९८८, २.अरण्य फसिल, साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली २००१ ३.पागल दुनिया, साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली २००१, ४.गोविन्ददास, साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली २००७ ५.रक्तानल, ऋचा प्रकाशन, भागलपुर २००८.

लिप्यान्तरण-१. अङ्कीयानाट, मनोज प्रकाशन, भागलपुर, १९६७। सम्पादन-

गद्यवल्लरी, महेश प्रकाशन, भागलपुर, १९६६, २. नव एकांकी, महेश प्रकाशन, भागलपुर, १९६७, ३.पत्र-पुष्प, महेश प्रकाशन, भागलपुर, १९७०, ४.पदलतिका,महेश प्रकाशन, भागलपुर, १९८७, ५. अनमिल आखर, कर्णगोष्ठी, कोलकाता, २००० ६.मणिकण, कर्णगोष्ठी, कोलकाता २००३, ७.हुनकासँ भेट भेल छल,कर्णगोष्ठी, कोलकाता २००४, ८. मैथिली लोकगाथाक इतिहास, कर्णगोष्ठी, कोलकाता २००३, ९. भारतीक बिलाडि, कर्णगोष्ठी, कोलकाता २००३, १०.चित्रा-विचित्रा, कर्णगोष्ठी, कोलकाता २००३, ११. साहित्यकारक दिन, मिथिला सांस्कृतिक परिषद, कोलकाता, २००७. १२. वुआडिभक्तितरङ्गिणी, ऋचा प्रकाशन,भागलपुर २००८, १३.मैथिली लोकोक्ति कोश, भारतीय भाषा संस्थान, मैसूर, २००८, १४.रूपा सोना हीरा, कर्णगोष्ठी, कोलकाता, २००८।

