'विदेह' ३३ म अंक ०१ मई २००९ (वर्ष २ मास १७ अंक ३३)
वि दे ह विदेह Videha বিদেহ http://www.videha.co.in विदेह प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका Videha Ist Maithili Fortnightly e Magazine विदेह प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका नव अंक देखबाक लेल पृष्ठ सभकेँ रिफ्रेश कए देखू। Always refresh the pages for viewing new issue of VIDEHA. Read in your own scriptRoman(Eng)Gujarati Bangla Oriya Gurmukhi Telugu Tamil Kannada Malayalam Hindi
एहि अंकमे अछि:-
१. संपादकीय संदेश
२. गद्य
२.१ रामभरोस कापडि भमर-संचार एवं साहित्य क्षेत्रमे समावेशी स्वरुपक अपेक्षा
२.२. कथा-सुभाषचन्द्र यादव- दृष्टि
२.३. प्रत्यावर्तन - तेसर खेप- -कुसुम ठाकुर
२.४. बलचन्दा (संपूर्ण मैथिली नाटक)-लेखिका - विभा रानी (अन्तिम खेप)
२.५ १. कामिनी कामायनी - सूटक कपङा आ २.
कुमार मनोज काश्यप-प्रतिरोध
२.६. मणिपद्म क संस्मरण-संसार- प्रेमशंकर सिंह
३. पद्य
३.२. कामिनी कामायनी: लिखत
के प्रेम गीत
३.३. विवेकानंद झा-कविता आ की सुजाता/ चान आ चान्नी
३.४. सतीश चन्द्र झा- मध्य वर्गक सपना
४. गद्य-पद्य भारती -सोंगर,मूल कोंकणी कथाः खपच्ची,लेखकः
श्री. सेबी फर्नानडीस, हिन्दी अनुवादकः
डा. चन्द्रलेखा डिसूजा,मैथिली रूपान्तरण :
डा. शंभु कुमार सिंह
५. बालानां कृते-1
देवांशु वत्सक मैथिली चित्र-श्रृंखला (कामिक्स); आ 2. मध्य-प्रदेश यात्रा आ देवीजी- ज्योति झा चौधरी
६. भाषापाक रचना-लेखन - पञ्जी डाटाबेस (आगाँ), [मानक मैथिली], [विदेहक मैथिली-अंग्रेजी आ अंग्रेजी मैथिली कोष (इंटरनेटपर पहिल बेर सर्च-डिक्शनरी) एम.एस. एस.क्यू.एल. सर्वर आधारित -Based on ms-sql server Maithili-English and English-Maithili Dictionary.]
७. VIDEHA FOR NON RESIDENT MAITHILS (Festivals of Mithila date-list)
७.THE COMET- English translation of Gajendra Thakur's Maithili NovelSahasrabadhani translated by Jyoti.
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१. संपादकीय
मैथिली पत्रिका “मिथिला दर्शन". नव रूप-रंग मे संपूर्ण पारिवारिक पत्र जाहिमे आर्थिक लेखक संग नेना-भुटका लेल कथा-कविता, महिला स्तम्भक अन्तर्गत भानस-भात आ साज-श्रृंगार, समीक्षा-लेख, पोथी-परिचय, सुश्रुषामे डॊक्टरी सलाह आ नियमित कथा-कविता सम्मिलित अछि।
एहि पत्रिकाक स्थापना १९५३ ई.मे भेल रहए आ प्रतिष्ठाता सम्पादक- प्रोफेसर प्रबोध नारायण सिंह आ डा. अणिमा सिंह रहथि । आब एकर प्रधान सम्पादक- नचिकेता आ कार्यकारी सम्पादक- रामलोचन ठाकुर छथि। कला सम्पादक छथि डा. रमानन्द झा’रमण’। श्री शम्भु कुमार सिंह आ श्री अजित मिश्र एहिमे सम्पादकीय सहयोग दए रहल छथि। आ सम्पादकीय उपदेष्टा छथि पन्ना झा, रामचन्द्र खान, भीमनाथ झा, सुभाष चन्द्र यादव आ कुणाल। चित्रकार छथि चन्दन विश्वास। डा. अणिमा सिंह द्वारा ई प्रकाशित आ मुद्रित कएल जा रहल अछि। ई पत्रिका अपन वेबसाइट http://www.mithiladarshan.com/ शीघ्र शुरु करत।
संगहि "विदेह" केँ एखन धरि (१ जनवरी २००८ सँ ०७ अप्रैल २००९) ७८ देशक ७८१ ठामसँ २०,९५१ गोटे द्वारा विभिना आइ.एस.पी.सँ १,६८,७०८ बेर देखल गेल अछि (गूगल एनेलेटिक्स डाटा)- धन्यवाद पाठकगण।
अपनेक रचना आ प्रतिक्रियाक प्रतीक्षामे।
गजेन्द्र ठाकुर
नई दिल्ली। फोन-09911382078
ggajendra@videha.co.in
ggajendra@yahoo.co.in
1
aum said...