पत्रिका सम्पादन- भूमिजा २००२

मणिपद्म क संस्मरण-संसार


विगत अनेक शताब्दीदसँ मैथिली भाषा ओ साहित्यणक सुदीर्घ एवं समृद्वशाली साहित्यिक परम्पअरा अवि छिन्नथ-अक्षुण्णय रूपेँ चलि आबि अछि; किन्तुw बीसम शताब्दी केँ जँ एकर साहित्यिक विकास-यात्राकेँ स्वार्णयुगक संज्ञासँ अभिहित कयल जाय तँ एहिमे कोनो अत्यु्क्ति नहि हैत, कारण विगत शताब्दीञमे एकर सर्वांगीण विकास-यात्रामे एक नव मोड आयल जे पत्र-पत्रिकाक उदय भेलैक तथा ओकर प्रकाशनक शुभारम्भद भेलैक जकर फलरूप गद्यक विभिन्नप रूप-विधानक प्रादुर्भाव पत्र-पत्रिकाक प्रकाशनसँ आ ओकर प्रयोग रूप-विधानक रूपमे पाठकक समक्ष प्रस्तुदत भेल। संघर्षमय युगक जीवनमे गद्यक मर्यादा एहि रूपेँ रूपायित कऽ देलक जे ओ अभिव्यपक्तिक असाधारण साधन बनि गेल। आधुनिक मैथिली गद्य-गंगाकेँ सम्पोजषित करबाक उद्देश्यस सँ साहित्य -पुरोध लोकनिक सत्प्र यासँ ओकर परिष्काूर परिमार्जन भेलैक। गत शताब्दीउमे आत्म कथा, आलोचना, उपन्याास, कथा, गाआ जीवनी, डायरी, निबन्धा, संस्मआरण, साक्षात्कारर आदि अनेक साहित्यिक विधा-जन्म) देलाआ साहित्य मे एक नव-स्पनन्द,न-स्पहन्दसन भरबामे महत्वपूर्ण भूमिकाक निर्वाह कयलका। ई श्रेय वस्तु त: पत्रिकादिकेँ छैक जे आधुनिक गद्यक आविर्भाव एवं विकास-यात्राकेँ करबाका तथा साहित्यरक श्रीवृद्विक सहयोगमे अपेक्षित ध्यािन देलक। एहि निमति साहित्यत-सृजानिहार लोकनि नव-नव प्रवृत्तिक रचनाक दायित्वहक भार वहन कयलनि आ सम्पा्दक लोकनि ओकरा यत्नर पुरस्स-र प्रकाशति कयलनि जकर फलस्विरूप मैथिली गद्यक भेलैक आ ओकरा विविध रूप-विधानमे विन्या स्तय कयल जाय लागल। पत्रिकादिक माध्य मे सेहो नव-नव रचानाकारकेँ प्रोत्सा्हन भेटलनि तथा हुनका सभक ध्यायन ओहि विधा दिस आकर्षित भेलनि जकर एहि साहित्याान्तरर्गत सर्वथा अभाव छलैक। एहिसँ अतिरिक्त विगत साहित्यिक विकास-यात्रामे अनेक उल्लेअख योग्य काज भेल जकर ऐतिहासिक महत्त्व छैक। रचनाकारक भाव-प्रवणता, हार्दिकता, कल्पनाशीलता एवं स्वहछन्दछ प्रवृत्तिक परिणाम स्ववरूप मैथिली गद्य अपनाकेँ नव पल्लवसँ पल्लववित कयलक। विगत शताब्दीैमे एकर सर्वतोमुखी विकास विकास भेलैक जाहि आधार पर एकरा गद्य-युग कहब समीचीन होयत, कारण मैथिली गद्य-गंगा शत-शत धारा मे प्रवाहित होइत एकर साहित्यम सागरकेँ भरलक आ पूर्ण कयलक। उपर्युक्त पृष्ठकभमिक परिप्रेक्ष्यभमे मैथिलीमे एक अद्वितीय प्रतिभासमपत्रा तप : सपूत रचानाकारक प्रादुर्भाव भेल आ अपन अप्रतिम प्रतिभाक बल पर साहित्यक अनेक विधाकेँ संस्कादरित कयलनि आ ओकरा मिथिलांचल अभिज्ञानदकए भारतीय साहित्यपक समकक्ष स्था्पित कयलनि जे रचनाक प्रत्येाक क्षेत्रमे, सर्जनाक यावतो प्रस्थाकनमे ओ अपन कृतिमे ने केवल परवर्ती पीढीक हेतु, प्रत्युमत् अपन समकालीनक हेतु सेहो शिखर पुरूष आ प्रेरक स्तपम्भर बनि गेलाह ओ रहथि डा. व्रजकिशोर वर्मा मणिपदूम (1927-1986) हुनक प्रकाशित साहित्य वैविध्यिपूर्ण अछि, कारण साहित्यिक अभिक्तिक कोनोक विधा नहि बाचल रहल जकर सहज प्रयोगमे ओ उल्लेगख योग्य् सफलता नहि प्राप्त कयलानि। हुनका द्वारा रचित साहित्यगक प्रचुरता आ विचित्रता अछि, किन्तु ओहिमे सर्वाधिक महत्विपूर्ण तथ्यच थिक जे एहि परिमाण-प्राचुर्यमे हुनक अधिकांश साहित्यिक कृतियि कोटिक थिक। जहिना हिनक रचनाक विशदता पाठककेँ चकित आ विस्मित करहल अछि तहिना हुनक व्याक्तित्वाक आध्याँत्मिक रहस्युमयता सेहो अधिक जोड पकडलक। हुनक आभ्य न्तारिक शक्ति हुनका निरन्त र चिर-नूतन रचनाक हेतु उत्प्रे्रित करैत रहलनि तथा विश्राम करबाक लेल पलखति नहि देलकनि। ओ जीवनक विविध पथक पथिक रहथि तथा विषाद आ करूणाक बीच सौन्द र्यक अन्वेवषण करब हुनक लक्ष्या छलनि। हुनक मन आ मस्तिष्कआ क्षितिज जाग्रत छलयनि। ओ जीवन आ प्रकृतिक पक्षधर रहथि। ओ एक दूरदर्शी साहित्यर-मनीषी रहथि जे मैथिली मे जाहि विधाक अभाव हुनका परिलक्षित भेलनि तकर पूत्य्र्थ मनसा-वाचा- कर्मणा ओहि मे लागि गेलाह। हिनका द्वारा प्रयुक्त विधा साहित्यूक विधे नहि रहल, प्रत्युीत आकर्षक विधाक रूपमे ख्या ति अर्जित कयलक। चिरनूतनताक अन्वेहषी मणिण्द्य मैथिली साहित्यतमे संस्मररण साहितयान्तुर्गत चारि नव विधाक प्रवर्त्तन कयलनि जकर सम्बवन्धद अतीतसँ अछि, यद्ययपि संस्मेरणक संसार विषयक दृष्टिं व्यालपक नहि, तथापि संवेदनाक गाम्भीहर्य आ आत्मींय-स्पवर्शक दृष्टिं अत्यकन्त् श्रेष्ठण कोटिक साहित्यन-विधाक अन्त्र्गत अबैछ1 भारतीय भाषा आ साहित्य्मे एहि विधाक जन्म पाश्चात्या साहित्यहक संग-सम्पतर्कक फलस्वकरूप प्रारंम्भय भेल जे अधुनातम सन्दयर्भमे एक वेश चर्चित विधाक रूपमे प्रचलित भेल अछि। ओ एहि विधामे के विपुल परिमाणमे सहित्यम-सृजन कयलनि, किन्तुि दुर्योगक विषय थिक जे मैथिलीक तथाकथित इतिहासकार लोकनिक ध्या न एहि दिस नहि गेलनि आ ओकर चर्चा पर्यन्ति नहि कयलनि। भारतीय साहित्यध निर्माता सिरीज अन्तओर्गत साहित्यु अकादेमीसँ मणिपद्य (1969) पर एक मनोग्राफ प्रकाशित भेल अछि। ओकर लेखक एहि सिरीजक रचनाकेँ बिनु पढन।हि उपेन्द्र महारथीक बदला मे रामलोचन शरणक उल्ले्ख कयलनि। इएह तँ मनोग्राफ लेखकक स्थिति अछि। भारतक स्वलतन्त्रछता-संग्रामक इतिहासमेक सन् उन्नैलस सै वियालिसक ऐतिहासिक दृष्टिएँ अत्यकन्तव महत्वतपूर्ण स्थािन अछि। सन् वियालिसक महाक्रान्तिमे बूढ-बूढानुस नेतासँ अधिक जुआन-जहानक रक्तर विशेष गर्म छलैक आ अंग्रजी शासनक विरूद्व ओकरा लोकनिक स्व-र वेश मुखर भेल छलैक। उत्तर बिहार वा मिथिलांचलक नवयुवक लोकनि एहि यज्ञमे अपन प्राणक आहुति देलनि आ रक्तसँ तर्पण कयलनि। मणिपद्य स्वुयं सजग, सचेष्ट् आ निर्भीक स्व तन्त्रपता सेनामी रहथथि तहि परिप्रेक्ष्यकमे ओ मै थिली संस्मतरणक सर्वप्रथम डायरी शैलीक प्रवर्त्तन कयलनि अवश्य्, किन्तुा एकरा अन्त्र्गत ओ प्रचुर परिमाणमे रचना कयने रहितथि तँ ओ निश्चनये मैथिली साहित्यमक एक अभूतपूर्व कृति होइत । एकरा अन्तनर्गत हुनक विलायसीक फारारीक सात दिन (1153) तथा फरारीक पाँच दिन’ (1171) प्रकाशित अछि जाजिमे स्वीतन्त्रूता आन्दोयलनक क्रम मे ओ जे डायरी लिखलनि तकर दारूण पीडादायक वर्णन कयलनि। एहिमे रचनाकार सद्यय : स्फुतटितभाव वा विचारकेँ अभिव्यीक्ति देलनि वा अपन अनुभवक रेखांकन वा विगत अनुभवक पुनर्मूल्यांीकन कयलनि। एहिमे वियालिसमे फेरार भेल अपन स्थितिक चित्रण कयलनि संगहि नेपाल तराइक जन-जीवन पर सेहो प्रकाश देलनि। अपन दीर्घ सार्वजनिक जीवनमे ओ देशक राजनैतिक,सामाजिक, साहित्यरक आ सरकारी उपक्रमे काज कयनिहार व्यनक्तिक सम्परर्कमे अयलाह, ओहि स्मृतिकण केँ जोडिहुनका सँ भेट भेल छल सन् 1153ई सँ लिखब प्रारम्भल कयलनि जकर समापन 1183 ई. धरि अनवरत चलैत रहलनि जकरा एहिमे अभिव्यसक्तिक मूर्त्तरूप प्रदान कयलनि। हिनक उपर्युक्त संस्मिरण मात्र लेखकीय मनीषा पर नहि आधृत अछि; प्रत्युकत्त-प्रेम, ईश्वार-प्रेम, स्व्देश-प्रेम, महतक प्रति श्रद्वा विनोद-प्रियता आदिक समस्तत वैशिष्ट्रमयक झलक एहिमे भेटैछ। ओ अपन दीर्घ साहित्यिक जीवनान्तीर्गत जाहि-जाहि मातृभाषा आ साहित्या नुरागी साधक लोकनिक सम्पमर्कमे अयलाह ओकरा संगाहि अन्याआन्यस भाषानुरागी विद्वत् वर्गसँ अभिभूत भेलाह, जाहि रूपेँ हुनका हृदयंगम कयलनि, जाहि रूपेँ प्रभावित भेलाह तनिके ओ एहि श्रृंखलाक कडीक आधार बनौलनि। हिनक संस्मकरणात्मनक आलेख यद्यति विवरणात्मिक अछि तथापित ओ सत्यि घटना पर आधत संगहि वर्णित व्यआक्तिक मातृभाषाक अनुराग आ साहित्यिक आन्दोपलनक परिचायक सेहो अछि। एहि सिरीजक अन्तभर्गत प्रकाशित संस्मदरण जीवनक एक पक्षकेँ उदूघाटित करैत अछि जे व्येक्ति अपन क्रिया-कलापसँ आकर्षित कयलनि तनिके पर ओ लिखलनि। एकरा अन्तार्गत वर्णित व्यिक्तिक व्य क्तित्व आ कृतित्व क ओही अंशकेँ ओ स्पतर्श कयलनि जे अपन उपस्थितिसँ अमृत वर्षा कयलनि आ सहज होथि आ ने केवल स्मृकति विषयक व्य क्तित्व केँ सेहो दीपित करैत हो, प्रत्यु त स्वकयं लेखकारक व्यषक्तित्वि कँ सेहो दीपित कयलक। एहिमे ओ वर्णित व्यतक्तिकक व्यतक्तित्वे ओही वैशिष्य् तथा स्थितिकेँ जनसामान्यसक समक्ष प्रस्तुओत-कयलनि जाहिसँ हिनक संस्मकरण वास्तकविक घटित घटनाक सन्निकट आ सम्भथवभसकल। ओ स्पिष्टम रूपेँ पाठकक-समक्ष अपन यथार्थ प्रतिक्रिया वर्णित व्य क्ति पर व्य क्तप कयलमनि जकर वर्त्तमान परिपेक्ष्यटमे ऐतिहासिक महत्वअभगेल अछि। एहि सिरीजक अन्तरर्गत मैथिली भाषा आ साहित्यपक निम्न स्थव व्यकक्तित्वक संग हुनका साक्षात्का र भेलनि तथा अपन अमिट छाप छोडलनि यथा सीताराम झा, (1811-1175), बैद्यनाथ मिश्र यात्री (1111-1118) काञ्चीनाथ झा किरण (1103-1181) , चन्द्रटनाथ मिश्र अमर (1125), कुलानन्द- नन्द न (1108-1180) सुधांशु शेखर चौधरी (1120-1110) सामदेव (1134), सुरेन्द्र1 झा सुमन (1110-2002), नरेन्द्र नाथ दास विद्यालंकार (1104-1113) मायानन्द) मिश्र (1134) भोलालाल दास (1814-1199), लक्ष्मरण झा (1113-2002), गिरिन्द्र मोहन मिश्र (1810-1183), जगदीश्वकरी प्रसाद ओझा (?) महामहोपाध्या य उमेश मिश्र (1825-1139), अमरनाथ झा (1819-1144), राजकमल चौधरी (1129-1139), रामकृष्णर झा किसुन (1123-1190), रामनाथ झा (1103-1191) कविशेखर बदरीनाथ झा (1813-1198) ज्यो1तिषाचार्य बलदेव मिश्र (1180-1194), राजेश्व र झा (1122-1199), बाबू लक्ष्मी3पति सिंह (1109-1192), उपेन्द्र ठाकुर मोहन (1113-1180) एवं श्रीमती सुभद्रा झा (1111-1182), राधाकृष्ण1 चौधरी (1124-1184) इत्या1दि पर ओ हुनकासँ भेंट भेल छल क अन्त1र्गत लिखलनि1 कविवर सीताराम झा बाबू भोलालाल दास आ राधाकृष्ण1 चौधरी पर हुनक दुइ संस्म्रण हमरा उपलब्ध9 भेल जकरा यथावत् एहिमे समाहित कयल अछि। उपर्युक्तस महानुभावक संस्म्रण एक जीवितावस्थाह थिक आ दोसर मृत्यूपपरान्त1क। उपर्युक्त संस्मुणान्तमर्गत ओ हुनक जीवनवृतिक इतिहासे नहि प्रस्तुवत कयलनि; प्रत्युहत हुनक साहित्यिक अभिरूचि एवं अवदानक संगहि संग संगठनात्मतक प्रवृत्तिक लेखा-जोखा प्रस्तु्त कयलनि जे मातृभाषाक विकासमे उल्लेहख योग्यि अवदानक रूपमे चर्चित अछि। हनुका सँ भटँृ भेल छलक परिधि मात्र मैथिली साहित्य मनीषी लोकनि धरि सीमित नहि रहल, प्रत्युभत ओकर फलक विस्तृित छल तकर प्रारूप भेटेछ, जे विश्व्क प्रख्याात भाषा-शास्त्री विद्वतवरेण्यु डा. सुनीति कुमार चटर्जी (1810-1199), हिन्दीि साहित्येक प्रख्याभत साहित्यँ मनीषी आचाय्र डा. हजारी प्रसाद द्विवेदी (1109-1191), महान राजनेता जयप्रकाश नारायण (1102-1191), मिथिलाक प्रख्या त चित्रकार उपेन्द्रय महारथी (मृत्युि 1181), मिथिलाक यशस्वीर राजनेता ललित नरायण मिश्र (1122-1195), एवं दरभंगाक राजा बहादुर विश्वेलश्व1र सिंह (1108-1193) इत्या्दि व्यएक्तित्वमक प्रसंगमे अपन निजी धारणाकेँ रूपायित कयलनि। एहिसँ अतिरिक्त ओ अपन पूज्यक पिताश्री आ पूज्या माता पर सेहो संस्म1रणक रचना कयलनि1 एहि सिरीजक अन्त्र्गत समाजक उपेक्षित आ तिरस्कृोत वर्गक प्रति हुनकर हृदयमे असीम श्रद्वा, अगाध प्रेम आ अपार सहानुभूति छलसनि तकर यथार्थताक प्रतिरूप भेटैछ सोमन सदाइ, गोदपाडिनी नट्टिन एवं नंगटू साँढ मे जाहिमे ओ ओकर वास्त्विक पृष्ठ भूमिक रेखांकन कयलनि। सरकारी तन्त्रवक परिवेशमे भ्रष्ट चारी थानेदारक संग कोन स्थितिमे साक्षात्कारर भेलनि तकर यथार्थ क्रिया-कलाप दिस हुनक ध्याान केन्द्रित भेलनि तकरो एहि सिरीजक अन्तर्गत