excellent magazine
२. गद्य
२.१ रामभरोस कापडि भमर-संचार एवं साहित्य क्षेत्रमे समावेशी स्वरुपक अपेक्षा
२.२. कथा-सुभाषचन्द्र यादव- दृष्टि
२.३. प्रत्यावर्तन - तेसर खेप- -कुसुम ठाकुर
२.४. बलचन्दा (संपूर्ण मैथिली नाटक)-लेखिका - विभा रानी (अन्तिम खेप)
२.५ १. कामिनी कामायनी - सूटक कपङा आ २.
कुमार मनोज काश्यप-प्रतिरोध
२.६. मणिपद्म क संस्मरण-संसार- प्रेमशंकर सिंह
संचार एवं साहित्य क्षेत्रमे समावेशी स्वरुपक अपेक्षा
– रामभरोस कापडि ‘भ्रमर’
रामभरोस कापडि ‘भ्रमर’, अध्यक्ष ः साझाप्रकाशन, ललितपुर
संचार एवं साहित्य क्षेत्रमे समावेशी स्वरुपक अपेक्षा
वि.स. १९५८ मे प्रारंभ भेल गोरखापत्र समाचारपत्रक प्रकाशनसं नेपाली पत्रकारिताक विधिवत शुरुआत मानल जएबाक चाही । मुदा इहो समाचारपत्र मात्र नेपाली भाषा आ नेपाली भाषी सभक हेतु पृष्टपोषणक काज करैत आएल अछि । ई एक सय आठ वर्षक नेपाली पत्रकारिताक इतिहासेमे नुकाएल अछि समस्त नेपालक पत्रकारिताक व्यथा कथा । राजनीतिकर्मी लोकनि भले दू सय चालिस वर्षक गोरखासं ल’ नेपालक शाह वंशीय राजघराना धरिक समय कालमे मधेशवासीक शोषणक बात करैत हो, सत्य तं ई अछि एहि समस्त अवधिसं ल’ एखन धरिक गणतंत्र नेपालमे समेत अवस्था उएह छैक आ ओ चाहे राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक हुअए अथवा साहित्य एवं संस्कृति क्षेत्र हुअए । मधेश आन्दोलनक बाद जे किछु आंगुर पर गन’ बला परिवर्तनक संकेत आएल अछि से धन सन ।
हम पहिने संचार क्षेत्रक बात करी । गोरखापत्रक सय वर्षसं उपरक इतिहासमे पहिल बेर कोनो मधेशी किंवा मैथिल नि.प्रधान सम्पादकक जवावदेह पद पर जा सकलाह अछि । एहिस पूर्व सम्पादक आ काका अध्यक्षक वाते नहि आने महाप्रबन्धक । नीति निर्माणक तहमे मैथिल किंवा मधेशीक पहुंच शून्य रहल अछि । गणतन्त्रो नेपालक संचार कर्मी सभक हेंजमे जवावदेह पदपर मधेशी आबि पओताह–तकर आशा कम्मे अछि । नेपाल टेलिभिजनक महाप्रबन्धक भले नोकरीक वरिष्ठताक कारणें कोनो मधेशी तपानाथ शुक्ला भ’ जाथु । एखनो सरकारक मनोनयनमे सरकारी संचार क्षेत्र मधेशी विहिन अछि । कहियो काल देखएबालेल सचिवक अध्यक्षता बला संचालक समितिक सदस्यक रुपमे रेडियो नेपालमे कोनो मंगल झा किंवा रोशन जनकपुरी भले नियुक्त क’ देल जाइत हो । ने अवधि पूर्ण ने नितिनिर्माणमे कोनो अहमियत । नेपाल टेलिभिजनक हालति सएह छैक । संचालक धरिमे कोनो मधेशी नहि । बड कठिनसं आ प्रायः घनघोर प्रसव वेदनाक संग राससक उचिते प्राप्तकर्ता महाप्रबन्धक पद पर महतोजी वैसाओल गेलाह अछि, मुदा का.मु.क संग । राससक अध्यक्षक कुर्सि सदैब मधेशी सभक हेतु आकासक तरेगन भ’क’ रहि गेल अछि । प्रेस काउन्सिलक अध्यक्ष धरि मधेशीक पहुंच एखन धरि भ’ नहि सकल अछि । ४१ वर्ष पूर्व गठन भेल प्रेस काउन्सिल तहियासं आइधरि उएह नेपाली भाषी सभक हाथमे राखल गेल आ वात कएल गेल काठमाण्डू आ तराईक पत्र–पत्रिका विकासक । परिणाम भेलै एखनो धरि प्रेस काउन्सिल मधेशक पत्र–पत्रिकाकें पक्षपातपूर्ण आ द्वैध चरित्र देखा दबबैत रहलैक अछि, सतबैत रहलैक अछि । प्रत्येक नियुक्तिमे एक–आध गोटे मधेशी सदस्य बना देल जाइत छथि, जनिका सम्भवतः चलितो किछु नहि छन्हि ।
सरकारी संचार क्षेत्र जाहिने नेपालक आनोक्षेत्र खास क’ मधेशीक कर आ मालपोतक रकम लागल छैकमे कोनो समावेशी स्वरुपक अवधारणा शासक लोकनि किएक ने राखि सकलाह । गणतन्त्र नेपालक संचार मंत्री द्वारा गठित प्रेस काउन्सिल लगायत आन संचार क्षेत्र मधेशी पदाधिकारीसं किए शून्य भ’ गेल अछि । नहि लगैए ? – समावेशी मात्र नारा आ सहमति–समझौताक विषय भ’क’ रहि गेल अछि । तकरा कार्यरुपमे परिणत करबाक कोनो प्रयोजन सत्तापक्ष नहि वुझैत अछि । सरकार सूचना आयोग बनौलक, एक्कोटा मघेशी किएक राखत । सरकारी संचार माध्यम जाहिपर सभक अधिकार मानल जाइत अछि, तकर ई हालति अछि तं निजी क्षेत्रक वाते करब की । एत्त तं आर दुर्गति छैक । मधेश, मधेशी, मैथिल, मिथिला आ मैथिलीक चर्च एहि निजी पत्र–पत्रिका आ संचार माध्यमक हेतु कुनैनक गोली जकां गलामे अरघैत नहि छैक । तखन व्यवसायिक बाध्यतावश किछु मधेशी, मैथिल लोकनि किछु संचार माध्यमक महत्वपूर्ण पद पर आसीन राखल गेलाह अछि । नेपाली भाषी सभक नियंत्रणक ओहि प्रतिष्ठान सभमे हिनका सभकें की चलैत हयतनि–अनुमान कएल जा सकैछ ।
आब आबी साहित्य दिश । नेपालमे तत्कालीन प्रधानमंत्री चन्द्रशमशेर ज.व.रा. (१९०१–१९२९, प्रधानमंत्रीत्व काल) जखन नेपालमे राणाशासन विरुद्ध सुगबुगाहट देखलनि आ चोरानुकी राणा विरोधी साहित्य प्रकाशनक बात महशूस कएलनि तं १९१३ ई. मे ‘गोरखा भाषा प्रकाशिनी समिति’ नामक संस्थाक गठन कएलनि । फरमान जारी कएलनि–कोनो साहित्य वा रचना एहि समितिक स्वीकृति विना प्रकाशित नहि हयत । एहि तरहें राणा प्रधानमंत्री जे अपन गद्यी बचएबालेल समिति बना नियम चलौलनि ओ आइधरि परिवर्तित रुपमे अर्थात् पहिने गद्यी बचएबा लेल आब मात्र नेपाली भाषा बचएबा लेल तेहने जालसभ विनल गेल अछि । ओ चाहे तत्कालीन राजा महेन्द्रक कृपासं गठन भेल नेपाल प्रज्ञा प्रतिष्ठान होए आ अथवा २०२१ सालमे गठन भेल साझा प्रकाशन होअए ।
नेपालक जनसंख्या अनुसार मैथिली भाषीक संख्या १३ प्रतिशत अछि २०५८ सालक तथ्यांक अनुसार । दोसर भाषा अछि नेपालीक बाद । मुदा सरकारी संरक्षण विहिन अवस्था छैक । तहिना भोजपुरी, अबधी, थारु आदि भाषा छैक, जकरा प्रारंभ सं उपेक्षाक शिकार होब’ पडल छैक । साहित्यक रक्षामे लागल प्रतिष्ठान सभ मे समेत ई अवस्था शाहीकाल सं एखन धरि छैक जे दुखद मानल जएबाक चाही । मधेशी सेहो संचारमंत्री भेल छथि, मुदा की कएलनि !