अनलनि। व्ययवसायसँ ओ होमियोपैथ रहथि। ओ एक पहाडी रोगिणीक प्रसंगमे सेहो लिखलनि जे हुनकासँ इलाज कराबय आयल छलीह। हनुकाँ सँ भटँ भेल छल क अन्तोर्गत ओ स्मृलति-सूत्र आ साहित्यिक रिक्त ताक जीवन-परिचय विचार-धारा, साहित्यिक प्रवृत्ति आ सामाजिक गतिविधिक परिचय प्रस्तुकत कयलनि। एहि संस्म-रणात्मखक निबन्धवमे ओ ने केवल प्राचीन परिपाटीक परित्यानग कयलनि, प्रत्युात नव जीवन दष्टि आ नव पद्वतिक श्रीगणेश कयलनि। एहन अनुभति परक कृति सभमे ओ अपन अतीतक ओहि प्रसंगक उद्भभावना कयलनि जे हुनक साहित्यिक व्य क्तित्विक नियामक सिद्व भेल। एहि सिरीजमे जतबे संस्मअरण उपलब्धत अछि दवबे ओ तदयुगीन साहित्यिक गतिविधिक दस्तानवेज थिक जे मैथिली साहित्योेतिहासमे अत्य न्ता अहं भूमिकाक निर्वाह करैछ। भावनात्मिकता आ वैयक्तिकताक संगहि संग वैचारिकताक अद् भुत समन्वूय एहिमे भेल अछि। सैद्वान्तिक दृष्टिएँ, हुनक संस्म रण साहित्यम साहित्यिक संस्मकरणक विशिष्टच गुणसँ अलंकत आ महत्त्वपूर्ण अछि। एहिमे कथात्महकताक दृष्टिएँ कथा, वैचारिकताक दृष्टिएँ निबंध आ भावनात्मवकताक दृष्टिएँ कविता एहि तीनू विधाक त्रिवेणीक अभूतपूर्व संगम भेल अछि। हिनक संस्मूरणमे अनुभूति, वर्णन, विवरण, विचार, भाव, यथार्थ, आ कल्पिनाक अद् भुत समन्वसय भेल अछि। हिनक संस्मनरणात्मीक निबन्ध क मूलाधार भावना जे काव्यांत्मलकताक सहज गुणसँ अलंकृत अछि। एहि सिरीजक संस्ममरणक अनुशीलनसँ अवबोध होइछ जे मणिपद्यकेँ भारतीय साहित्यआक संगहि-संग पाश्चा।त्यी साहित्य क सेहो गहन अध्यधयन छलरनि जकर वास्तकविकताक परिचय हुनक उपर्युक्त संस्मणरणान्तअर्गत डेग-डेग पर उपलब्धल होइछ। ओ अपन एहि रचनान्तुर्गत एहन वातावरणक निर्माण कयलनि पाहिसँ पाश्चाोत्यल साहित्यछ चिन्तचक लोकनिक विश्वर प्रसिद्व रचना सभक सेहो विवरण प्रस्तुोत करबामे कनियो कुंठित नहि भेलाह जे ओहि अवसरक हेतु उपयुक्त हेतु उपयुक्त छल। एहिमे गांधीवादक संगहि-संग मार्क्सेवादक छौंक स्थतल-स्थिल पर भेटैछ। हुनका सँ भँट भेल छल मे तीव्र मानवीय संवेदना, व्याथपक सहानुभूति, सजल करूणा ममता आ आत्मी यता अछि जे अन्यंत्र दुर्लभ अछि। एहिमे नोर आ तीव्र आवेगक गम्भीआर चित्र तथा सामाजिक, राजनीतिक विचारक स्पिष्ट् फराकहिसँ चिन्हनल जा सकैछ। एहिमे साहित्यीकार, शिक्षाविद्, राजनीतिज्ञ मातृभाषाक उन्नाफयक, समाजसेवी, कलाकार आ विद्वत् वर्गसँ सम्बकन्धित व्यिक्तिक संग साक्षात्कातर अछि जे वर्त्तमान परिप्रेक्ष्येमे अतिशय ज्ञानवर्द्वक थिक।
मणिपद्य एक पैघ यायावर रहथि। साहित्यिक यायावरकेँ एक अद् भुत आकर्षण अपना दिस आकर्षित दिस आकर्षित करैछ, ओ मन्त्र मुग्धतभकए ओहि दिस आकर्षित भजाइछ। एहन साहित्यक सर्जनमे ओ संवेदनशील भकए निरपेक्ष रहथि1 यायावरीक क्रममे हुनकर रस्तारमे पडनिहार मंदिर, मसजिद, मीनार, विजय स्त म्भ , स्मा रक, खण्डमहर, किला, कब्रीस्ता्न आ प्राचीन महलक संस्कृहतिक, कला आ इतिहासकँ एकत्रितककए अपन यात्राक पष्ठ,भूमि तैयार कयलनि। हिनक उपलब्धज यात्रा-साहित्यि संस्मनरणात्मठक थिक जाहिमे ओ एक सामान्यल यात्री जकाँ अपन प्रभाव, प्रतिक्रिया आ सम्वेनदनाकेँ महत्वम देलनि। एहि सिरीजकेँ ओ ओहीठाम गेल छलहुँ नामे यात्रा-वृतान्तत प्रस्तुयत कयलनि जकरा अन्तथर्गत कोर हाँस गढक सौझ (1162), ई आषाढक प्रथम दिन (1163) पुण्याभूमि सरिसव पाही (1168), कुलदेवी विश्वेजश्वपरी (1168), त्रिशुला तट प्रवास (1161), एकटा पावन प्रतिष्ठा न (1191), प्रसंग एकटा स्मारक का (1195), महिषी साधना/साधना/संकेत (1195) एवं विसफीसँ वनगाम धरि (1183) आदि उल्लेाखनीय अछि।
ओहिठाम गेल छलहुँ मे ओ साहित्य क समग्र जीवनक अभिव्यसक्ति रूपमे ग्रहण कयलनि। हिनका लेल प्रकृति सजीव अछि यात्रामे जे पात्र भेटलनि ओ हुनक आत्मीय आ स्व्जन बनि गेलथिन। हिनक यात्रा-साहित्यपमे महाकाव्यत आ उपन्याससक विराटत्तत्वस कथाक आकर्षण, गीति काव्य्क मोहक भावशीलता, संस्म रणक आत्मीसयता, निबन्ध क युक्ति सभ किछु अनायासहि भेटि जाइत अछि। ओ जे देखलनि, अनुभव कयलनि तकर यथार्थ चित्र एहिमे प्रस्तु त कयलनि। एकर सर्वोपरि वैशिष्ट्यत थिक-औत्सुलक्यन जे पाठक एकबेर पढब प्रारम्भत करैछ तँ ओकर समाप्ति जा धरि नहिभजाइछ ताधरि हुनका चैन नहि होइत छनि। हुनका भूगोलक विशद ज्ञान छलनि तेँ कोनो स्था्नक भौगोलिक वर्णन करबामे ओ निपुणता देखौलनि जकर यथार्थक परिचय एहिमे उपलब्धय एहिमे करौलनि1 एहि श्रृंखलान्त र्गत जे रचनादि उपलब्धा अछि ओकर चिन्तबन चिन्तकन-मननसँ स्पखष्ट प्रतिभाषितभभ रहल अछि जे ओ वर्णित वस्तुधक फिल्मां कणकदेलनि जे पाठकक समक्ष वर्णित वस्तुपक समग्र चित्र सोझाँ आबि जाइछ। हिनक यात्रा-वृतान्त् शौली पर औपन्या सिक शैलीक प्रभाव परिलक्षित होइत अछि जे ओहिमे स्थाान विशेषक विस्तृात चित्रण कयलनि जहिना ओ देखलनि तहिना तकर यथार्थ चित्रण पाठकक समक्ष प्रस्तु त कयलनि। पाठककेँ सहसा आभास होमय लगैत छनि जेना ओहो ओहीप यात्राक सहयात्री होथि। हिनक वर्णन-कौशल चित्रात्मगक होइत छलनि। एहन चित्रात्मठक वर्णण निश्चीये अप्रतिम प्रतिभाक परिचायक थिक जे सामान्यह रचनाकार द्वारा सम्भरव नहि। ओ जाहि वस्तुक वर्णन कयलनि तकर रनिंग कमेन्ट्रीा ओहिना प्रस्तुदत कयलनि जेना आइ काल्हि क्रिकेट खेलक मैटानसँ मैदानसँ रेडियो वा टेलिभीजन पर देल जाइछ। यात्रा-विवरणमे रोचकता अपरिहार्य गुण मानल जाइछ तकर सम्यिक निर्वाह हिनक ओहि ठाम गेल छलहुँ मे भेल अछि। ओ अत्यपन्त भावुक हृदयक व्यनक्ति रहथि तेँ बिनु कोनो राग-द्वेषक ओकर यथार्थ वर्णन कयलनि। अपनाकेँ सत्य आ ज्ञानक भण्डाथर बुझिकनहि तथा पाठककेँ शिक्षित करबाक मनसा हुनकर कदापि नहि छलनि, जेना ओ पञ्चभूत सँ भिन्ना-भिन्न चरितक सहायतासँ भिन्न -भिन्न् दृष्टिकोण उपस्थित कयलनि जाहि प्रकारेँ ओहि ठाम गेल छलहुँ मे जेना ओ अपनहि संग तर्क करैत यात्राक समापन कयलनि। एहि श्रृंखलान्तुर्गतक रचनामे ओ जे किछु मैथिली पाठक केँ दपौलनि ओ सभ हुनक आत्मश-परीक्षणक स्वचगत कथन थिक। मैथिलीक प्राचीन पत्रिकाक अनुशीलनसँ ज्ञात होइछ जे मणिपद्यक प्रबल इच्छान छलननि जे ओ अपन व्य्क्तिगत एवं साहित्यिक जीवनक आधार पर आत्मककथाक एक विस्तृ त पुस्त कक रचनाक रकथि तकर प्रतिमान उपलब्धा होइछ सांस्कृ तिक समिति, मधेपुर, मधुबनी द्वारा प्रकाशित स्मृतति नामक स्माारिकामे तथा मैथिली प्रकाश मे प्रकाशति बाटे-घाटे (1183) एवं अनजान क्षितिज (1183) मेा बाटे-घाटे पहिने प्रकाशित भेल स्मृमति मे जे पश्चा(त् जाकमैथिली प्रकाशमे पुन: प्रकाशित भेल1 एहि भेल। एहि दुनू आलेखसँ विषय स्प(ष्ट होइछ। वस्तुीत: ओ आत्मरकथा लिखलनि वा नहि से अनुसन्धेुय थिक। मणिपद्यकेँ भाषा पर जबरदस्तृ अधिकार छलनि। हुनक भाषाक चमक कहियो फिक्काि नहि पडलनि। अपन विलक्षण भाषाक कारणेँ ओ मैथिलीमे अनुपम उदाहरण रहथि। मैथिलीमे ओ अपन भाषा आ वर्णन-कौशलक कारणेँ प्रख्या त रहथि। चाहे प्रकृतिक दृश्यि हो वा महानगरक कोलाहल पूर्ण वातावरण हो ओकर अत्येन्त मनोहारी वर्णन अपन भाषाक बल पर कयलनि। हुनक डायरी, हुनका सँ भेल भेल छल, ओहिठाम गेल छल हुँ एवं आत्मककथा सभक भाषा-शैली अलंकृत अछि जाहिमे कतहु अस्वाहभाविकताक आभास नहि भेटैछ। विम्ब-धार्मिता हुनक भाषाक सर्वाधिक वैशिष्ट्य् थिक1 एहन भाषामे संगीतात्म।कताक लय आ धाराक प्रवाह अछि। भाषाक धनी मणिपद्य अपन विचार-वल्लअरीक प्रत्या ख्यािनमे शब्द क एहन अनुपम विन्या स कयलनि जे हिनक गद्यमे सेहो पद्यक सौष्ठव परिलक्षित होइत अछि। हुनक भाषामे रूप, छन्दि आ सुस्वावदुता अछि जे पाठकक संग हुनक व्य्वहार, सौजन्य , आसक्ति आ हास्यआ-व्यंिग्युक बोध होइछ आ जगक संग ओकर व्युवहार मे राग ओ दूरदर्शी काल्पयनिकताक पुट भेटैछ। ओ तथ्युपूर्ण भाषाक प्रयोग कयलनि। प्रस्तुओत संकलनक भाषा काव्यामयी अछि जे स्थ ल-स्थहल पर ओ अनुप्रास, उपमा, उत्प्रेभक्षा आ रूपक का झडी लगा देलनि जे हिनक एहि साहित्यथक अनुपम उपलब्धि थिक।
हिनक भाषा मिथिलांचलक लोकक माटिक भाषा थिक। हिनक भाषा पर हिनक व्यकक्तित्व क एतेक गम्भी र छाप छलयनि जे ओ सुगमतापूर्वक चिन्ह ल जा सकैछ। हिनक भाषा मे एहन अद् भुत शक्ति आ वैभव पूर्ण अछि कारणेँ हिनक रचना सभकेँ बारम्बाेर पढबाक उत्सुअकता पाठकक मोनमे सतत जागृत होइत रहैछ चाहे ओ उपन्याबस हो, कथा हो, नाटक हो, एकांकी, कविता हो वा संस्मेरण हो। एहि मे ओ साधुभाषाक संगहि संग घरौआ ठेंठ चलन्त भाषाक स्त्रोातस्विनी प्रवाहित कयलनि। लोक शब्दारवलीकेँ मने मन स्वी कारकलेने रहथि जकर यथार्थ प्रतिरूप हुनक साहित्या न्तोर्गत प्रतिध्ववनित होइत अछि। शास्त्री य भाषाक संगहि ओ आंचलिक भाषाक अनुच्छिष्टू उपमानक प्रयोग प्रचुर परिमाणमे कयलनि। जनिका मिथिलांचलक ग्राम्यष-शब्दाकवलीक उपमानक रसास्वारदन करबाक होइन ओ मणिद्य-साहित्यलक अवगाहन करथु हुनका एहन-एहन शब्दा वलीक संग साक्षात्का र होयत-नि तकर यथार्थ अर्थ-बोधमे अवश्ये- कठिता होय‍‍तनि। अन्यािय भारतीय भाषामे हिनक रचनादिक अनुवाद करबामे कतिपय समस्यान उत्पवन्नय होइछ जे ओकर समानर्थी शब्दच सुगमता पूर्वक नहि उपलब्धस होइ जाहि सन्दवर्भमे ओ प्रयोग कयलनि। विषयगत विविधताक अनुरूप हिनक भाषा-शैली सेहो विविध रूपा थिक। संस्कृ्त गर्भिता मिश्रित भाषा, काव्याषत्मैक आ भाव बहुत भाषा, सामान्य लोकक भाषाक संगहि संग ओ आलंकारिक भाषाक प्रयोग सेहो कयलनि। प्रस्तुैत रचना समूहमे मिथिलांचक माटि-पानिक अपूर्व सौष्ठयव अछि1 ई अत्यतन्तह छोट-छोट सरल वाक्यतक प्रयोग कयलनि जाहिसँ भाषामे चमत्कासर आबि गेल अछि। एहि रचना समूहमे ओ संलाप शैलीक प्रयोग कयलनि। काव्याक समानहि हिनक गद्य-भाषा सेहो अत्यैन्तग सरल, प्रवाह पूण्र आ माधुर्य युक्त अछि। भाव, भाषा आ संगीतक त्रिवेणीक संगम बनाकओ गद्यक निर्माण कयलनि1 हिनक शब्द।-चयन अत्य न्तर शिष्टा, भावानुकूल तथा सरल वाक्यप-विन्यारस अत्य,न्ती सुदृढ अछि। हिनक गद्य-भाषामे सर्वत्र कविताक सरलता, तल्लीननता, तन्महयता आ तीव्रता अछि। फलत: पाठक कखनो कोनो पर अरूचिक अनुभव नहि करैछ; प्रत्यु त कलाकारक भावक संग बहैत चल जाइत अछि। ओ भाव-प्रवण रचनाकार। रहथि। अतएव जाहि स्थकल पर मार्मिक अनुभूति आ सुन्द्नर काल्पथनिकताक समन्वयय अछि ओतय भाषाक सौन्दसर्य प्रेक्षणीय अछि। अपन भावक अभिव्याक्तिमे ओ अत्यनन्तव आलंकारिक एवं व्य्ञ्जना पूर्ण शैलीक प्रयोग कयलनि। हुनक शैलीमे कल्पकना, भावुता, सजीवता आ भाषाक चमत्कायर दर्शनीय अछि। हुनक भाषा-शैलीमे स्पेन्द,न अछि, हृदयकेँ मथबाक शक्ति अछि, सुकुमारता आ तरलता अछि जे मैथिली मे अन्य त्र दुर्लभ अछि। मणिपद्यक गद्यक उदात्त रूप उपलब्धछ होइछ हुनक डायरी, हुनका सँ भँट भेल छल, ओहिठाम गेल छलहुँ आ आत्मद-कथा मे। ओ गद्य रचना कयलनि कविक समान, हिनक गद्यक गुण कविताक गुण थिक। प्रस्तुउत संग्रहक गद्यक तकर प्रतिमान प्रस्तुनत करैछ जे ओहिमे शब्दावलंकारक संगहि अर्थालंकारक अपूर्व चमत्कापर भेटैछ। हुनक गद्य-साहित्यए हो वा पद्य-साहित्यक हुनक व्यतक्तित्वचक अखण्डभता केँ प्रमाणित करैछ। जहिना स्मितफान मलार्भेक पालेरिक गद्यक समानहि सांकेतिक होइत छलनि मणिपद्यक गद्य-साहित्यह विषयोविशुद्वा आ आर रहित अछि। ओ अपन डायरी संस्मनरण, यात्रा वृतान्तँ आ आत्मोकथामे एकरे आधार बनौलनि आ अपन भावनाक, अपन कल्पयनाक, अपन बोध आ मत पक्षक विस्ताार कयलनि। प्रतिपाद्य संकलनक गद्य रचना एक रम्य् रचनाक प्रतिमान प्रस्तुत करैछ।