शुरुमे हम संचारक्षेत्रक बात कएल अछि । सरकारी संचार क्षेत्रक गोरखापात्र, रेडियो नेपाल, नेपाल टेलिभिजन आदिमे नियमित साहित्यिक प्काशन व प्रसारण होइत अछि । कतेक स्थान नेपाली इतर भाषा, साहित्यक छैक । गोरखापत्र एम्हर ‘नयां नेपाल’ परिशिष्टमे देशक विभिन्न भाषाक पृस्ट देब’ लागल अछि । नीक प्रयास थिक । मुदा दू पृस्ट सं एक क’ देल भाषाक ओ पृस्ट भाषाक विशिष्टताक आधार पर नहि समावेशीक नामपर हक अधिकारकें कटौती क’क’ देल जा रहलैक अछि । आनो पृस्टपर छापबला रचना सभमे नेपाली भाषाक लेखकक अतिरिक्त आन भाषा–भाषी लेखक किंवा उक्त भाषाक साहित्य सम्वन्धी आलेख छापबामे परहेज कएल जाइत रहल अछि । गोरखापत्रक शनिवारीय परिशिस्टांक आ मधुपर्क साहित्यिक रचनाक प्रकाशन अछि । जं नियमित पाठक छी तं महिनौंक वाद किछु मैथिल किंवा मधेशी लेखकक रचना अति उपेक्षित रुपें कोनो कोनमे अभरत । वस, तकरा बाद उएह देखले–पढले नाम आ भाषा–रचना सभ । कतबो समावेशीक बात केओ क’ लिअए–मजाल अछि एहि पत्रिका सभमे मैथिली, भोजपुरी, अबधी, थारु भाषा साहित्यक रचना व विकास यात्रा सम्वन्धी आलेख छापालेब । कहियो काल ‘भनसुन’ कएला पर भले अपवादमे देखि पडए ।
नेपाल प्रज्ञा प्रतिष्ठानक गप त आर निराला अछि । नेपाली भाषा वाहेक आन भाषामे काज नहि करबाक जेना सप्पत खएने होए एकर पदाधिकारी लोकनि । एकतं एहिमे पहिने तीसटामे एक मधेशी सदस्य आ उएह कार्यसमिति अर्थात् परिषद्मे राखल जाइत छलाह । से भाषा, संस्कृति, साहित्य आदि विधाक अन्तरगत । ताही महक किछु पाइ कबारि एक आधटा पुस्तक मैथिलीयोमे बहार भ’ गेल अछि तं ई महान कृपा भेल छैक मैथिली पर । एकरालेल कोना विभाग छुटिआओल नहि गेल अछि । हालेमे गठित आ भंगठित प्रज्ञा–प्रतिष्ठानसं पूर्वक गठनमे एकमात्र मधेशी मैथिली साहित्यकार अवसर पबितो परिषद्मे राखल नहि गेलाह । तथापि प्रज्ञाप्रतिष्ठानक इतिहासमे पहिल बेर ‘आंगन’ गतगर पत्रिका मैथिलीमे निकलल । किछु काज आगां बढल रहय, परिषद् भंग आ दीर्घअन्तरालक बाद जं गठनो भेल तं एहन जे शपथग्रहण लेवासं पूर्वे तहस–नहस भ’ गेल । अदालत आ जनता दुनू द्वारा वहिष्कृत भ’ क’ रहि गेल अछि । तए“ एकरा सं ने पहिने आशा छल, आ ने आब करी से तकर वातावरण बनैत देखल जा रहल अछि । कोना डा. योगेन्द्र प्र. यादव जहिया एकर सदस्य रहथि तहियासं ‘सयपत्री’ पत्रिकाक प्रकाशन शुरु भेल रहय जे वास्तविक रुपमे समावेशी स्वरुप रहैक ।
आब साझा प्रकाशनक गप करी । पहिने चर्च भ’ आएल अछि राणा प्रधान मंत्री अपना विरुद्धक साहित्यकें प्रकाशनसं रोकबाक हेतु १९१३ ई. मे जे गोरखा भाषा प्रकाशिनी समिति (नेपालके समीक्षात्मक इतिहास–डा. श्री रामप्रसाद उपाध्याय, (२०५५), पृ–३१७ साझा प्रकाशन)क गठन भेल उएह समिति तत्कालीन राणा प्रधानमंत्री जुद्धशमशेर द्वारा नेपाली भाषा प्रकाशन समिति (वि.