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preeti said...

premshankar singh jik aalek bad nik

Reply05/05/2009 at 02:05 PM

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Anand Priyadarshi said...

Premshankar Jik Manipadmak pothi par aalekh bad nik, pandityapoorna.

Reply05/05/2009 at 11:54 AM

विधिक विधान- लिली रे

लिली रे 1933-

जन्म:२६ जनवरी, १९३३,पिता:भीमनाथ मिश्र,पति:डा. एच.एन्.रे, दुर्गागंज, मैथिलीक विशिष्ट कथाकार एवं उपन्यासकार । मरीचिका उपन्यासपर साहित्य अकादेमीक १९८२ ई. मे पुरस्कार । मैथिलीमे लगभग दू सय कथा आ पाँच टा उपन्यास प्रकाशित । विपुल बाल साहित्यक सृजन। अनेक भारतीय भाषामे कथाक अनुवाद-प्रकाशित। पहिल प्रबोधसम्मान 2004 सँ सम्मानित।

विधिक विधान-कथा- लिली रे

पानमती खटनारि माउगि छल। सब ठाम ओकर माँग छलै। चाहे कतबो राति कऽ सुतए, पाँच बजे भोरे ओकर नीन टूटि जाइ। छबजे ओ काज पर बहरा जाए। तीन घरमे बासन मँजैत छल, घर बहाडैत-पोछैत छल,कपडा धोइत छल। साढे एगारह बजे अपन झुग्गीमे घुरैत छल।

झुग्गीमे सबसँ पहिने चटनी पीसैत छल। तकरा बाद स्टोव पर गेंट क गेंट रोटी पकबैत छल। ओकर बेटी तकरा बिल्डिंग साइट पर बेचैत छल। कुली-मजदूर टटका रोटी कीनए। चटनी मुफ्त भेटइ।

हिसाब-किताब पूनम राखए। ओ पाँच क्लास तक पढलि छल। स्कूलमे पाँचहि क्लास तक छलै। से भऽ गेलइ तपानमती पूनमकेँ काज लगा देलकै। बासन माँजब घर पोछब नइं। पूनम करैत छल कपडामेइस्त्राी। फाटल कपडाक सिलाइ, बटन टाँकब। इसकूलिया बच्चाक माइ लोकनि पूनमकेँ मासिक दरमाहा पर रखने छलीह। सस्त पडनि।

चोरी, मुँहजोरी, दुश्चरित्राता-तीनूमे कोनो दोष पानमतीमे नइं छलै। झुग्गी कालोनीक लोककेँ ओकरासँ ईष्र्या होइ। नियोजक लोकनि लग पानमती सम्मानक पात्रा छल। पूनम आठ वर्षक छल जखन पानमती ओहि इलाकामे आएल। पचास टाका मास पर झुग्गी किराया पर नेने छल। आब ओकरा चारि टा अपन झुग्गी छलै। एकमे रहै छल। तीनटा किराया लगौने छल। सौ रुपैया मास प्रति झुग्गी। आब इच्छा छलै एकटा सब्जीक दोकान करबाक। दखली-बेदखलीवला नइं, रजिस्ट्रीवला दोकान। जकरा केओ उपटा नइं सकए। दुनू माइ-बेटी रुपैया जमा कऽ रहल छल। बेटी समर्थ भऽ गेल रहै। तकर बियाह करबचाहैत छल। नीक घर-वर। विश्वासपात्रा।

पूनम पानि भरबा लेल लाइनमे ठाढि छल। बुझि पडलै जेना केओ ओकरा दिस ताकि रहल होइ। मुँह चीन्हार बुझि पडलै। अधवयसू व्यक्ति। उज्जर-कारी केश। थाकल बगए। ताबत लाइन आगू घसकि गेलइ। पूनम सेहो बढि गेल। आगू पाछू लोकक बीच अ कऽ लेलक। ओ लोक सेहो दोसर दिस मूडी घुरा लेलक।

पूनम सेहो तीन घरमे काज करैत छल। मुदा ओकरा देरीसँ जाइए पडै। तहिना देरीसँ अबैत छल। तीनू ठाम चाह-जलखइ भेटै। माइ-बेटी तीन ठाम नइं खा सकए। एक ठाम खाए, बाकी ठाम चाह पीबए। जलखइक पन्नी घर आनए। बेरहट रातिमे चलि जाइ। कहियो काल भानस करए।

पूनम जलखइ लकऽ बहराए तमाइ ठाढि भेटइ। पूनमसँ दुनू पन्नी लमाइ घर घूरि जाइ। माइ जाबत अदृश्य नइं भऽ जाइ, पूनम देखैत रहए। तखन पुनः काज पर जाए।

फेर ओएह व्यक्ति सुझलइ। ओ पूनमकेँ नइं, पानमतीकेँ अँखियासि कऽ देखि रहल छल। दूरहि दूरसँ। पानमती निर्विकार भावसँ जा रहल छल।

तकरा बाद ओ व्यक्ति नइं सुझलइ। पूनम सेहो बिसरि गेल।

पानमती स्टोव पर रोटी पकबैत छल। गरमीमे पसीनासँ सराबोर भऽ जाइत छल। काज परसँ घूरए तसबसँ पहिने अपन झुग्गीक पाछू पालिथिनक पर्दा टाँगए। पानिक कनस्तर आ मग राखए। तकरा बाद माइक बनाओल रोटी-चटनीक चंगेरी उठा साइट पर बेचजाए। पानमती स्टोव मिझा,स्थान पर राखि, नहाइ लेल जाए।

ओहि दिन रोटी कीननिहारक जमातमे ओहो व्यक्ति छल। सभक पछाति आएल। रोटी कीनबाक सती अपन गामक भाषामे बाजल-माइ कि एखनहुँ सुकरिया कहइ छउ? पूनम अकचकाइत पुछलकइ-अहाँ के छी?

-तोंही कह जे हम के छियौ तोहर?-फेर ओएह भाषा।

-बा... बू... !-पूनम कानलागल।

-विधिक विधान! जहिया तकैत रहियौ, नइं भेटलें। आशा छुटि गेल तभेट गेलें। अकस्मातहि।

-तों चुपहि किऐ पडा गेलह? हमरा लोकनिकेँ कतेक तरद्दुत उठाबपड-पूनम कनैत बाजल।

-विधिक विधान। हमर दुर्भाग्य। भेल जे आब एहि ठाम किछु हुअवाला नइं। आन ठाम अजमाबी। गम्हडियावाली काज करैत छल। तइं भेल जे तोरा लोकनि भूखल नइं रहबें। कहि कऽ जएबाक साहस नइं भेल। घूरि कऽ अएलहुँ तने ओ नगरी, ने ओ ठाम। गउआँ सभक ओतए खोज लेबगेलहुँ तसुनलहुँ जे ओ बाट बहकि गेल। गाम नइं जा मजूरक संग चल गेल। कोनो पता नइं छलइक ओकरा सबकेँ।

धत्! हमर माइ ओहेन नइं अछि।-पूनमकेँ हँसी लागि गेलइ। छलछल आँखिसँ हँसैत बाजल, गामक लोक कंठ ठेका देने रहइ गाम घूरि जाइ लेल। जबर्दस्ती लजाइत। तइं माइ नुका कऽ मंजूर मामाक मोहल्लामे आबि गेल।

-मंजूर कतअछि?

-पता नइं। मामा बड जोर दुखित पडि गेलै। दवाइ दारूमे सब पाइ खर्च भऽ गेलै। रिकशा सेहो बेचपडलै। पाछू नोएडामे ओकरे गामक कोनो साहेब रहथिन। सएह क्वार्टर देलखिन। रिकशा कीनै लेल पैंच देलखिन। शर्त रहनि जे मेमसाहेबकेँ स्कूल पहुँचाएब, आ घर आनब। तकर बीचमे अपना लेल चलाएब। मेमसाहेब डी. पी. एस.मे टीचर छली। पहिने भेंट करअबैत रहै। एक दूू बेर मामी, बच्चा सबकेँ सेहो अनने छल। आब तकत्ता वर्ष भऽ गेलइ। कोनो पता नइं। मंजूर मामाक झुग्गी हमरा लोकनि कीनि लेलहुँ।

-वाह।

-तीन टा झुग्गी आर अछि। किराया पर लगौने छी। सबटा माइक बुद्धिसँ। तों की सब कएलह?

-से सब सुनाबी तमहाभारत छोट भऽ जेतइ। हम अभागल, दुर्बल लोक।

-चलघर चल। माइ बाट तकैत होएत।

पानमती नहा कऽ भीतर आबि चुकल छल, जखन पूनम आएल।

-माइ, देख तहम ककरा अनलिऔ? चीन्हइ छही?