स. १९९०)क रुपमे परिणत क’ देल गेल तकरे उत्तराधिकारीक रुपमे २०२१ साल अगहन १७ गते साझा प्रकाशनक स्थापना भेल । एकरो संचालक लोकनि नेपाली वाहेक आन भाषामे प्रकाशन करब सोचने ने छलाह आ साझा प्रकाशन विगत ४५ वर्षसं नेपाली साहित्यक भण्डारकें विना कोनो सरकारी अनुदान, अपनेसं कमा क’ अथवा घाटा सहि क भरैत रहल अछि । जं कि एहि संस्थामे सरकारक लगानी ६० प्रतिशत अछि तए“ एकर अध्यक्ष लगायत तीन संचालक सरकार दिशसं मनोनित होइत रहलाह अछि । मुदा केओ एकरा नेपाली भाषा सं आगां लाबि नेपाली जनताक करक अंशसं चलैत एहि संस्थाकें समावेशी नहि बना सकल । सहकारीक कारणें ई कृषि मंत्रालय अन्तरगत अछि आ एहिसं पूर्वो वहुतो मधेशी कृषि मंत्री होइत रहलाक अछि । मुदा आय, लाभ शून्य साझा अध्यक्षक पद पर धरि कोनो मधेशीकें लएबाक जरुरति महशूस नहि कएल गेल । ४५ वर्षक बाद एहिबेर पहिल मधेशी एकर अध्यक्ष पदपर आएल अछि । साझाक नेपाली भाषा मुखी सम्पूर्ण क्रियाकलापकें समावेशी बनएबाक प्रयास जारी अछि । किछु प्रकाशनक तैयारी चलि रहल अछि । मैथिली व्याकरण, मैथिली वालकथा, मैथिली कथा संग्रह आदिक प्रकाशन प्रगति पर अछि तं महाकवि विद्यापतिक चित्र प्रकाशित भ’ चुकल अछि । भोजपुरी, अवधी, थारु, नेपाल भाषा, तमाङ आदि भाषामे काज करबाक गृहकार्य चलि रहल अछि । मुदा ई सभ काज नगण्य स्तपरपर अछि – नेपाली भाषाक काजक आगां ओत्त नेपाली मानसिकतासं उबरि सकबामे जे कठिनाइ लगबाक चाही, लागि रहल अछि । तथापि किछु साहित्यिक संचालक लोकनि समावेशीक वर्तमान रुपान्तरण मे साझाकें मात्र नेपालीक घेरामे राखब उचित नहि, कहि उदारता देखा रहलाह अछि । परिणाम दूर तं अछि मुदा पहुंचसं ततेक दुरो नहि ।
साझाक पत्रिका ‘गरिमा’ एखन नेपालसं, प्रकाशित साहित्यक पत्रिकामे अग्रणी रखैत अछि । ओकरो समावेशी स्वरुपमे लाओल जा रहल अछि । लेखकीय घेराकें तोडैत मधेशक लेखक लोकनि द्वारा मैथिली, भोजपुरी, अवधी, थारु आदि साहित्य सम्वन्धी आलेख प्रकाशन प्रारंभ भ’ चुकल अछि, आहवान कएल जा रहल अछि ।
एकर अतिरिक्त निजी क्षेत्रक पत्र–पत्रिकामे समावेशी रचना सभक उपस्थापन कमजोर अछि । रचना’, ‘अभिव्यक्ति’, शारदा’ ‘मिर्मिरे,’ ‘नेपाल’ लगायतक पत्र–पत्रिका सभमे नियमित रुपमे भाषान्तरक रचना, साहित्यक समीक्षा समालोचना, अनुवाद, मौलिक आदि प्रकाशित होइत रहबाक चाही । एहि सम्वन्धमे उक्त पत्र–पत्रिका द्वारा प्रयास कएल गेल हो से हमरा ज्ञात नहि अछि ।
एहि तरहें देखलापर स्पष्ट रुपें देखि पडैछ जे राजनीतिए जकां भाषा, साहित्य किंवा संचारक क्षेत्रमे मधेशी उपेक्षित रहल अछि । ओ राज्य द्वारा तं सभसं बेसी अछिए, निजी क्षेत्र द्वारा सेहो कम अबडेरल नहि गेल अछि । परिणाम छैक मैथिलीभाषा, साहित्यमे विभिन्न विधा आ धाराक गतिविधि चरम पर होइतो नेपाली संसार ताहिसं अनभिज्ञ अछि आ समकालीन साहित्य यात्राक उपलव्धि अपने धरि सिमित भ’ क’ रहि गेल अछि ।
तहिना संचारक्षेत्र एतेक आगां बढि गेल अछि, मुदा एहि क्षेत्रमे अपन योग्यता, क्षमता प्रदर्शित क’ सकबाक अवसर कोनो ‘ज्ञानी’ मधेशी पाबि नहि रहलाह अछि । ई व्यक्तिक मात्रे नहि राष्ट्रकें क्षति सेहो भ’ रहलैक अछि । आ तए“ राष्ट्रियताक सूत्र कहियोकाल ढील पडैत वूझि पडैत छैक । आबो समावेशी नहि त फेर कहिया !!!