पानमती चीन्हि गेलै। मुदा किछु बाजल नइं।

-कोना छें?-ओ पुछलकइ।

-एतेक दिनसँ जासूसी चलैत रहइ, बूझल नइं भेलइ जे कोना छी।-पानमती अपन पैरक औंठा दिस तकैत नहुँ-नहुँ बाजल।

-तकर माने जे तोंहू चीन्हि गेलें।-ओ हँसबाक प्रयास कएलक।

पानमती किछु उत्तर नइं देलकै। ओहिना अपन पैरक औंठा दिस तकैत रहल। पूनमक ध्यान ओहि दिस नइं गेलै। ओ अपनहि झोंकमे छल-आब लोकक सोझामे माइ पूनम कहैत अछि। मुदा जखन दुःखित पडैत छी तकहलगैत अछि-हमर सुकरिया, नीके भऽ जो।-माथो दुखाइत तएकर हाथ पैर हेरा जाइत छै। कौखन नीको रहै छी तदुलार करलगैत अछि। मारि मलार-हमर अप्पन सुकरिया। सुकरी! की-कहाँ नाम दैत अछि। पूनम नाम ततोरे राखल थिक ने? स्कूलमे। नइं? के रखलक हमर नाम सुकरिया?

-गाममे। तोहर जन्म शुक्र कऽ भेलौ, तें सब सुकरिया कहलगलौ। हमरा केहेन दन लागए। मुदा ओतेक लोकसँ के रार करए। एतअएलहुँ तनाम बदलि देलियौ। तोहर नाम पूनम। तोहर माइक नाम पानमती। आ अपन नाम जागेश्वर मंडल।-पूनम ठठा कऽ हँसलागल। जागेश्वरकेँ सेहो हँसी लागि गेलै। पूनम बाजल-कतेक सुखी रही हमरा लोकनि तहिया।

जागेश्वर लए सबसँ सुखक समय रहै ओ। मालिक सीमेण्ट, ईटाक खुचरा व्यापारी छल। अपन साइकिल ठेला छलै, जाहि पर समान एक ठामसँ दोसर ठाम पठबै। कइएक ठाम छोट छोट कच्चा गोदाम बनौने छल। तहीमे एक गोदाम लग एकटा झुग्गी जागेश्वर लेल सेहो बना देलकै। जागेश्वर अपन परिवार लअनलक। सामनेक कोठीमे पानमतीकेँ बासन मँजबाक काज भेटि गेलै। म्यूनिसिपल स्कूलमे पूनम पढलागल।

मालिक रहै छल दक्षिण दिल्लीमे। अपन कोठी छलनि। तहीमे एक राति हुनकर परिवार सहित हत्या भऽ गेलनि। पुलिस आ वारिस लोकनिक गहमागहमी हुअलागल। गोदामक जमीन मालिक केर नइं छलनि। जागेश्वरकेँ झुग्गी छोडपडलै। जाहि घरमे पानमती काज करैत छल,ततजगह खाली नइं छलै। दोसर एक कोठीमे टाट घेरि, टिनक छत द’, जगह देबा लेल राजी छलै, यदि पानमती ओहि कोठीक काज करब गछए। पानमती दुनू कोठीमे काज करलागल।

जागेश्वरकेँ काज नइं भेटि रहल छलै। नब मालिक पुलिसक झमेला समाप्त होएबा तक प्रतीक्षा करकहलखिन। झमेला अनन्त भऽ गेल छल। ओ मंजूरकेँ पकडलक। मंजूर बाजल, हमर इलाकामे मजूरी बड कम छै। ओहि ठाम अधिकांश लोक नोकरिया। स्त्राीगण सब सेहो आफिस जाइत छथि। तैं ओहि ठाम घरक काज कएनिहारक मांग छै। पाइयो तहिना भेटै छै ओहि सब घरमे। छह बजे भोर जाउ, नौ बजेसँ पहिने काज खतम करू। घरवाली अपस्याँत भऽ जाइत अछि जाडमे। नागा भेल, पाइ कटि गेल। हमरा पोसाइत तकिऐ अबितहुँ एतेक दूर काज ताकऽ?

मंजूर प्रीतमपुरामे रहै छल। भिनसर बससँ उत्तर दिल्ली अबैत छल। जगदीशक संग मालिक केर साइकिल ठेला पर माल उघैत छल। साँझ कऽ फेर बससँ घर घुरैत छल। ओहि ठाम मालिककेँ कोनो गोदाम नइं छलनि। मंजूर तीस टका मास किरायाक झुग्गीमे रहै छल। ओकर योजना छलै एकटा अपन रिक्शा किनबाक। तकर बाद अपन स्त्राीक काज छोडा देबाक।

मंजूरक योजना सुनि जागेश्वर सेहो योजना बनबैत छल। पानमती सेहो। जागेश्वरकेँ झुग्गीक किराया नइं लगैत छलै। तैं ओ अपनाकेँ मंजूरसँ अधिक भाग्यवान बुझैत छल। बुद्विमान सेहो। भविष्यमे ओ झुग्गी बनएबाक सोचैत छल।

-पहिने जगह सुतारब। ठाम ठाम झुग्गी बना किराया पर लगा देबै। तखन तोरा काज करनइं पडतौ।

-नइं, हम काज नइं छोडब। झुग्गी किरायासँ साइकिल ठेला कीनब। एकटा नइं कइएक टा। माल उघै लेल किराया पर देबै।

-मालिककेँ?-जागेश्वर कौतुकसँ पूछै। पानमतीकेँ हँसी लागि जाइ। पूनम सेहो हँसलागए।

किछु नइं भेलै।

फरीदाबाद तक बउआएल। ढंगगर काज नइं भेटलै। शुभचिन्तक सब दिल्लीसँ बाहर भाग्य अजमएबाक सलाह देलकै। अपनहुँ सएह ठीक बुझि पडलै। पानमती कन्नारोहट करत, ताहि डरसँ चुप्पहि चल गेल।

पूनम नेना छल। तैयो ओ दिन मोन पडि गेलै। स्कूलसँ बहराएल तबाप फाटक लग ठाढ भेटलै।

-नोकरी भेटलह?-पूनम पुछलकै।

-भेटि जायत।

-कत’?

-बडी दूर। तों नीक जकाँ रहिहें। माइक सब बात मानिहें। जाइ छी।

-कत?

-काज ताकऽ-जागेश्वरक आँखि छलछला गेलै।

-नइं जाह।

-फेर आबि जएबौ।

जागेश्वर चल गेल। तीन मास जखन कोनो खबरि नइं भेटलै, पानमती पूनमक संग रघुनाथ रिक्शवाला लग गेल। ओकरहि गामक रहै। रघुनाथ बाकी गौंआं सबकेँ खबरि देलकै। सब पहुँचलै। घर घुरि जएबाक सलाह देलकै। पानमतीकेँ नइं रुचलै। सब जोर देबलगलै। पानमतीकेँ मानपडलै। तय भेल जे अगिला मासक आठ तारीख कऽ जे जमात गाम जाएत, ताहि संग पानमती आ पूनम सेहो रहत। सात तारीख कऽ लोक आबि कऽ जेतै अड्डा पर। ताबत पानमती दुनू घरसँ अपन दरमाहा उठा लिअय।

दुनू मलिकाइन दिल्ली छोडबाक सलाह नइं देलखिन। कहलखिन, काज ताकए गेल छौ, घुरि अएतौ। चाहत तआब एत्तहु काज भेटि जेतै। हमरा लोकनि देखबै।

-अपन लोकवेदक से विचार नइं छै। ओ आबि जाए तकहबै जे हमरा जल्दी गामसँ लआबए।-पानमती बाजल।

मंजूर भेंट करए अएलैक। पानमती ओकर पैर पकडि लेलकै। कानलागल। बाजल-हमरा अपन इलाकामे लचलू। ओहि ठाम काजक लोकक माँग छै।

माइकेँ कनैत देखि, पूनम सेहो माइक बगलमे लोटि गेल। माइ बात दोहराबलागल।

मंजूर अकचका गेल। बाजल-ओहि ठाम रहब कत’?

-झुग्गीक किराया दकऽ। जेना अहाँ रहै छी।

-झुग्गीक किराया आब बढि गेलै अछि। पचास टाका मास। आ पचास टाका सलामी भिन्न।

-देबै। जे नुआ फट्टा अछि, बेचि कऽ देबै।

मंजूरक बहु किछु दिनसँ काज पर जाइ काल नाकर नुकर कऽ रहल छलै। हाथ-पैर झुनझुनाइत रहै। बदलामे पानमती सम्हारि देतै तदरमाहा नइं कटतै।

सएह सोचि कऽ मंजूर राजी भऽ गेल। पानमती तखनहि बिदा हेबा लेल वस्तु जात बान्हलागल। रघुनाथकेँ खबरि दइ लए पूनमकेँ दौडा देलकै।

-रघुनाथ काका! हमरा लोकनि गाम नइं जाएब।

-किऐ?

-मंजूर मामा लग रहब।

रघुनाथकेँ तखन सवारी रहै। ओ अधिक खोध वेध नइं केलकै। जागेश्वर प्रीतमपुरामे कत्ता बेर छानि मारलक। ने मंजूर भेटलै, ने पानमती, ने पूनम। अपने लोकबेद जएबासँ रोकै। बेर बेर बुझबै-केओ ककरो संग भागत, पुरान डीह पर थोडे बसत। ओ ततेहेन ठाम जाएत, जतओकरा केओ नइं चीन्हइ। केहेन मूर्ख छें तों।

-महामूर्ख छी हम-जागेश्वर घाड नेरबैत बाजल। पूनम सेहो घाड नेरबैत बाजल-नइं। तों कदापि मूर्ख नइं छह। झुग्गी बना कऽ किराया लगएबाक विचार तोंही कएने छलह। हमरा लोकनि जे ठेला किनलहुँ, से जकरा चलबदेलिऐ, सएह लकऽ भागि गेल। माइ तनिश्चय कऽ लेलक अछि,बिना रजिस्ट्रीक सब्जी दोकान नइं करत। आब तों आबि गेलह। तोंही दोकान चलएब। आदना लोककेँ नइं देबै।

पूनम अपन माइ दिस तकलक। माइ अपन पैरक औंठा दिस दृष्टि गडौने ओहिना ठाढि रहए। पूनमकेँ आश्चर्य भेलै। पूछलकै-माइ! तों किछु बजै नइं छें?

एक क्षण आर चुप रहि, पानमती बाजल-सब्जी दोकानमे देरी छै। रुपैया जमा हैत, जगह भेटत, रजिस्ट्री हैत-एखन तनाम पर लगैत बट्टा बचएबाक अछि।

-बट्टा?

-नौ वर्षसँ एहि इलाकामे छी। सब जनैत अछि जे हमरा एक बेटी छोडि, आगू पाछू केओ नइं अछि। तखन एकटा पुरुष क्यो।

-केओ एकटा पुरुष नइं। तोहर वर, आ हमर बाप थिक।

-केओ नइं मानत। सब आंगुर उठाओत।

-के आंगुर उठाओत? प्रति तेसर लोक जोडी बदलैत रहै अछि एतए।

-तइं तककरो विश्वास नइं हेतै सत्य पर!-पानमती अइ बेर जागेश्वर दिस ताकि बाजल, बेटी लेल नीक घर वर चाहैत छी। एहने समयमे...

-माइ! एहेन कठोर जुनि बन। बाबू हारल थाकल अछि। कहियो तभरि गामक लोकसँ लडाइ कऽ कऽ हमरा लोकनिकेँ एतअनलक। बेटी-पुतोहुकेँ बाहर पठएबा ले ने तोहर लोकवेद राजी रहौ, ने बाबूके। बाबू नइं अनैत तगाममे गोबर गोइठा करैत सडैत रहितहुँ आइ।

-तोरा जनैत नीक दशा बनबै वाला तोहर बाप छौ। माइ जहन्नुममे देलकौ!

-नइं माइ, नइं। हमर तात्पर्य से नइं छल। हमरा सन माइ ककरो नइं छै।

-गामसँ अनलक ठीके। बैसा कऽ नइं खुऔलक। तहू दिनमे बासन मँजैत रही। आइयो सएह करैत छी। तहिया दू घर काज करैत रही, आइ तीन घर करैत छी।

पूनमकेँ उत्तर नइं फुरलै। ओ दहो-बहो कानलागल। पानमती फेर अपन पैरक औंठा दिस ताकऽ लागल।

जागेश्वर नइं सहि सकल। हाथसँ बेटीक मुँह पोछैत बाजल-चुप भऽ जो। माइसँ बढि कऽ तोहर हित-चिन्तक आन नइं हेतौ। ओकर बातसँ बाहर नइं होइ। ओकरा खूब मानी। चलै छियौ।

-नइं।-पूनम केर कोंढ फाटलगलै।

जागेश्वर बिदा भऽ गेल। पानमती ठाढिए रहल। पूनम अपन माइकेँ बड्ड मानैत छल। कहियो कोनो विरोध नइं कएने छल। दरमाहा बख्शीस जे किछु भेटै, माइक हाथ पर राखि देअए। माइ प्रति बेर ओहिसँ किछु पूनमकेँ दैत कहै-ले अपन सौख-मनोरथ लेल राख।

पूनम एकटा बटुआमे सौख मनोरथक रुपैया रखैत छल। पूनम फुर्तीसँ ओ बटुआ आ जलखैक एकटा पन्नी उठा बाहर दौडल।

जागेश्वर मंथर गतिसँ जा रहल छल। पूनम हाक देलकै-बाबू... कनेक बिलमि जा।-जागेश्वर थमि गेल। पूनम बटुआ ओकर हाथमे दैत कहलकै-ई एकदम हमर अपन पाइ थिक। तोरा लेल। जतबा दिन चल’, भूखल नइं रहिह

-नइं, नइं। ई राख तों, हमरा काज भेटल अछि।

-तैयो राखि लैह। तोहर बेटीकेँ संतोष हेतह। आ इहो लैह। जे घडी ने कऽलमे पानि अएलहि अछि। हाथ मुँह धो कऽ पेटमे ध लैह।

-एतेक मानै छें हमरा?-जागेश्वर आर्द्र कंठसँ बाजल।

-तों कोनो कम मानै छ, हमरा राति कऽ खिस्सा कहैत रह। गीत सुनबैत रह। कतेक दुलार-मलार करैत रह। कहियो नइं बिसरल। ने कहियो बिसरत।-पूनम फेर कान लागल।

जागेश्वर हाथसँ नोर पोछि देलकै। बाजल किछु नइं। पूनम अवरुद्ध कंठसँ कहलकै, दू सौ सत्तासी नम्बर वैशाली नगरमे हम काज करैत छी। फाटक पर घरवैयाक नाम पता लिखल छै। ओहि ठाम चिट्ठी दिह। नीक आ अधलाह सब हाल लिखिह। आर एकटा बात...

-की?

-माइकेँ माफ कऽ दिहक। कठोर मेहनति करैत-करैत ओकर मोन कठोर भऽ गेलै अछि। मुदा हमरा विश्वास अछि जे एक दिन ओ पिघलत। आहमरा लोकनि पहिने जकाँ संग रह लागब, प्रेमसँ।

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Jyoti Vats said...

Lili Ray ker katha Vidhik Vidhan Bar nik lagal.

Reply05/05/2009 at 11:55 AM

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