1
Neelima Chaudhary said...
bhramar jik article bad nik,
madhesh ker janatak, mithilanchalak uttaree bhagak lokak samasya aa samadhan par tathya parak lekh
कथा
सुभाषचन्द्र यादव-दृष्टि
चित्र श्री सुभाषचन्द्र यादव छायाकार: श्री साकेतानन्द
सुभाष चन्द्र यादव, कथाकार, समीक्षक एवं अनुवादक, जन्म ०५ मार्च १९४८, मातृक दीवानगंज, सुपौलमे। पैतृक स्थान: बलबा-मेनाही, सुपौल। आरम्भिक शिक्षा दीवानगंज एवं सुपौलमे। पटना कालेज, पटनासँ बी.ए.। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्लीसँ हिन्दीमे एम.ए. तथा पी.एह.डी.। १९८२ सँ अध्यापन। सम्प्रति: अध्यक्ष, स्नातकोत्तर हिन्दी विभाग, भूपेन्द्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय, पश्चिमी परिसर, सहरसा, बिहार। मैथिली, हिन्दी, बंगला, संस्कृत, उर्दू, अंग्रेजी, स्पेनिश एवं फ्रेंच भाषाक ज्ञान।
प्रकाशन: घरदेखिया (मैथिली कथा-संग्रह), मैथिली अकादमी, पटना, १९८३, हाली (अंग्रेजीसँ मैथिली अनुवाद), साहित्य अकादमी, नई दिल्ली, १९८८, बीछल कथा (हरिमोहन झाक कथाक चयन एवं भूमिका), साहित्य अकादमी, नई दिल्ली, १९९९, बिहाडि आउ (बंगला सँ मैथिली अनुवाद), किसुन संकल्प लोक, सुपौल, १९९५, भारत-विभाजन और हिन्दी उपन्यास (हिन्दी आलोचना), बिहार राष्ट्रभाषा परिषद्, पटना, २००१, राजकमल चौधरी का सफर (हिन्दी जीवनी) सारांश प्रकाशन, नई दिल्ली, २००१, मैथिलीमे करीब सत्तरि टा कथा, तीस टा समीक्षा आ हिन्दी, बंगला तथा अंग्रेजी मे अनेक अनुवाद प्रकाशित।
भूतपूर्व सदस्य: साहित्य अकादमी परामर्श मंडल, मैथिली अकादमी कार्य-समिति, बिहार सरकारक सांस्कृतिक नीति-निर्धारण समिति।
दृष्टि
रातिक दस बजल अछि । अन्दाज लगबैत छी डेरा पहुँचय मे कम सँ कम एक घंटा अबस्से लागि जायत। पाइ केँ जेबीये गनय लगैत छी । बड कम अछि । डेरा लग एकटा टुटपुजिया होटल छैक, जे सस्ते मे खुआबैत छैक । लेकिन ओतऽ जाइत-जाइत एगारह बाजि जेतैक । ताधरि ओ होटल बंद नहि भऽ जाय, ई सोचि एकटा होटलमे घोसिया जाइत छी । एकटा टिनहा बोर्ड टांगल छैक, जाहि पर सभ वस्तुक दर लिखल छैक । हम मनेमन पैसाक मोताबिक हिसाब बैसा लैत छी आ आधा प्लेटक आर्डर दऽ दैत छी । किछु पाइ बचि जाइत अछि । मोन सिगरेट पीबा लेल नुडिआय लगैत अछि आ बचलाहा पाइक सिगरेट लऽ लैत छी । मोन हल्लुक जकाँ बुझाइत अछि आ चालि किछु स्थिर भऽ जाइत अछि ।
रस्ता मे बहुत बात मोन पड़ैत रहैत अछि – 'ई हाले मे एम. ए. कयने छथि, बेचारा बड्ड गरीब छथि । कतहु कोनो नोकरी दिया दियौक ।’
आब बड्ड घृणा भऽ गेल अछि एहि सभसँ । भरि दिन एम. एल. ए., एम. पी. सभक खुशामद, अपन हीनता-बोध आ सर्विस होल्डरक मौन व्यंग्यसँ मन कुंठित भऽ जाइत अछि । दिन भरि नोकरीक चक्करमे बौआइत छी आ राति केँ झमान भेल डेरा घुरैत छी। जीवनक यैह क्रम बनि गेल अछि । कहिया निस्तार होयत, तकर ठेकान नहि ।
कोठलीमे एकटा चिठ्टी फेकल अछि । चिठ्टी उठबैत छी । गामसँ आयल अछि । नोकरी भेटल कि नहि, से पूछल गेल अछि । मोन घोर भऽ जाइत अछि । बहुत उदास भऽ जाइत छी । चिठ्टी मे गाम अयबाक आग्रह सेहो अछि । गाम अयबाक बात मनकेँ सान्त्वना दैत अछि ।
मन होइत रहैत अछि गाम भागि जाय । एहिठामक भूख-प्यास, अपमान, दुख, निराशा कखनो काल बताह बना दैत अछि । ई शहर काटय दौड़ैत अछि । बुझाय लगैत अछि जे नोकरी एकटा मृगतृष्णा थिक । ओकरा पाछू बौआइत-बौआइत जीवन अकारथ चल जायत । गाम जेबाक निर्णय करैत छी । निर्णय पर दृढ़ रहय चाहैत छी लेकिन से होइत नहि अछि । गौंआ—घरूआक व्यंग्य आ उपहासक कल्पना कलेजामे भूर करैत रहैत अछि । 'देखही रौ, फलनाक बेटा बुडिआय गेलै । एतेक पढियो—लिखि कऽ नोकरी नहि भेलै । आब गाम मे झाम गुड़ैत छै ।'
'धौ, पढतै कि सुथनी । पढितिऐक तँ यैह हाल रहितैक ।'
'अरे अबरपनी कयने घुरैत हेतै ।'
एहन-एहन बिक्ख सन बोल सुनि केँ मन होइत अछि लोकक मुँह नोचि ली । लेकिन मरमसि कऽ रहि जाइत छी ।
नोकरी । पढबाक—लिखबाक उद्देश्य लोक एक्केटा बुझैत अछि-नोकरी । जे नोकरी नहि करैत अछि, गाममे रहय चाहैत अछि, तकरा लोक उछन्नर लगा दैत छैक । कियैक ? मन मे बेर-बेर ई सवाल उठैत अछि । लोकक व्यवहारक प्रति मनमे क्रोधकं धधरा उठैत अछि ।
आइ भोर ओहि दक्षिण भारतीय पत्रकार सँ भेंट भेलाक बाद मन उद्वेगहीन आ शांत भऽ गेल अछि । सोचि लेने छी आब गामे मे रहब । खेती करब । पत्रकारक बात रहि-रहि कऽ मोन पड़ैत अछि- 'जँ आइ सभ पढल-लिखल लोक नोकरिये करत तँ फेर खेतीक काज के करत । हमरा आश्चर्य होइत अछि जे आइ—काल्हिक शिक्षित वर्ग केँ खेती करबामे लाजक अनुभव होयत छैक । जीवनक कोनो क्षेत्र होअय-कृषि, उद्योग अथवा व्यापार, एकटा महान आदर्श उपस्थित करबाक चाही । जीवन प्राप्तिक उद्देश्य केवल पेटे टा भरब नहि, किछु आरो अछि । आ ई की जे बी. ए. वा एम. ए. पास करू आ तुरन्त पेट पोसबा लेल कोनो नोकरी पकडि लिअऽ । भूख पर विजय प्राप्त करू, तखनहि कोनो महत् आदर्श स्थापित कऽ सकैत छी नहि तँ भूखे मे ओझरा कऽ रहि जायब ।'
लेकिन भूख पर कतेक दिन धरि विजय प्राप्त कयल जा सकैछ?' हम शंका राखलियैक ।
ओ बहुत गर्वित होइत बाजल – 'डू यू नो, डेथ केन नॉट कम ट्वाइस । आ जखन मृत्यु एक्के बेर भऽ सकैछ तँ हम सभ भूख सँ कहियो मरि सकैत छी?’ हमरा तखन बुझायल जेना इजोतक एकटा कपाट अचानक खुजि गेल हो । हम किछु आओर नहि सोचलहुँ आ गाम चल आयल छी।
गाम आबिते एकटा निराशा घेरि लेलक अछि । ओहि पत्रकारक प्रेरणा फीका आ बदरंग भेल जा रहल अछि। गामक जीवन, बहुत कठिन आ दुर्वह बुझाइत अछि । एहिठामक गरीबी, अशिक्षा, दंगा-फसादमे हम ठठि सकब ? हमरा सन सफेदपोश एहिठाम नहि रहि सकैछ । हमर निर्णय गलत रहय । हमर फैसला सुनिकेँ ककरो खुशी नहि भेलै । पत्नी पर तँ जेना वज्रपात भेलै । ओकर सभटा सपना चकनाचूर भऽ गेलैक । कतेक आस लगेने छल सब । पढत-लिखत, नोकरी करत, परिवार केँ सुख देत । लेकिन सब व्यर्थ । अपन अस्तित्व आब निरर्थक आ अप्रासंगिक बुझाय लागल अछि । की करी ? शहर घुरि जाय ? लेकिन ओतय करब की ? बस एत्तहि आबि कऽ अटकि जाइत छी । बुझाइत अछि शहर आ गाम हमरा लेल कतहु जगह नहि अछि । गाम अबैत छी तँ भागि कऽ शहर चल जयबाक मन होइत अछि आ शहरमे रहैत छी तँ भागि कऽ गाम चल अयबाक इच्छा होइत अछि । भरिसक हम चाहैत छी जे बैसले-बैसल सभ किछु भेटि जाय । लेकिन से कतहु भेलै—ए । उद्यम तँ करय पडत । हमरा मे चारित्रिक दृढता सेहो नहि अछि । छोट-छोट बात पर उखडि जाइत छी आ निर्णय बदलय लगैत छी । क्यो कहिये देलक जे 'पढि-लिखि' कऽ गोबर भऽ गेलै, तँ की हेतैक । कहैत छैक तँ कहओ । एहि सँ दुखी भऽ कऽ शहर पड़ा जायब कोन बुद्धिमानी हेतैक । आइए एक गोटे 'हरबाह' कहलक तँ कुटकुटा कए लागल । मन भेल कतहु पड़ा जाय । एहि तरहक क्षणिक आवेश आ भावुकतामे गलब ठीक नहि अछि ।
मनकेँ अनेक तरहेँ शांत आ स्थिर करबाक प्रयास करैत छी । लेकिन फेर कोनो एहन बात भऽ जाइत अछि जाहिसँ अन्हार आ निराशा पसरय लगैत अछि ।
क्यो कहैत अछि – 'खेती मे कोनो लस छैक । कहियो रौदी, कहियो दाही....’ आ हमर मन डूबय लगैत अछि । भविष्यक चिन्ता आ डर खेहारय लगैत अछि । ई नहि सोचय लगैत छी जे सब जँ एहि डरेँ खेती छोडि दैक तँ अन्न एतै कतयसँ आ लोक खायत की ? आखिर एतेक आदमी तँ खेतीये सँ जिबैत अछि । पता नहि कियैक, मनमे खाली निराशाजनक भावना आ विचार अबैत रहैत अछि । साइत सुविधाभोगी हेबाक कारणे । हम श्रम सँ भागय चाहैत छी, सुविधाकामी छी तेँ भविष्य असुरक्षित आ अंधकारमय बुझाइत अछि । हरबाह-चरबाह आ जन-बोनिहार भविष्य सँ डेराइत नहि अछि । श्रमे ओकर भविष्य होइत छैक । श्रम, जे ओकर अपन हाथमे छैक । फेर कथीक चिन्ता आ कोन असुरक्षा ।
हम अचानक एकटा विचित्र तरहक आशा आ प्रसन्नताक अनुभव करय लगैत छी।
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Krishna Yadav said...
Subhash Chandra Yadav Jik Katha me kichhu gap rahait chhaik.
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